ग्राउन्ड दलित रिपोर्टः 18
लधानियों की ढाणी,दलित नाबालिग छात्रा का अपहरण कर सामूहिक बलात्कार
अभी दलितों के साथ अत्याचारों को लेकर दलित वर्ग के जुझारू साथियों का धरना समाप्त भी नहीं हुआ कि एक बार फिर 15 वर्षीय कक्षा 10 में अध्ययनरत दलित छात्रा निवासी लधानियों की ढाणी, पुलिस थाना बायतू जिला बाडमेर, का अपहरण कर सामूहिक बलात्कार के प्रकरण ने फिर झकझोर दिया।
घटना दिनांक 1 सितम्बर 2016 की है जब कि दलित नाबालिग बालिका राजकीय माध्यमिक विद्यालय बायतु से पढकर दोपहर लगभग 2 बजे अपने घर पैदल जा रही थी। उसने स्कूल के सामने के स्टोर से घर का आवश्यक सामान भी खरीदा और अस्पताल के पास पहुंची तो दरिंदे गोमदा राम पुत्र सांगाराम, राहुल पुत्र पूनमाराम तथा गणेष जाति जाट निवासी बायतु जिला बाडमेर ने बालिका का मुंह बंद कर दिया और सफेद रंग की बोलेरो में जबरदस्ती पटक दिया। इस गाडी को गोमदा राम जाट चला रहा था। तीनों अत्याचारी दलित बालिका का अपहरण कर रासाराम की प्याऊ के आगे सुनसान धारों की ओर ले गये और तीनों ने उस नाबालिग के साथ बारी-बारी से दुष्कर्म किया। इसके बाद बालिका को धमकी दी कि किसी को बताया तो जान से मार देंगे और उसे राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 11-2 पर लधानियों की ढाणी के पास बेहोसी की हालत में पटक कर चले गये। जैसे-तैसे बालिकाअपने घर पहुंची लेकिन इस घटना के बारे में डर के कारण नहीं बताया। बालिका ने स्कूल जाना भी बन्द कर दिया, बाद में बालिका के अभिभावकों को जानकारी मिलने पर दिनांक 7-9-16 को पुलिस थाना बायतू जिला बाडमेर, में प्रथम सूचना रिपोर्ट अन्तर्गत धारा 363, 366ए, 376डी आईपीसी, धारा 3 बी (1,2), 3 (2)(5) एस.सी./एस.टी. एक्ट तथा धारा 5-6 पोस्को एक्ट दर्ज करवाई गई। गांव वाले दबंगों ने पीडिता के परिवार पर राजीनामा करने के लिए हर प्रकार से दबाव बनाना शुरू किया लेकिन पीडित परिवार ने किसी भी दवाब को मानने से इन्कार कर दिया।
मजेदार बात यह है कि दलित प्रकरणों में प्रायः संवेदनहीन पुलिस ने घटना को जिस प्रकार प्रस्तुत किया उससे लगता है कि पुलिस ने राज्य में दलित प्रकरणों को तरजीह नहीं देने की कसम ले रखी है। पीडिता के पिता ने जो रिपोर्ट दी उसे दर किनार करते हुए एफ.आई.आर. में इस प्रकार के तथ्य पुलिस कार्यवाही में लिखे गये हैं जिससे यह माना जा रहा है कि पीडित परिवार से राजीनामा करने के लिए एफ.आई.आर. दर्ज करवाने में देरी हुई। जबकि पीडिता ने डर के कारण परिवार को नहीं बताया था। बाद में उसके पिता द्वारा स्कूल नहीं जाने का कारण पूछा तो उसने रो-रो कर उसके साथ हुई अमानवीय घटना के बारे में बताया तब रिपोर्ट दर्ज करवाई गई। हालांकि पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज होने के बाद अत्याचारियों को गिरफ्तार कर लिया। इनमें से न्यायालय ने गोमदा राम पुत्र सांगाराम जाट को जेल भेज दिया तथा राहुल पुत्र पूनमाराम जाट तथा गणेष जाट को नाबालिग होने के कारण बाल सुधार गृह भेज दिया है।
