Tuesday, February 23, 2016

JNU के भीतर Nationalism की classes चलाने से फासीवाद को खरोच तक नहीं लगने वाली है! जो फासीवाद आज फन फैलाये नज़र आ रहा है, यह अचानक नहीं हुआ है। आर एस एस और उसके जैसे अन्‍य फासीवादी संगठनों ने बरसों तक ग्रास रूट स्‍तर पर काम करते हुए यह माहौल तैयार किया है। जनमानस कहीं सचेतन तो कही अचेतन तौर पर इन विचारों से प्रभावित है। जाहिर है ऐसा होगा भी क्‍योंकि फासिस्‍ट हजारों तरीकों से उनके बीच में काम करते हुए मौजूद हैं। आज अगर हम अपने सामने फासीवाद का चौतरफा हमला देख रहे हैं तो क्‍या उसके लिए कहीं न कहीं अपने आप को प्रगतिशील और ''वामपंथी'' कहने वाले लोगों का जनता से कटाव जि़म्‍मेदार नहीं है? कुछ रस्‍मी प्रतिरोधों के दायरे तक सीमित रहने से आखिर क्‍या हासिल होगा? केवल फासीवादी हमलों के बाद सक्रिय हो जाना वास्‍तविक प्रतिरोधों का विकल्‍प नहीं हो सकता। कैम्‍पस की चौहदियों काे लांघकर जनता के बीच सतत मौजूदगी एवं जन प्रतिरोधों को संगठित करने के प्रयास से मुंह मोड़ना फासीवाद को ही अधिक मज़बूती देगा और यह भी याद रखना होगा कि पूंजीवाद पर सीधे हमला किए बिना इस काम को अंजाम देना नामुमकिन है। By Shvaita Kaul

JNU के भीतर Nationalism की classes चलाने से फासीवाद को खरोच तक नहीं लगने वाली है! जो फासीवाद आज फन फैलाये नज़र आ रहा है, यह अचानक नहीं हुआ है। आर एस एस और उसके जैसे अन्‍य फासीवादी संगठनों ने बरसों तक ग्रास रूट स्‍तर पर काम करते हुए यह माहौल तैयार किया है। जनमानस कहीं सचेतन तो कही अचेतन तौर पर इन विचारों से प्रभावित है। जाहिर है ऐसा होगा भी क्‍योंकि फासिस्‍ट हजारों तरीकों से उनके बीच में काम करते हुए मौजूद हैं। आज अगर हम अपने सामने फासीवाद का चौतरफा हमला देख रहे हैं तो क्‍या उसके लिए कहीं न कहीं अपने आप को प्रगतिशील और ''वामपंथी'' कहने वाले लोगों का जनता से कटाव जि़म्‍मेदार नहीं है? कुछ रस्‍मी प्रतिरोधों के दायरे तक सीमित रहने से आखिर क्‍या हासिल होगा? केवल फासीवादी हमलों के बाद सक्रिय हो जाना वास्‍तविक प्रतिरोधों का विकल्‍प नहीं हो सकता। कैम्‍पस की चौहदियों काे लांघकर जनता के बीच सतत मौजूदगी एवं जन प्रतिरोधों को संगठित करने के प्रयास से मुंह मोड़ना फासीवाद को ही अधिक मज़बूती देगा और यह भी याद रखना होगा कि पूंजीवाद पर सीधे हमला किए बिना इस काम को अंजाम देना नामुमकिन है।
By Shvaita Kaul

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