राजीव नयन बहुगुणा
भीषण जल संकट से निबटने का एक उपाय यह है कि विदेसी नस्ल के संकर फूलों की खेती बन्द की जाए । नकदी के लालच में महाराष्ट्र में जम कर फूलों की खेती होती है । यह संकर नस्ल के बाँझ फूल हैं , जिनमे न बीज होता है और न पराग । ये सिर्फ देखने में सूंदर हैं , अन्यथा इनमे रस और गन्ध नहीं है । प्राकृतिक फूलों पर बैठने वाले भँवरे , मधु मक्खी तथा अन्य कीट दूसरे पादपों के लिए एंटी बायोटिक का काम भी करते हैं । प्राकृतिक फूलों की अपेक्षा हाई ब्रीड फूलों के लिए कई हज़ार गुना पानी चाहिए । आज जब महाराष्ट्र में ट्रेन से पानी भेजना पड़ रहा है , तब हिसाब लगाइये कि इन फूलों से प्राप्त विदेशी मुद्रा के लिए हमने क्या कीमत चुकाई है । यह सीधे सीधे अपनी जल सम्पदा का एक्सपोर्ट है ।फूलों की माला और बुके चाहने वाले देवताओं और नेताओं का भी बहिष्कार हो । विदेसी नस्ल के फूलों की जगह देसी , जंगली और प्राकृतिक फूलों के उत्पादन पर ज़ोर दिया जाए ।
लातूरकरांची तहान भागविण्यासाठी मिरजेहून निघालेली पाणी एक्स्प्रेस उस्मानाबाद पर्यंत पोहचली असून आज पहाटे तीन वाजेपर्यंत लातूरमध्ये पोहचण्याची शक्यता आहे.


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