असीमा की वाल से
बेटियों के नाम खुला ख़त
प्यारी बेटियों
आज तुमसब से कुछ ज़रूरी बात करना चाह रही हूँ.
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में ‘छऊ’ सीखते हुये पैर तोड़कर मेसोनिक क्लिनिक, जनपथ दिल्ली के आर्थोपेडिक से मिली तो हम दोस्त बन गए. उन्हें नाटक देखना बहुत पसंद था इसलिए अक्सर नाटक देखने आते थे. एक दिन डॉक्टर नरेन ने मुझसे पूछा कि अकेली औरत होते हुए क्या दिक्क़तें आईं ?
मैंने कहा- वही जो पूरे युनिवेर्स की औरतों को.....
उन्होंने हँसते हुए कहा - वाह! बहुत आसान जवाब है.
हाँ, जवाब आसान भी है और मुश्किल भी. अकेली औरत और ऊपर से मैंने पत्रकारिता, साहित्य, रंगमंच और सिनेमा सभी क्षेत्र में काम किया है. बहुत कुछ जानती हूँ. तो मेरे अनुभव भी औरों से ज़रा हट के होंगे न ....
एक बार एक नाती-पोते वाले एन.आर.आई. ने प्रस्ताव रखा कि विदेशों में तो अभिनेत्रियाँ अपने से बड़े उम्र के किसी अमीर और फेमस आदमी से शादी कर लेती है. और ज़िन्दगी ऐश से गुज़ारती है. हीरे की अंगूठी मेरे सामने पेश कर दिया.
मैंने कहा – नहीं ले सकती. आपके प्रस्ताव और सुझाव से पहले ऐसा कर चुकी हूँ.
वे चौंके ?
मैंने कहा – हाँ, मैं अपने से उम्र में लगभग 25 साल बड़े मशहूर कवि से शादी करके चुकी हूँ लेकिन ऐश नहीं कर रही. संघर्ष कर रही हूँ और अपना काम कर रही हूँ.
तुमलोग बड़ी हो रही हो. तुमलोगों के सामने भी कई ऐसे प्रस्ताव आयेंगे/आते होंगे.
हमारे सामज में कुछ साहित्यकार, पत्रकार, वरिष्ठ रंगकर्मी और फ़िल्म निर्देशकों ने कुछ ऐसे जोड़ों के नाम रट लिए हैं जिनके रिश्ते में उम्र का फ़ासला रहा है. जैसे चेख़व (रशियन लेखक और नाट्यकार) और अभिनेत्री ओल्गानिपर, चार्लिन चैपलिन और ओना ऑलिन, टॉम क्रूज़ और कैटी होल्म्स, दिलीप कुमार और शायरा बानो.... ऐसे नामों को गिना कर लड़कियों कहते हैं - बहुत अकेला हूँ और गाना सुनाते हैं – ‘न उम्र की सीमा हो न जन्म का बंधन हो....’
यह नहीं कहती कि ऐसे रिश्ते ग़लत हैं लेकिन सही भी नहीं है. ख़ास कर जब कुछ चालाक प्राणी द्वारा फासने के लिए सिर्फ़ तुम्हारा ब्रेन वाश करके या हिप्नोटाइज़ करके ऐसे रंगीन/रूमानी रिश्तों के सपने दिखाए जाते हैं. हकीकत में यह रिश्ते उतने रूमानी नहीं होते.... जितना होना चाहिए. कोई भी फ़ासला इतना आसान नहीं होता कि उसे आसानी से पाटा जाए इसके लिए बहुत समझदारी और परिपक्वता की ज़रूरत होती है.
जब मॉल जाती हो अपने लिए कपड़े लेती हो इतना देखकर, सोच समझकर फ़ैसला लेती हो तो शादी तो ज़िंदगी का सबसे अहम फ़ैसला है. उसके बारे में गंभीरता से सोचोगी न?
लोग रूमानी बातें करके तुम्हें फांस तो लेंगे बहुत कम ही उसे निभा पाते हैं. अभी हाल ही में एक बुद्धिजीवी/पत्रकार/कवि जिनकी मृत्यु हो गयी. लोग कहते हैं - 'उम्र के आखरी पड़ाव पर उनकी पत्नी ने उनकी भूमिका लिख दी इसलिए मर गए.'