प्रशासन ने भी इस घटना को हल्के में लिया है। चुकि प्रकरण अनुसूचित जाति/अनुसूचित जन जाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम धारा 3 बी (1,2), 3 (2)(5) एस.सी./एस.टी. एक्ट तथा धारा 5,6 पोस्को एक्ट के तहत दर्ज हुआ इसलिए अनुसूचित जाति/अनुसूचित जन जाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के संशोधित नियम 12 (4) मे मिलने वाली आर्थिक सहायता राशि 5 लाख रूपये का 50 प्रतिशत 2 लाख 50 हजार रूपये चिकित्सा परीक्षण के बाद दिये जाने का प्रावधान है जो अभी तक भी पीडिता को नहीं मिले हैं। 26 जनवरी 2016 से संषोधित अधिनियम लागू हो चुका है लेकिन राज्य सरकार की अकर्मण्यता और लापरवाही के चलते इसके प्रावधान लागू नहीं हो पाए हैं। दलित वर्ग के विधायकों और सांसदों को आगे आकर इनके प्रभावी बनाने के लिए लोबिंग करनी चाहिए। विधान सभा में विधायकों की अनुसूचित जाति कल्याण समिति को केवल चाय-नाश्ता वाली बैठक की परिपाटी को त्याग कर कुछ करना चाहिए और साथ ही उन्हें यह भी मान लेना चाहिए कि वे जिन्दगी भर के लिए इस कमेटी के सदस्य नहीं हैं। एक दिन इन्हें हमारे बीच में आना पडेगा तब दलित समाज इनसे चुन-चुन कर बदला ले लेगा। दलित साथियों और दलितों पर काम करने वाली संस्थाओं को भी ऐसे मुद्दों को सरकार के सामने प्रभावी ढंग से उठाना चाहिए। अन्त में यही कहना चाहता हूं कि क्या यही अच्छे दिन हैं? क्या यही इक्कीसवीं सदी है? क्या दलितों के साथ इसी प्रकार के अत्याचार होते रहेंगे? क्या गुजरात के दलितों की भांति राजस्थान में भी दलित एकता का विगुल बज सकता है? और भी बहुत से प्रश्न मुंह बाये खडे हैं।
गोपाल राम वर्मा
मो.9414427200 तथा ईमेल- snvsbharatpur@gmail.com
(लेखक सामाजिक न्याय एवं विकास समिति के सचिव तथा स्टेट रेस्पोन्स ग्रुप,राजस्थान के राज्य समन्वयक हैं।)
लधानियों की ढाणी,दलित नाबालिग छात्रा का अपहरण कर सामूहिक बलात्कार
अभी दलितों के साथ अत्याचारों को लेकर दलित वर्ग के जुझारू साथियों का धरना समाप्त भी नहीं हुआ कि एक बार फिर 15 वर्षीय कक्षा 10 में अध्ययनरत दलित छात्रा निवासी लधानियों की ढाणी, पुलिस थाना बायतू जिला बाडमेर, का अपहरण कर सामूहिक बलात्कार के प्रकरण ने फिर झकझोर दिया।
घटना दिनांक 1 सितम्बर 2016 की है जब कि दलित नाबालिग बालिका राजकीय माध्यमिक विद्यालय बायतु से पढकर दोपहर लगभग 2 बजे अपने घर पैदल जा रही थी। उसने स्कूल के सामने के स्टोर से घर का आवश्यक सामान भी खरीदा और अस्पताल के पास पहुंची तो दरिंदे गोमदा राम पुत्र सांगाराम, राहुल पुत्र पूनमाराम तथा गणेष जाति जाट निवासी बायतु जिला बाडमेर ने बालिका का मुंह बंद कर दिया और सफेद रंग की बोलेरो में जबरदस्ती पटक दिया। इस गाडी को गोमदा राम जाट चला रहा था। तीनों अत्याचारी दलित बालिका का अपहरण कर रासाराम की प्याऊ के आगे सुनसान धारों की ओर ले गये और तीनों ने उस नाबालिग के साथ बारी-बारी से दुष्कर्म किया। इसके बाद बालिका को धमकी दी कि किसी को बताया तो जान से मार देंगे और उसे राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 11-2 पर लधानियों की ढाणी के पास बेहोसी की हालत में पटक कर चले गये। जैसे-तैसे बालिकाअपने घर पहुंची लेकिन इस घटना के बारे में डर के कारण नहीं बताया। बालिका ने स्कूल जाना भी बन्द कर दिया, बाद में बालिका के अभिभावकों को जानकारी मिलने पर दिनांक 7-9-16 को पुलिस थाना बायतू जिला बाडमेर, में प्रथम सूचना रिपोर्ट अन्तर्गत धारा 363, 366ए, 376डी आईपीसी, धारा 3 बी (1,2), 3 (2)(5) एस.सी./एस.टी. एक्ट तथा धारा 5-6 पोस्को एक्ट दर्ज करवाई गई। गांव वाले दबंगों ने पीडिता के परिवार पर राजीनामा करने के लिए हर प्रकार से दबाव बनाना शुरू किया लेकिन पीडित परिवार ने किसी भी दवाब को मानने से इन्कार कर दिया।
