Thursday, April 28, 2016

बातचीत में गालियों के इस्तेमाल पर........

..बातचीत में गालियों के इस्तेमाल पर........ 
'साला अमिताभ बच्चन ने शोले में क्या एक्टिंग की है' जैसे आलोचनात्मक विवरण से शुरू होती है भारत के ग्रामीण इलाकों में चर्चायेँ। मिथिला में तो गालियों का कई रस्मों में अपना अलग ही महत्व है। बनारस के हर हर महादेव के साथ इस्तेमाल होने वाले अलंकृत गालियों से सभी परिचित हैं हीं।हरियाणा की भाषा में बीच बीच में जो मिठास से भरे शब्द प्रयोग होते हैं, उसका भी अलग ही मजा है। कुल मिलाकर बात है कि आप कुढ़ते हुए ये नहीं कह सकते हैं कि-- जिनके पास शब्द नहीं होते हैं वही गालियां देते हैं। क्योंकि शब्द-साधक राजेंद्र यादव को आप क्या कहेंगे जो बात बात पर गालियां ही प्रयोग किया करते थे। आप कल्पना करके देखिये कि कोई मंदबुद्धि किसी प्रसंग को गाली के प्रयोग से रोचक बनाते हुए बात कर रहा है। फिर भी मैं मूरखों की भांति ये तो नहीं ही कहूँगा कि जो गाली नहीं देते हैं वो बेवकूफ होते हैं। कहने-सुनने का अपना तरीका है अपना कल्चर है। कुछ लोग गुस्सा करने वालों पे कहते हैं कि ---जो कमजोर होता है वही गुस्सा करता है, इस चक्कर में कई कुंठित लोग जहां तहां उठा के पटक दिये गए। थरमामीटर बनाने वालों के साथ भैया यही दिक्कत है। (मैं स्त्री-विरोधी गाली के पक्ष की बात नहीं कर रहा हूँ।)....

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