सुख-दु:ख में साथ देती है। सत्यनारायण की एक और विशेषता है कथारस। वे कहानी कहना जानते हैं और बखूबी जानते हैं। पात्रानुकूल बोली-बानी पाठक को पात्रों के करीब ले आती है। कहानी के बीच-बीच में हास्य-व्यंग्य का छौंक सरसता बनाए रखता है। यह ग्रामीणों की विशेषता है, उनकी जिजीविषा का जीवन रस। वे कठिन-से-कठिन परिस्थितियों में भी हँस सकते हैं, हँसा सकते हैं। और साहित्यकार की ग्रामीण जीवन पर गहरी पकड़ है। जो लोग हिन्दी साहित्य में ग्रामीण जीवन के चित्रण के अभाव का रोना रोते हैं उन्हें यह उपन्यास अवश्य पढ़ना चाहिए। यहाँ गाँव अपने पूरे हाव-भाव, अच्छाई-बुराई, अपने हर रंग, अपनी हर छटा के साथ पूरा-पूरा उपस्थित है।
('गांव भीतर गांव' पर विजय शर्मा की एक विस्तृत समीक्षा का एक अंश )
('गांव भीतर गांव' पर विजय शर्मा की एक विस्तृत समीक्षा का एक अंश )
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