Tuesday, August 9, 2016

मृत जानवर उठाने की प्रथा का अन्त

मृत जानवर उठाने की प्रथा का अन्त 

सन1966 मे अपने निज ग्राम नाथीखेड़ा जनपद उन्नाव उ, प्र, मे बाबा साहब की जयन्ती मनाने के बाद गाॅवके चमार भाइयो की एक मिटिग मे यह संकल्/ कसम ली गयी कि आज से मरे जानवर नही उठायेगे और न उठाने देगे।यह अभियान गाँव से शुरु हुआ फिर बढ़ता हुआ प्रदेश के कोने कोने तक फैला और लगभग एक दशक से अधिक चले इस संघर्षपूर्ण आंदोलन के बाद पूरे उत्तर प्रदेश मे मृत जानवर उठाने की प्रथा बन्द हो गयी थी।गाँव मे मैंने अपने एक साथी राम भरोसे व एकसाहसी गाँववासी रामपाल जी(अब नही हैं)के सहयोग से इस अभियान की शुरुआत कियाथा ।इस संघर्ष मे पडोसी गाॅव बीघापुर के दुर्जन लाल को अपनी जान गवानी पड़ी थी।प्रदेश मे चले इस लम्बे संघर्ष के परिणाम के कारण ही उ, प्र, मे चमार एक शासक कौम के रूप मे तब्दील हो चुकी है। 
मित्रो मैनेइस अभियान का संस्मरण फेसबुक पर इसलिए डाला कि भारत मे कही यदि अब यह प्रथा चल रही है तो तत्काल बन्द करायें, तभी आपकी कौम स्वभिमान से जी पयेगी। 
आर, जी, कुरील 
सम्पादक बहुजन सवेरा 
संस्थापक, बहुजन भागीदारी मोर्चा

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