Tuesday, February 23, 2016

भारतीय इतिहास की नियति -

भारतीय इतिहास की नियति -
भारतीय इतिहास की नियति -
भारत के ज्ञात इतिहास को देखें तो इसमें एकीकरण की अवधि कम और विघटन की अवधि अधिक दिखाई देती है. आज हम फिर उसी खतरे की ओर बढ़ रहे हैं. केन्द्रीय सत्ता लगातार जनता का विश्वास खोती जा रही है और क्षेत्रीय क्षत्रप शक्तिशाली होते जा रहे हैं. सत्ता के लिए नीति अनीति के विचार को ताक पर रख दिया गया है. भारत का इतिहास बताता है कि विदेशी आक्रमण के बाद ही इसमें एकता की लहर उठती है, पर वह देर तक टिकती नहीं. और संघटन की लहर के १०० वर्ष भी नहीं बीतते कि केन्द्रीय सत्ता लड़्खड़ाने लगती है और कुछ ही वर्षों बाद संघ पूरी तरह बिखर जाता है. उदाहरण के लिए मौर्य साम्राज्य ३२३ ई.पू. में उगा और अशोक की मृत्यु २३२ ई.पू. के साथ ही विघटित होने लगा. ्प्रभावी शक्ति ८९ वर्ष
गुप्त साम्राज्य ३१९ ई. में जन्मा, समुद्रगुप्त के अभ्युदय के साथ ३३५ ई. में सुदृढ़ हुआ और चन्द्रगुप्त द्वितीय के बाद ही ४१३ ई. अस्ताचल की ओर उन्मुख हो गया प्रभावी शक्ति केवल ९४ वर्ष
मुगल सम्राज्य १५२६ में बाबर के राज्यारोहण से आरम्भ हुआ पर प्रभावी शक्ति के रूप में १६०५ में अकबर के साथ चरमोत्कर्ष पर पहुँचा और उसके बाद १७०७ में औरंगजेब की मृत्यु के साथ ही बिखरने लगा. कुल प्रभावी वर्ष १०२
ब्रिटिश प्रभुता की स्थापना १७९८, असहयोग आन्दोलन १९१७ कुल प्रभावी वर्ष ११९
स्वाधीन भारत १९४७--------------- सावधान ६९ वर्ष हो गये हैं. देश के वातावरण में बीमारी के लक्षण दिखाई देने लगते हैं.
यदि अब भी नहीं चेते तो भारतीय संघ में बिखराव की प्रवृत्तिया्ँ देश की राजनीतिक एकता को ले डूबेंगी। याद रहे कि इतिहास किसी का पक्ष नहीं लेता. केवल सावधान करता है. पर इतिहास की कोई नहीं सुनता. कम से कम ताराचन्द्र त्रिपाठी की तो सुनो

No comments:

Post a Comment