आजकल उत्तराखंड में लोकतंत्र की खूब चर्चा है.मजेदार यह है कि लोकतंत्र नामक इस तमाशे में लोक हमेशा की तरह मूकदर्शक है,उसके मुंह खोलने का कोई स्कोप ही नहीं है.रही बात तंत्र की तो सारी लड़ाई,उसी पर कब्ज़ा करने की है. जुलूस तो भाई लोग, लोकतंत्र का पहले ही निकाल चुके थे, आजकल यात्रा निकाल रहे हैं.
लोकतंत्र ऐसी शै हो गया है जिसकी घडी-घडी हत्या होना बताया जा रहा है और जो फिर अगले ही पल जिन्दा हो जा रहा है.इससे कभी-कभी ऐसा लगता है कि इनका लोकतंत्र और उनका लोकतंत्र अलग-अलग है,जो एक-दूसरे को फूटी आँख नहीं देख सकता है.इसलिए इनका लोकतंत्र जिन्दा हो रहा है तो उनका लोकतंत्र द्वेष के मारे, मर जा रहा है और इनके लोकतंत्र के मरने की ख़ुशी में, उनका लोकतंत्र जिन्दा हो जा रहा है.
मुंह में मिठास, बगल में डेनिस वाले भाई साहब, गद्दी से हटाये गए तो उन्होंने कहा लोकतंत्र की हत्या हो गयी है.अदालत से उनके हक़ में फैसला आया तो उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की जीत हो गयी है.मुंह में मिठास, बगल में डेनिस वाले भाई साहब,जरा ये तो समझाओ कि तुम्हारे गद्दी से हटने पर जिस लोकतंत्र की हत्या हो गयी थी,तुम्हारे हक़ में फैसला होने पर उसकी ही जीत हुई या कि जिसकी जीत हुई, वो मरने वाले लोकतंत्र का कोई ममेरा-फुफेरा-चचेरा भाई लोकतंत्र है? कांग्रेस से फरक,भाजपा की तरफ सरक भाई साहब भी लोकतंत्र की रक्षा के लिए हर पल मुस्तैद रहते हैं.एक बार उन्होंने एक पासपोर्ट अफसर को धुन डाला.बाद में बोले,लोकतंत्र की रक्षा के लिए उसकी धुनाई जरुरी थी !एक और हैं जिनके बस नाम में ही गुण हैं,वे तो भारत सांड,के 600 करोड़ रूपये लगा आये ताकि लोक और तंत्र दोनों उनके खीसे में रहे.(कम्पनी के नाम का हिंदी तर्जुमा भी दर्शाता है कि गुण सिर्फ नाम में ही संगत में तक नहीं है).दूसरी तरफ चाल,चरित्र,चेहरे वाली पार्टी है.चाल तो लगातार चल रही है,चेहरे पहले ही कई थे,एक के ऊपर एक.चरित्र शायद कुछ कम पड़ गया था,सो “जेनी”चरित्र अपने साथ मिलाने की कोशिश कर रहे हैं.बहरहाल मुंह में मिठास और बगल में डेनिस वाले भाई साहब की कुर्सी लुढक गयी तो चाल,चरित्र,चेहरे वालों ने कहा कि लोकतंत्र की रक्षा हो गयी है.मुंह में मिठास,बगल में डेनिस वाले भाई साहब आनन-फानन में गद्दी पर जा बैठे तो चाल-चरित्र-चेहरे वालों ने कहा कि लोकतंत्र की हत्या हो गयी !
बताईये इस बित्ते भर के 13 जिलों के राज्य में ये कितना लोकतंत्र है कि जो जीत रहा है,हार रहा है,घड़ी-घड़ी जिन्दा हो रहा है और पल-पल मर रहा है.ऐसा लगता है कि नेताओं से भी ज्यादा लोकतंत्र हो गया है,उत्तराखंड में.इतना ही ज्यादा हो गया है तो भाई, इन सबों को एक-एक प्राइवेट,पर्सनल लोकतंत्र अलॉट कर दो ताकि ये अपने ही लोकतंत्र के साथ मसरूफ रहे हैं.पब्लिक की ऐसी-तैसी न करें.