ऐसा भी नहीं है जो शादियाँ बराबरी के उम्र में होती हैं वो नहीं टूटती. टूटना कुछ भी बुरा होता है... रिश्ता कोई भी हो खत्म होने के लिए तो जोड़े नहीं जाते..... और जब वो टूटता है या खत्म होता है तो बहुत दर्द होता..... बहुत तकलीफ़ होती है..... ऐसा दंश है जो जीवन भर सालता है.....
गुलज़ार की फ़िल्म ‘इजाज़त’ में अभिनेत्री कहती है – “जब शादी मर जाती है तो उससे बदबू आने लगती है.”
अपनी ज़िन्दगी का हर फैसला लेने के लिए तुम सब आज़ाद हो लेकिन फ़ैसला अपने दिल और दिमाग़ से लेना ऐसा नहीं कि कोई तुमपर ऐसे फ़ैसले के लिए हावी हो रहा है. रूमानी बाते अच्छी लगती है लेकिन यह बातें हैं, बातों का क्या? जब तुम लीक से हट कर चलती हो और अपनी ज़िन्दगी का ऐसा कोई फ़ैसले करती हो तो तुम्हारी जिम्मेदारी और ज़्यादा बढ़ जाती है कि जो तुम मिसाल क़ायम करने जा रही थी उसमें कितनी कामयाब हुई? कहीं मज़ाक़ बनकर न रह जाओ.
मेरी एक बात हमेशा याद रखना ज़िन्दगी में हमसफर ऐसा चुनना जो तुम्हारी इज्ज़त करे. जिस पर तुम्हें तो क्या दुनिया को नाज़ हो वरना लोग यह भी कहेंगे किसे चुन लिया और तुम्हें कभी अपने फ़ैसले पर अफ़सोस न हो ....
ख़ुश रहों....
खुल कर जियो...
ज़िन्दगी की हर खुबसूरत चीज़ पर तुम्हारा हक़ है...
प्यार
असीमा भट्ट
प्यारी बेटियों
आज तुमसब से कुछ ज़रूरी बात करना चाह रही हूँ.
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में ‘छऊ’ सीखते हुये पैर तोड़कर मेसोनिक क्लिनिक, जनपथ दिल्ली के आर्थोपेडिक से मिली तो हम दोस्त बन गए. उन्हें नाटक देखना बहुत पसंद था इसलिए अक्सर नाटक देखने आते थे. एक दिन डॉक्टर नरेन ने मुझसे पूछा कि अकेली औरत होते हुए क्या दिक्क़तें आईं ?
मैंने कहा- वही जो पूरे युनिवेर्स की औरतों को.....
उन्होंने हँसते हुए कहा - वाह! बहुत आसान जवाब है.
हाँ, जवाब आसान भी है और मुश्किल भी. अकेली औरत और ऊपर से मैंने पत्रकारिता, साहित्य, रंगमंच और सिनेमा सभी क्षेत्र में काम किया है. बहुत कुछ जानती हूँ. तो मेरे अनुभव भी औरों से ज़रा हट के होंगे न ....
एक बार एक नाती-पोते वाले एन.आर.आई. ने प्रस्ताव रखा कि विदेशों में तो अभिनेत्रियाँ अपने से बड़े उम्र के किसी अमीर और फेमस आदमी से शादी कर लेती है. और ज़िन्दगी ऐश से गुज़ारती है. हीरे की अंगूठी मेरे सामने पेश कर दिया.
मैंने कहा – नहीं ले सकती. आपके प्रस्ताव और सुझाव से पहले ऐसा कर चुकी हूँ.
वे चौंके ?
मैंने कहा – हाँ, मैं अपने से उम्र में लगभग 25 साल बड़े मशहूर कवि से शादी करके चुकी हूँ लेकिन ऐश नहीं कर रही. संघर्ष कर रही हूँ और अपना काम कर रही हूँ.
तुमलोग बड़ी हो रही हो. तुमलोगों के सामने भी कई ऐसे प्रस्ताव आयेंगे/आते होंगे.