मजेदार बात यह है कि दलित प्रकरणों में प्रायः संवेदनहीन पुलिस ने घटना को जिस प्रकार प्रस्तुत किया उससे लगता है कि पुलिस ने राज्य में दलित प्रकरणों को तरजीह नहीं देने की कसम ले रखी है। पीडिता के पिता ने जो रिपोर्ट दी उसे दर किनार करते हुए एफ.आई.आर. में इस प्रकार के तथ्य पुलिस कार्यवाही में लिखे गये हैं जिससे यह माना जा रहा है कि पीडित परिवार से राजीनामा करने के लिए एफ.आई.आर. दर्ज करवाने में देरी हुई। जबकि पीडिता ने डर के कारण परिवार को नहीं बताया था। बाद में उसके पिता द्वारा स्कूल नहीं जाने का कारण पूछा तो उसने रो-रो कर उसके साथ हुई अमानवीय घटना के बारे में बताया तब रिपोर्ट दर्ज करवाई गई। हालांकि पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज होने के बाद अत्याचारियों को गिरफ्तार कर लिया। इनमें से न्यायालय ने गोमदा राम पुत्र सांगाराम जाट को जेल भेज दिया तथा राहुल पुत्र पूनमाराम जाट तथा गणेष जाट को नाबालिग होने के कारण बाल सुधार गृह भेज दिया है।
प्रशासन ने भी इस घटना को हल्के में लिया है। चुकि प्रकरण अनुसूचित जाति/अनुसूचित जन जाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम धारा 3 बी (1,2), 3 (2)(5) एस.सी./एस.टी. एक्ट तथा धारा 5,6 पोस्को एक्ट के तहत दर्ज हुआ इसलिए अनुसूचित जाति/अनुसूचित जन जाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के संशोधित नियम 12 (4) मे मिलने वाली आर्थिक सहायता राशि 5 लाख रूपये का 50 प्रतिशत 2 लाख 50 हजार रूपये चिकित्सा परीक्षण के बाद दिये जाने का प्रावधान है जो अभी तक भी पीडिता को नहीं मिले हैं। 26 जनवरी 2016 से संषोधित अधिनियम लागू हो चुका है लेकिन राज्य सरकार की अकर्मण्यता और लापरवाही के चलते इसके प्रावधान लागू नहीं हो पाए हैं। दलित वर्ग के विधायकों और सांसदों को आगे आकर इनके प्रभावी बनाने के लिए लोबिंग करनी चाहिए। विधान सभा में विधायकों की अनुसूचित जाति कल्याण समिति को केवल चाय-नाश्ता वाली बैठक की परिपाटी को त्याग कर कुछ करना चाहिए और साथ ही उन्हें यह भी मान लेना चाहिए कि वे जिन्दगी भर के लिए इस कमेटी के सदस्य नहीं हैं। एक दिन इन्हें हमारे बीच में आना पडेगा तब दलित समाज इनसे चुन-चुन कर बदला ले लेगा। दलित साथियों और दलितों पर काम करने वाली संस्थाओं को भी ऐसे मुद्दों को सरकार के सामने प्रभावी ढंग से उठाना चाहिए। अन्त में यही कहना चाहता हूं कि क्या यही अच्छे दिन हैं? क्या यही इक्कीसवीं सदी है? क्या दलितों के साथ इसी प्रकार के अत्याचार होते रहेंगे? क्या गुजरात के दलितों की भांति राजस्थान में भी दलित एकता का विगुल बज सकता है? और भी बहुत से प्रश्न मुंह बाये खडे हैं।
गोपाल राम वर्मा
मो.9414427200 तथा ईमेल- snvsbharatpur@gmail.com
(लेखक सामाजिक न्याय एवं विकास समिति के सचिव तथा स्टेट रेस्पोन्स ग्रुप,राजस्थान के राज्य समन्वयक हैं।)
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