लोकतंत्र ऐसी शै हो गया है जिसकी घडी-घडी हत्या होना बताया जा रहा है और जो फिर अगले ही पल जिन्दा हो जा रहा है.इससे कभी-कभी ऐसा लगता है कि इनका लोकतंत्र और उनका लोकतंत्र अलग-अलग है,जो एक-दूसरे को फूटी आँख नहीं देख सकता है.इसलिए इनका लोकतंत्र जिन्दा हो रहा है तो उनका लोकतंत्र द्वेष के मारे, मर जा रहा है और इनके लोकतंत्र के मरने की ख़ुशी में, उनका लोकतंत्र जिन्दा हो जा रहा है.
मुंह में मिठास, बगल में डेनिस वाले भाई साहब, गद्दी से हटाये गए तो उन्होंने कहा लोकतंत्र की हत्या हो गयी है.अदालत से उनके हक़ में फैसला आया तो उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की जीत हो गयी है.मुंह में मिठास, बगल में डेनिस वाले भाई साहब,जरा ये तो समझाओ कि तुम्हारे गद्दी से हटने पर जिस लोकतंत्र की हत्या हो गयी थी,तुम्हारे हक़ में फैसला होने पर उसकी ही जीत हुई या कि जिसकी जीत हुई, वो मरने वाले लोकतंत्र का कोई ममेरा-फुफेरा-चचेरा भाई लोकतंत्र है? कांग्रेस से फरक,भाजपा की तरफ सरक भाई साहब भी लोकतंत्र की रक्षा के लिए हर पल मुस्तैद रहते हैं.एक बार उन्होंने एक पासपोर्ट अफसर को धुन डाला.बाद में बोले,लोकतंत्र की रक्षा के लिए उसकी धुनाई जरुरी थी !एक और हैं जिनके बस नाम में ही गुण हैं,वे तो भारत सांड,के 600 करोड़ रूपये लगा आये ताकि लोक और तंत्र दोनों उनके खीसे में रहे.(कम्पनी के नाम का हिंदी तर्जुमा भी दर्शाता है कि गुण सिर्फ नाम में ही संगत में तक नहीं है).दूसरी तरफ चाल,चरित्र,चेहरे वाली पार्टी है.चाल तो लगातार चल रही है,चेहरे पहले ही कई थे,एक के ऊपर एक.चरित्र शायद कुछ कम पड़ गया था,सो “जेनी”चरित्र अपने साथ मिलाने की कोशिश कर रहे हैं.बहरहाल मुंह में मिठास और बगल में डेनिस वाले भाई साहब की कुर्सी लुढक गयी तो चाल,चरित्र,चेहरे वालों ने कहा कि लोकतंत्र की रक्षा हो गयी है.मुंह में मिठास,बगल में डेनिस वाले भाई साहब आनन-फानन में गद्दी पर जा बैठे तो चाल-चरित्र-चेहरे वालों ने कहा कि लोकतंत्र की हत्या हो गयी !
बताईये इस बित्ते भर के 13 जिलों के राज्य में ये कितना लोकतंत्र है कि जो जीत रहा है,हार रहा है,घड़ी-घड़ी जिन्दा हो रहा है और पल-पल मर रहा है.ऐसा लगता है कि नेताओं से भी ज्यादा लोकतंत्र हो गया है,उत्तराखंड में.इतना ही ज्यादा हो गया है तो भाई, इन सबों को एक-एक प्राइवेट,पर्सनल लोकतंत्र अलॉट कर दो ताकि ये अपने ही लोकतंत्र के साथ मसरूफ रहे हैं.पब्लिक की ऐसी-तैसी न करें.
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