Sunday, April 17, 2016

माहौल सन् 93-97 जैसा डरावना नजर आ रहा है- अशांति, दहशत और निराशा

Urmilesh Urmil
कश्मीर में अमन-चैन का माहौल शायद 'देशभगतों' को पसंद नहीं आ रहा था. पहले NIT और अब कुपवाड़ा इलाके के घटनाक्रमों के प्रशासनिक-कुप्रबंधन के जरिये घाटी में फिर से तनाव और टकराव पैदा कर दिया गया. बीते कई सालों से घाटी में आम लोग और हम जैसे पत्रकार भी बेखौफ होकर आते-जाते थे. अभी पिछले चुनाव में मैं सोपोर-बरामूला-कुपवाडा़ के कई सुदूरवती॓ इलाकों से गुजरा. चुनाव और घाटी के बेहतर होते माहौल पर देश के कुछ अखबारों और BBC. hindi. Com के लिये लिखा भी था. लेकिन अब सुन रहा हूं कि इन इलाकों में बाहर से लोगों का आना जाना ही ठप नहीं है, माहौल सन् 93-97 जैसा डरावना नजर आ रहा है- अशांति, दहशत और निराशा. आज खबर है कि गंदरबल और कंगन जैसे श्रीनगर के नजदीकी इलाके भी तनाव में दहक रहे हैं. अर्द्धसैनिक बल की अतिरिक्त कंपनियां भेजनी पड़ी हैं. हो सकता है, इसके पीछे कुछ स्थानीय खुराफातियों की भूमिका हो, पर राजनीतिक प्रशासनिक कुप्रबंधन के लिये तो सिफ॓ और सिफ॓ केंद्र और राज्य की सरकार जिम्मेदार है. दोनों को 'देशभगत' ही चला रहे हैं, कोई और नहीं! कश्मीर को पटरी पर लाने में वाजपेयी और मनमोहन सरकार के कुछ महत्वपूण॓ सियासी कदमों के अलावा संपूण॓ दक्षिण एशियाई क्षेत्र की जियो-पालिटिक्स में हुए कुछ बदलावों का भी योगदान था. पर मेहनत और समझदारी से हासिल उन कामयाबियों को पता नहीं क्यों अब रौंदा जा रहा है! क्या JNU और HCU से पेट नहीं भरा था!

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