Thursday, April 28, 2016

नैनीताल धधक रहा है। भवाली, हल्द्वानी या कालाढूंगी, किसी ओर चले जाएं। हर जगह जलते जंगल, सड़क पर गिरता मलबा। नैनीताल से कुछ दूरी पर एक लंगूर दिखा, बुरी तरह झुलसा हुआ.... तस्वीर लेने की निर्दयता मुझसे बरती नहीं गई। बोतल से कुछ पानी पत्थर पर उड़ेला तो उसे चाटता वह कातर चेहरा जीवन भर याद रहेगा, मेरा दिल सरापता है उन्हें, जो न जाने क्यों इन जंगलों में आग दहका देते हैं। ढलानों पर चीड़ के सुलगते पेड़ गिरने-गिरने को हैं। मुझ जैसे राहगीर को एक लंगूर दिखा है, न जाने कितने प्राणी इस आग में दम तोड़ रहे होंगे। लानत है हमारे मनुष्य होने पर, हम जो इस तरह बरत रहे हैं दुनिया को। आओ पर्यटको, नैनीताल तुम्हारा स्वागत करता है।

नैनीताल धधक रहा है। भवाली, हल्द्वानी या कालाढूंगी, किसी ओर चले जाएं। हर जगह जलते जंगल, सड़क पर गिरता मलबा। नैनीताल से कुछ दूरी पर एक लंगूर दिखा, बुरी तरह झुलसा हुआ.... तस्वीर लेने की निर्दयता मुझसे बरती नहीं गई। बोतल से कुछ पानी पत्थर पर उड़ेला तो उसे चाटता वह कातर चेहरा जीवन भर याद रहेगा, मेरा दिल सरापता है उन्हें, जो न जाने क्यों इन जंगलों में आग दहका देते हैं। ढलानों पर चीड़ के सुलगते पेड़ गिरने-गिरने को हैं। मुझ जैसे राहगीर को एक लंगूर दिखा है, न जाने कितने प्राणी इस आग में दम तोड़ रहे होंगे। लानत है हमारे मनुष्य होने पर, हम जो इस तरह बरत रहे हैं दुनिया को।
आओ पर्यटको,
नैनीताल तुम्हारा स्वागत करता है।

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