चुनाव मैदान में बंगाल के सितारे गर्दिश में।
ज्योतिर्मयी,भूटिया,
लक्ष्मीरतन और रूपा गांगुली भारी मुश्किल में
एकसकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
हस्तक्षेप
हो सकात है कि बंगाल के इस चुनाव में सितारों की चमक कुछ ज्यादा ही फीकी हो जाये क्योंकि चुनाव मैदान में बंगाल के सितारे गर्दिश में है और हालत यह कि चमकदार सितारे ज्योतिर्मयी सिकदर, बाइचुंग भूटिया,लक्ष्मीरतन शुक्ला और रूपा गांगुली भारी मुश्किल में हैं।
भारतीय राजनीति इस वक्त सितारों के हवाले हैं।
राजनेताओं की छवि धूमिल होने के अभूतपूर्व संकट से जूझ रही राजनीति को सितारों की चमक दमक में आसान जीत नजर आती है।इन सितारों को हाल में हम खूब जिताते रहे हैं।
दीदी के परिवर्तन में मूनमून लेन से लेकर संध्या राय,तापस पाल से लेकर देवश्री राय तक सितारे ही सितारे हैं।बांग्ला फिल्मों के हार्टथ्राब देब भी दीदी के सांसद हैं।
अबकी दफा लगता है कि सितारे भी गर्दिश में हैं,जिन्हें खून पसीना एक करने के बाद भी जीत का रास्ता नजर नहीं आ रहा है।इनमें फिल्मी सितारोंं से कहीं ज्यादा मुश्किल में फंसे हैं खिलाड़ी।वैसे रूपा फिल्म स्टार गांगुली और लाकेट चटर्जी की हालत भी पतली है।
किसी समय दुनियाभर में खेल जगत में भारत का नाम रोशन करने वाले खिलाड़ी अब बंगाल के चुनाव मैदान में लू के बीच झुलसते हुए उसी जन समर्थन की उम्मीद में हैं जो उन्हें खेल के मैदान में मिलता रहा है।
इनमे तेज धाविका ज्योतिर्मयी सिकदर हैं तो भारतीय फुटबाल के अतुल्य फुटबाल सितारा बाइचुंग भूचिया भी हैं।
भारतीय फुटबाल के भूटिया के समकानलीन दिवेन्दु विश्वास भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं तो हावड़ा में चुनाव मैदान में हैं लक्ष्मी रतन शुक्ला भी,जो बंगाल की रणजी क्रिकेट टीम के हाल तक कप्तान भी रहे हैं।इनके अलावा फुटबाल खिलाड़ी षष्ठी दुलै और रहीम नबी भी मैदान में हैं।
इनमें से अब तक राजनीतिक कामयाबी की नजर से सबसे आगे ज्योतिर्मय सिकदर हैं जो कृष्णनगर से लोकसभा चुनाव तो जीत गयी लेकिन लोकप्रियता जो उनने अपनी खेल उपलब्धियों से हासिल की थी,संसद में पहुंचते न पहुंचते बहुत जल्द खो दी।
साल्टलेक में एक बार रेस्तरां के मालिक उनके खिलाड़ी पति अवतार सिंह रहे हैं,जिसे लेकर अखबारी सुर्खियों में विवादों में रही ज्योतिर्मयी और वे अगला चुनाव उसी कृष्णनगर से हार गयी।
वहीं ज्योतिर्मयी सिकदर दक्षिण 24 परगना के कोलकाता संलग्न उपनगरीय विधानसभा क्षेत्र सोनारपुर से माकपा के प्रत्याशी हैं और उनके सामने जनता की आस्था दोबारा हासिल करना मौराथन दौड़ जीतने के बराबर लग रहा है।
वैसे ज्योतिर्मयी में दम बहुत है लेकिन कभी वाम जमाने में माकपा के गढ़ सोनारपुर में माकपा की हालत अब बहुत अच्छी नहीं है।
सोनारपुर नगरपालिका पर तृणमूल कांग्रेस का कब्जा है तो सारे वार्डों में सत्तादल का संगठन मजबूत है।
तृणमूल कांग्रेस ने सोनारपुर के मुसलमानों के वोटों के मद्देनजर फिरदौसी बेगम को चनाव मैदान पर उतारा है हालांकि इस सीट पर इलाके के बिल्डर सिंडिकेट गिरोह के एक बाहुबलि की नजर थी।वे सज्जन हाल में दक्षिण कोलकाता के कमाल गाजी में एक फ्लाई ओवर के निर्माण के सिलिसिले में विवादों में घिर जाने की वजह से टिकट हासिल नहीं कर सकें और फिलहाल फिरदौसी के साथ हैं।
