Friday, April 22, 2016

अम्बेडकर तो आह्वान कर रहे थे 1949 में कि राष्ट्र बनाना है तो जाति से ऊपर उठो. यहाँ हालत ये है कि 21वीं सदी में बहुतेरों के लिए अपनी जाति ही राष्ट्र है और अपनी जाति से बाहर के राष्ट्र को वे निकाल बाहर करना चाहते हैं.यह जातीय श्रेष्ठता का मिथ्या बोध,एक रोग है,जिसके उपचार की जरुरत है. जातिवादी जहर से भरे दिमागों से यह जहर निकालने के लिए जेल नहीं मनोचिकित्सकों की जरुरत है.


इंद्रेश मैखुरी
दिल्ली से उत्तराखंड वापस पहुंचा तो पता चला कि गोपेश्वर महाविद्यालय में राजनीति शास्त्र के एक प्रवक्ता को अम्बेडकर के बारे में अनर्गल पोस्ट फेसबुक पर डालने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया है.लिखने,बोलने के लिए गिरफ्तारी का मैं समर्थन नहीं करता,इसे दुखद मानता हूँ.लेकिन उतना ही दुखद एक राजकीय उच्च शिक्षण संस्थान के प्राध्यापक का जातीय पूर्वाग्रहों से ग्रसित होना भी है.जब कोई शिक्षक जातीय दुराग्रह से ग्रसित हो तो वह कैसे भावी नागरिक तैयार करेगा,यह समझा जा सकता है.यह भी सत्य है कि उक्त शिक्षक ने अम्बेडकर के प्रति अपनी नफरत को लिख कर अभिव्यक्त किया,बहुतेरे लोग जो नहीं प्रकट करते,वे भी इस तरह का ख्याल तो रखते ही हैं.इसके पीछे कोई आलोचनात्मक मुल्यांकन नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ जातीय दुराग्रह काम कर रहा होता है.अम्बेडकर स्वयं जाति को राष्ट्रविरोधी मानते थे.संविधान सभा में अपने भाषण में उन्होंने कहा था –“The castes are anti national.In the first place they bring about separation in social life.They are anti national also because they generate jealousy and antipathy between caste and caste.But we must overcome all these difficulties if we wish to become a nation in reality.”(“जातियां राष्ट्र विरोधी हैं.सर्वप्रथम इसलिए क्यूंकि वे सामाजिक जीवन में भेद उत्पन्न करती हैं.वे इसलिए भी राष्ट्र विरोधी हैं क्यूंकि वे जाति और जाति के बीच इर्ष्या और द्वेष उत्पन्न करती हैं.लेकिन यदि हम सच्चे अर्थों में राष्ट्र बनना चाहते हैं तो हमें इन कठिनाईयों से पार पाना होगा”. अम्बेडकर तो आह्वान कर रहे थे 1949 में कि राष्ट्र बनाना है तो जाति से ऊपर उठो. यहाँ हालत ये है कि 21वीं सदी में बहुतेरों के लिए अपनी जाति ही राष्ट्र है और अपनी जाति से बाहर के राष्ट्र को वे निकाल बाहर करना चाहते हैं.यह जातीय श्रेष्ठता का मिथ्या बोध,एक रोग है,जिसके उपचार की जरुरत है. जातिवादी जहर से भरे दिमागों से यह जहर निकालने के लिए जेल नहीं मनोचिकित्सकों की जरुरत है.

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