Monday, February 22, 2016

हिन्दू तुरक नहीं कछु भेदा सभी मह एक रक्त और मासा ! ----------------------------------------- संत रविदास संत कबीर के समकालीन भक्त कवि और मीराबाई के आध्यात्मिक गुरु थे। दलित परिवार से आए रविदास ने 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' का उद्घोष कर जातिगत श्रेष्ठता की जगह आंतरिक पवित्रता, निर्मलता और मानवीय करुणा का मंत्र दिया। भक्ति और सामाजिक बराबरी का अलख जगाते उनके पद हमारे साहित्य के अनमोल धरोहर हैं। उन्होंने रहस्यमय, कठिन और जटिल दार्शनिक रहस्यों को बोलचाल की सरल भाषा में समझा कर अशिक्षित, अर्धशिक्षित और समाज की मुख्य धारा से कटे लोगों के लिए भक्ति और आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। आज उनकी जयंती के मौके पर भक्ति, जीवन और मानव-मूल्यों के प्रति आस्था जगाने वाले इस महान संत कवि को शत-शत नमन ! प्रभुजी, तुम चंदन हम पानी जाकी अंग-अंग वास समानी। प्रभुजी तुम घन, बन हम मोरा जैसे चितवत चन्द्र चकोरा। प्रभुजी तुम, दीपक हम बाती जाकी जोति बरै दिन राती। प्रभुजी तुम मोती हम धागा जैसे सोनहि मिलत सुहागा। प्रभुजी तुम स्वामी, हम दासा ऐसी भक्ति करै रैदासा। by Dhruv Gupt

हिन्दू तुरक नहीं कछु भेदा
सभी मह एक रक्त और मासा !
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संत रविदास संत कबीर के समकालीन भक्त कवि और मीराबाई के आध्यात्मिक गुरु थे। दलित परिवार से आए रविदास ने 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' का उद्घोष कर जातिगत श्रेष्ठता की जगह आंतरिक पवित्रता, निर्मलता और मानवीय करुणा का मंत्र दिया। भक्ति और सामाजिक बराबरी का अलख जगाते उनके पद हमारे साहित्य के अनमोल धरोहर हैं। उन्होंने रहस्यमय, कठिन और जटिल दार्शनिक रहस्यों को बोलचाल की सरल भाषा में समझा कर अशिक्षित, अर्धशिक्षित और समाज की मुख्य धारा से कटे लोगों के लिए भक्ति और आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। आज उनकी जयंती के मौके पर भक्ति, जीवन और मानव-मूल्यों के प्रति आस्था जगाने वाले इस महान संत कवि को शत-शत नमन !
प्रभुजी, तुम चंदन हम पानी
जाकी अंग-अंग वास समानी।
प्रभुजी तुम घन, बन हम मोरा
जैसे चितवत चन्द्र चकोरा।
प्रभुजी तुम, दीपक हम बाती
जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभुजी तुम मोती हम धागा
जैसे सोनहि मिलत सुहागा।
प्रभुजी तुम स्वामी, हम दासा
ऐसी भक्ति करै रैदासा।
by Dhruv Gupt

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