मेरा ईमान क्या पूछती हो मुन्नी
शिया के साथ शिया , सुन्नी के साथ सुन्नी
मुअज्ज़िन - ऐ मियां , खुदा का ख़ौफ खाओ । मुसलमान होकर एक तो खुद कभी मस्ज़िद नहीं आते , और ऊपर से अपनी कमबख्त बकरी को मस्ज़िद भेज देते हो । साग पात जो थोडा बहुत रोपा है , उसका नुक्सान कर जाती है ।
कबीर - हुज़ूर , जानवर है । मैं नहीं भेजता । खुद चली आती होगी । मैं तो कभी नही आता । अब जानवर को कौन समझाये कि कहाँ जाना चाहिए , और कहाँ नहीं ।
मोरल -- जाओ ही मत शिंगणापुर , ताकि पंगा न हो ।
पदम् सम्मान को लेकर जिन गंजे एक्टर जी की चर्चा आजकल चरम पर है , उनकी अभिनय मेधा से मैं परिचित नहीं , क्योंकि मैंने पिछले 30 साल से कोई फ़िल्म नही देखी । करीब 8 साल पहले , पुणे के एक कार्यक्रम में मुझे अवश्य उनके साथ कुछ घण्टे गुज़ारने और लन्च करने का अवसर मिला था । जब उन्हें बोलने के लिए मंच पर आहूत किया गया , मैं तभी जान सका कि वह एक्टर हैं , अन्यथा मैं उन्हें वकील समझ रहा था । मेरे सामान्य ज्ञान का ही उथलापन है , कि मैं तब तक उन्हें और वकील उज्ज्वल निकम को शक्ल से नहीं जानताथा , और दोनों में घाल मेल कर रहा था । भले ही उससे पहले मैंने निसन्देह एक्टर जी के चित्र कई बार देखे होंगे ।
खैर , मुझे आजकल ही विदित हुआ कि गंजे एक्टर जी कश्मीरी पंडत हैं , और अपने सजातियों के लिए उद्विग्न भी हैं । उचित ही है । उन पँडतों का पुनर्वास होना ही चाहिए । लेकिन मैंने उग्रवाद से पहले का वह कश्मीर भी देखा है , जब वहां की 99 फीसदी आबादी का मुट्ठी भर चंट पँडतों के हाथों भयंकर शोषण होता था । मैंने उस धरती के स्वर्ग में वहां के निवासियों को बर्फ में नंगे पाँव बोझा ढोते भी देखा है । कालीन बुनकरों की मेहनत पर धर या रैना साहब को मुम्बई में ऐश करते भी देखा है । .... अस्तु , अब वहां शांति क़ायम हो । एक्टर पंडत जी और उनके बांधव भी स्व गृह लौटें । लेकिन अब शोषण का भी अंत हो । न केवल कश्मीर , बल्कि सारे विश्व में ।
अंत में एक बात और । उस दिन , 8 साल पहले , लन्च के वक़्त मैं हंसमुख गंजे एक्टर जी को मराठी समझ कर मराठा परम्पराओं का यश गान करता रहा , और एक्टर जी भी हंस हंस कर हामी भरते रहे । आज जान कर खुश हूँ कि वह भी मेरी तरह पहाड़ी ब्राह्मण हैं ।
शिया के साथ शिया , सुन्नी के साथ सुन्नी
मुअज्ज़िन - ऐ मियां , खुदा का ख़ौफ खाओ । मुसलमान होकर एक तो खुद कभी मस्ज़िद नहीं आते , और ऊपर से अपनी कमबख्त बकरी को मस्ज़िद भेज देते हो । साग पात जो थोडा बहुत रोपा है , उसका नुक्सान कर जाती है ।
कबीर - हुज़ूर , जानवर है । मैं नहीं भेजता । खुद चली आती होगी । मैं तो कभी नही आता । अब जानवर को कौन समझाये कि कहाँ जाना चाहिए , और कहाँ नहीं ।
मोरल -- जाओ ही मत शिंगणापुर , ताकि पंगा न हो ।
पदम् सम्मान को लेकर जिन गंजे एक्टर जी की चर्चा आजकल चरम पर है , उनकी अभिनय मेधा से मैं परिचित नहीं , क्योंकि मैंने पिछले 30 साल से कोई फ़िल्म नही देखी । करीब 8 साल पहले , पुणे के एक कार्यक्रम में मुझे अवश्य उनके साथ कुछ घण्टे गुज़ारने और लन्च करने का अवसर मिला था । जब उन्हें बोलने के लिए मंच पर आहूत किया गया , मैं तभी जान सका कि वह एक्टर हैं , अन्यथा मैं उन्हें वकील समझ रहा था । मेरे सामान्य ज्ञान का ही उथलापन है , कि मैं तब तक उन्हें और वकील उज्ज्वल निकम को शक्ल से नहीं जानताथा , और दोनों में घाल मेल कर रहा था । भले ही उससे पहले मैंने निसन्देह एक्टर जी के चित्र कई बार देखे होंगे ।
खैर , मुझे आजकल ही विदित हुआ कि गंजे एक्टर जी कश्मीरी पंडत हैं , और अपने सजातियों के लिए उद्विग्न भी हैं । उचित ही है । उन पँडतों का पुनर्वास होना ही चाहिए । लेकिन मैंने उग्रवाद से पहले का वह कश्मीर भी देखा है , जब वहां की 99 फीसदी आबादी का मुट्ठी भर चंट पँडतों के हाथों भयंकर शोषण होता था । मैंने उस धरती के स्वर्ग में वहां के निवासियों को बर्फ में नंगे पाँव बोझा ढोते भी देखा है । कालीन बुनकरों की मेहनत पर धर या रैना साहब को मुम्बई में ऐश करते भी देखा है । .... अस्तु , अब वहां शांति क़ायम हो । एक्टर पंडत जी और उनके बांधव भी स्व गृह लौटें । लेकिन अब शोषण का भी अंत हो । न केवल कश्मीर , बल्कि सारे विश्व में ।
अंत में एक बात और । उस दिन , 8 साल पहले , लन्च के वक़्त मैं हंसमुख गंजे एक्टर जी को मराठी समझ कर मराठा परम्पराओं का यश गान करता रहा , और एक्टर जी भी हंस हंस कर हामी भरते रहे । आज जान कर खुश हूँ कि वह भी मेरी तरह पहाड़ी ब्राह्मण हैं ।
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