Wednesday, April 27, 2016

झारखंड से शुरू होने वाला सबसे पहला हिंदी पत्र या पत्रिका ‘छोटानागपुर दूत’ है. इसकी शुरुआत 1878 में झारखंड के तत्कालीन बिशप जे. सी. व्हीट्ले ने की थी. 1 मई 1878 को मासिक के रुप में इसका प्रकाशन 120 प्रतियों के साथ हुआ था और 1878 के अंत-अंत तक इसकी प्रसार संख्या दोगुनी हो गई थी. ‘छोटानागपुर दूत’ की छपाई स्टोन लिथोग्राफिक प्रेस में हुई थी, जिसे ईसाई मिशनरियों ने 1873 में रांची में स्थापित किया था. यह पत्रिका कब तक निकली इसकी सूचना अनुपलब्ध है, पर इसी के बाद मिशनरियों ने हिंदी पाक्षिक ‘घर-बंधु’ का प्रकाशन संभवत 1879 में किया. तब से लेकर आज तक इसका नियमित प्रकाशन हो रहा है. हिंदी के मठाधीशों की ऐसी कोई पत्रिका शायद नहीं है जो पिछले 135 वर्षों से लगातार दीर्घायु बनी हुई हो. साहित्य में रुचि रखने वाले भाईSanjay Krishna ने अभी हाल में ‘घर-बंधु’ पर जानकारी परक रपट लिखी, जिसे आप यहां पढ़ सकते हैं -

झारखंड से शुरू होने वाला सबसे पहला हिंदी पत्र या पत्रिका ‘छोटानागपुर दूत’ है. इसकी शुरुआत 1878 में झारखंड के तत्कालीन बिशप जे. सी. व्हीट्ले ने की थी. 1 मई 1878 को मासिक के रुप में इसका प्रकाशन 120 प्रतियों के साथ हुआ था और 1878 के अंत-अंत तक इसकी प्रसार संख्या दोगुनी हो गई थी. ‘छोटानागपुर दूत’ की छपाई स्टोन लिथोग्राफिक प्रेस में हुई थी, जिसे ईसाई मिशनरियों ने 1873 में रांची में स्थापित किया था. यह पत्रिका कब तक निकली इसकी सूचना अनुपलब्ध है, पर इसी के बाद मिशनरियों ने हिंदी पाक्षिक ‘घर-बंधु’ का प्रकाशन संभवत 1879 में किया. तब से लेकर आज तक इसका नियमित प्रकाशन हो रहा है. हिंदी के मठाधीशों की ऐसी कोई पत्रिका शायद नहीं है जो पिछले 135 वर्षों से लगातार दीर्घायु बनी हुई हो. साहित्य में रुचि रखने वाले भाईSanjay Krishna ने अभी हाल में ‘घर-बंधु’ पर जानकारी परक रपट लिखी, जिसे आप यहां पढ़ सकते हैं -
तस्वीर 1. घर-बंधु (1882) 2. बिशप जे. सी. व्हीट्ले 3. स्टोन लिथोग्राफिक प्रेस

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