वैसे पिरदौसी बेगम को लेकर कोई विवाद नहीं है और तृणमूल में कोई झगड़ा फसाद नजर आ रहा है।
मुश्किल यह है कि फिरदौसी खुद राजनीति में उतनी सक्रिय नहीं हैं और उनके पति को ही लोग ज्यादा जानते हैं और दरअसल धारणा यही है कि असल में फिरदौसी पति के लिए डमी बतौर लड़ रही हैं और आगे वे ही राजकाज संभालेंगे और उनके साथ फिर वही बिल्डर सिंडिकेट का लफड़ा है।
बदले हुएहालात में ज्योतिर्मयी के लिए सोनारपुर में पांव रखने की जमीन यही है कि लोग फिरदौसी के मुकाबले उन्हें ज्यादा जानते हैं तो दिक्कत भी वही है कि वोटर ज्योतिर्मयी को कुछ ज्यादा ही जानते हैं।
ज्योतिर्मयी कृषअणनगर से सांसदी गवांकर सौनारपुर पधारी हैं,यह बदहजमी का सबब भी है।लेकिन पिरदौसी के मुकाबले उनका वजन कुछ ज्यादा है और वाम कांग्रेस गठबंधन कैसे हालात बदल पाता है,इसपर उनकी हार जीत निर्भर है।
दूसरी ओर सिलिगुड़ी से फुटबाल सितारा बाइचुंग भूटिया सत्तादल तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार है और उनकी छवि निर्विवाद है और लोकप्रियता उनकी कम भी नहीं हुई है।
भूटिया के मुकाबले हैं कांग्रेस वाम गठबंधन के हैवीवेट उम्मीदवार वाम जमाने के दबंग मंत्री और हाल में सिलीगुड़ी फतह करके मेयर बने अशोक भट्टाचार्य,जिनकी गली गली गहरी पैठ है और लोकप्रियता में भी वे भूटिया से पीछे नहीं है।
हाल में सिलीगुड़ी में तृणमूल समर्थक पार्टी छोड़कर कांग्रेस वाम गठबंधन के हक में चले गये तो शुरुआती झटके से अभी उबरे भी नहीं है भूटिया।उन्हें आगे और झेलना है।
अशोक भट्टाचार्य ने तृणमूल की सारी रणनीति फेल करके बंगाल में वा कांग्रेस गठजोड़ बनाकर सिलीगुड़ी नगर निगम को पिछले साल ही तृणमूल के कब्जे से निकाला है और किसी राजनेता के बूते उनका मुकाबला संभव नहीं है,इसीलिए भूटिया की लोकप्रियता को वहां दांव पर लगा दिया दीदी ने।
नेतृत्व और संगठन,अनुभव के लिहाज से अशोक बाबू का मुकाबला करने के लिए भूटिया को अभी बहुत दौड़ लगानी है।फिरभी गोल का मुहाना खुलेगा यानी नहीं,यह कहना मुश्किल है।
सबसे ज्यादा मुश्किल में हैं हावड़ा में तृणमूल प्रत्याशी बने क्रिकेटर लक्ष्मीरतन शुक्ला,जहां उनके मुकाबले हैं भाजपा की ओर से स्टार प्रत्याशी रूपा गांगुली जिनका उनकी पार्टी में ही प्रबल विरोध है।
पहले इस सीट पर शुक्ला और रूपा गांगुला का मुकाबवला सीधा माना जा रहा था।लेकिन अब हालात इतने तेजी से बदले हैं कि वाम समर्थित कांग्रेस के संतोष पाठक बढ़त पर दीख रहे हैं।हालांकि चुनाव प्रचार के नजरिये से शुक्ला और रूपा दोनों की धूम मची है।
चुनाव जीतने के तौर तरीके तुरुप के पत्ते की तरह आजमाने में कांग्रेस के बाहुबलि प्रत्याशी संतोष पाठक की अलग ख्याति है और करोड़पति उम्मीदवारों शुक्ला और रूपा के मुकाबले उनका धनबल भी कुछ ज्यादा ही है।
उत्तार 24 परगना के बसीरहाट से दीपेंदु विश्वास और हुगली के पांडुआ से रहीम नबी तृणमूल प्रत्याशी हैं और कांटे का मुकाबला उनके लिए भी हैं।फिरभी उनकी हालत दूसरे सितारों के मकाबले बेहतर बतायी जा रही है।
षष्ठी दुलै नदिया के धनेखाली में भाजपा प्रत्याशी हैं,जिनकी माली हालत बहुत अच्छी नहीं है और मुकाबले में वे कहीं नजर नहीं आ रहे हैं।भाजपा भी उन्हें लेकर गंभीर नहीं है और उनके साथ न पार्टी के नाता हैं और न कार्यकर्ता।वे अकेले लड़ रहे हैं।
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