Dilip C Mandal
आप हमारे हैं कौन?
गुजरात में आज SC संकट में है, तो मुसलमान उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है.
अहमदाबाद से ऊना की आजादी कूच में न सिर्फ मुसलमान शामिल हैं, बल्कि मुसलमान बस्तियों में यात्रा पर फूल बरसाए जा रहे हैं. अगर यही इंसानियत 2002 में दलितों ने दिखाई होती और दंगाइयों के सामने दीवार बन कर खड़े हो गए होते... तो भारत का राजनीतिक इतिहास कुछ और होता.
मुसलमान यह नहीं पूछ रहा है कि 2002 में आप हमारे साथ क्यों नहीं थे. मुसलमान मजलूमों के साथ खड़ा है, इसलिए आपके साथ है. दरअसल वह आपके नहीं, न्याय और इंसानियत के पक्ष में फूलमाला लेकर आपका स्वागत कर रहा है. वह बीजेपी राज में, जोखिम उठाकर आपकी यात्रा पर फूल बरसा रहा है.
लेकिन याद रहे. एकता और दोस्ती एकतरफा नहीं होती. गुजरात के दलितों को 2002 की गलती के लिए प्रायश्चित करना चाहिए.
यूपी में मुसलमानों का वोट चाहिए और गुंडे मुजफ्फरनगर कांड करते रहें, ये दोनों एक साथ नहीं हो पाएगा. दंगा रोकना दलितों की जिम्मेदारी है.
दलितों को भी मुसलमानों का साथ देने की अलग से कोई जरूरत नहीं है. वे न्याय और इंसानियत के पक्ष में खड़े हो जाएं. वे अपने आप को दंगाइयों के खिलाफ खड़ा पाएंगे.
न्याय के साथ खड़ा होना क्या इतना मुश्किल है?
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