दलित-अल्पसंख्यकों पर इतने सारे हिंसक हमलों और ऐसा करते हुए कानून को अपने हाथ लेने के ठोस सबूत के बावजूद अगर गौरक्षा दल को अभी तक प्रतिबंधित नहीं किया गया तो शासन के पास किसी अन्य उग्रवादी, हिंसक या कानून हाथ में लेने वाले समाजविरोधी संगठन को प्रतिबंधित करने का नैतिक अधिकार कहां है? ऐसे ही कदमों से शासन के नैतिक प्राधिकार, वस्तुगतता और उसकी न्यायिक छवि पर गंभीर सवाल उठते हैं। शासन किसी अन्य हिंसक-उग्रवादी संगठन पर प्रतिबंध के फैसले को कैसे जायज ठहरायेगा?
No comments:
Post a Comment