हमारे सामज में कुछ साहित्यकार, पत्रकार, वरिष्ठ रंगकर्मी और फ़िल्म निर्देशकों ने कुछ ऐसे जोड़ों के नाम रट लिए हैं जिनके रिश्ते में उम्र का फ़ासला रहा है. जैसे चेख़व (रशियन लेखक और नाट्यकार) और अभिनेत्री ओल्गानिपर, चार्लिन चैपलिन और ओना ऑलिन, टॉम क्रूज़ और कैटी होल्म्स, दिलीप कुमार और शायरा बानो.... ऐसे नामों को गिना कर लड़कियों कहते हैं - बहुत अकेला हूँ और गाना सुनाते हैं – ‘न उम्र की सीमा हो न जन्म का बंधन हो....’
यह नहीं कहती कि ऐसे रिश्ते ग़लत हैं लेकिन सही भी नहीं है. ख़ास कर जब कुछ चालाक प्राणी द्वारा फासने के लिए सिर्फ़ तुम्हारा ब्रेन वाश करके या हिप्नोटाइज़ करके ऐसे रंगीन/रूमानी रिश्तों के सपने दिखाए जाते हैं. हकीकत में यह रिश्ते उतने रूमानी नहीं होते.... जितना होना चाहिए. कोई भी फ़ासला इतना आसान नहीं होता कि उसे आसानी से पाटा जाए इसके लिए बहुत समझदारी और परिपक्वता की ज़रूरत होती है.
जब मॉल जाती हो अपने लिए कपड़े लेती हो इतना देखकर, सोच समझकर फ़ैसला लेती हो तो शादी तो ज़िंदगी का सबसे अहम फ़ैसला है. उसके बारे में गंभीरता से सोचोगी न?
लोग रूमानी बातें करके तुम्हें फांस तो लेंगे बहुत कम ही उसे निभा पाते हैं. अभी हाल ही में एक बुद्धिजीवी/पत्रकार/कवि जिनकी मृत्यु हो गयी. लोग कहते हैं - 'उम्र के आखरी पड़ाव पर उनकी पत्नी ने उनकी भूमिका लिख दी इसलिए मर गए.'
ऐसा भी नहीं है जो शादियाँ बराबरी के उम्र में होती हैं वो नहीं टूटती. टूटना कुछ भी बुरा होता है... रिश्ता कोई भी हो खत्म होने के लिए तो जोड़े नहीं जाते..... और जब वो टूटता है या खत्म होता है तो बहुत दर्द होता..... बहुत तकलीफ़ होती है..... ऐसा दंश है जो जीवन भर सालता है.....
गुलज़ार की फ़िल्म ‘इजाज़त’ में अभिनेत्री कहती है – “जब शादी मर जाती है तो उससे बदबू आने लगती है.”
अपनी ज़िन्दगी का हर फैसला लेने के लिए तुम सब आज़ाद हो लेकिन फ़ैसला अपने दिल और दिमाग़ से लेना ऐसा नहीं कि कोई तुमपर ऐसे फ़ैसले के लिए हावी हो रहा है. रूमानी बाते अच्छी लगती है लेकिन यह बातें हैं, बातों का क्या? जब तुम लीक से हट कर चलती हो और अपनी ज़िन्दगी का ऐसा कोई फ़ैसले करती हो तो तुम्हारी जिम्मेदारी और ज़्यादा बढ़ जाती है कि जो तुम मिसाल क़ायम करने जा रही थी उसमें कितनी कामयाब हुई? कहीं मज़ाक़ बनकर न रह जाओ.
मेरी एक बात हमेशा याद रखना ज़िन्दगी में हमसफर ऐसा चुनना जो तुम्हारी इज्ज़त करे. जिस पर तुम्हें तो क्या दुनिया को नाज़ हो वरना लोग यह भी कहेंगे किसे चुन लिया और तुम्हें कभी अपने फ़ैसले पर अफ़सोस न हो ....
ख़ुश रहों....
खुल कर जियो...
ज़िन्दगी की हर खुबसूरत चीज़ पर तुम्हारा हक़ है...
प्यार
असीमा भट्ट
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