Dilip C Mandal
मनुस्मृति ईरानी ब्राह्मणवाद की मूर्ख और बड़बोली प्रतिनिधि हैं. वे ब्राह्मणवादी व्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाएंगी. महिषासुर पर राष्ट्रीय बहस करने की जगह, रोहित वेमुला को न्याय देना, मोदी सरकार के लिए बेहतर विकल्प है. अटल बिहारी वाजपेयी से इन्हें सीखना चाहिए.
बाबा साहेब द्वारा मनुस्मृति दहन दिवस मनाए जाने के लगभग सौ साल हो गए. ब्रह्मा को महात्मा फुले ने बेटी सरस्वती का बलात्कारी लिखा है और उस महाग्रंथ गुलामगीरी के डेढ़ सौ साल हो गए. पेरियार ने राम की पोल खोलने वाली किताब सच्ची रामायण लिखी, जिसका अनुवाद ललई सिंह यादव ने किया और उस पर प्रतिबंध के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में केस जीता. वह भी कई दशक पुरानी बात है. बाबा साहेब ने रिडल्स इन हिंदुइज्म लिखकर हिंदू धर्मग्रंथों की धज्जियां उड़ा दी. ऐसी सैकडों रचनाएं महामानवों ने लिखीं.
इन रचनाओं के सामने, देश के कई हिस्सों में हो रहा महिषासुर शहादत दिवस तो मासूम सा आयोजन है.
समझने की कोशिश कीजिए कि इन मिथकीय धार्मिक रचनाओं के कई पाठ हैं. ब्राह्मणवादी पाठ है, तो OBC और SC का भी पाठ है.
झारखंड की ST लिस्ट में शामिल असुर जनजाति इस कहानी को उस तरह नहीं पढ़ती, जैसा कि बंगाल का एक पुरोहित पढ़ता है. मुख्यमंत्री रहने के दौरान शिबू सोरेन ने रावण का पुतला नहीं जलाया.
पूरा दक्षिण विष्णु के अवतार वामन को दुष्ट और महाराज बली को महान मानता है और ओणम का त्योहार मनाता है. केरल का तो यह सबसे बड़ा पर्व है.
कबीर और रविदास से लेकर बाबा साहेब तक ने ब्राह्मणवादी विचारों की पोल खोली है और देखिए कि भारतीय संसद में सबसे शानदार मूर्तियां फुले और बाबा साहेब की हैं. सहमति और असहमति के बावजूद, देश इनके लोकतांत्रिक विचारों का सम्मान करता है. महात्मा फुले की संसद में भव्य मूर्ति तो अटल जी के शासन काल में लगी. उन्होंने खुद उद्घाटन किया.
मोदी जी को अटल जी से सीखना चाहिए.
चालाक ब्राह्मणवादी कभी नहीं चाहेगा कि इन धार्मिक पोल खोल पर चर्चा हो. वह विरोधी विचारों को अपनी चुप्पी से और अनदेखी करके मारता है.
भारत के संसदीय इतिहास में पहली बार है जब धर्मग्रंथों के पुनर्पाठ पर संसद में बात हो रही है... यह मनुस्मृति ईरानी की महामूर्खता के कारण हो रहा है. आरएसएस को मालूम है कि यह कितना खतरनाक है.
मनुस्मृति ईरानी के बड़बोलेपन की तुलना संघ की शातिर चुप्पी से कीजिए.
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