63 दिन के अनशन के बाद अपने प्राण उत्सर्ग किये जतिन दा ने
Gopla Rathi
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जतीन्द्रनाथ दास (भारत के प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों में से एक थे, जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए जेल में अपने प्राण त्याग दिए और शहादत पाई। इन्हें 'जतिन दास' के नाम से भी जाना जाता है, जबकि संगी साथी इन्हें प्यार से 'जतिन दा' कहा करते थे। जतीन्द्रनाथ दास 'कांग्रेस सेवादल' में सुभाषचन्द्र बोस के सहायक थे। भगत सिंह से भेंट होने के बाद ये बम बनाने के लिए आगरा आ गये थे। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने जो बम केन्द्रीय असेम्बली में फेंके थे, वे इन्हीं के द्वारा बनाये गए थे।
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जतीन्द्रनाथ दास (भारत के प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों में से एक थे, जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए जेल में अपने प्राण त्याग दिए और शहादत पाई। इन्हें 'जतिन दास' के नाम से भी जाना जाता है, जबकि संगी साथी इन्हें प्यार से 'जतिन दा' कहा करते थे। जतीन्द्रनाथ दास 'कांग्रेस सेवादल' में सुभाषचन्द्र बोस के सहायक थे। भगत सिंह से भेंट होने के बाद ये बम बनाने के लिए आगरा आ गये थे। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने जो बम केन्द्रीय असेम्बली में फेंके थे, वे इन्हीं के द्वारा बनाये गए थे।
जेल में क्रान्तिकारियों के साथ राजबन्दियों के समान व्यवहार न होने के कारण जेल में क्रान्तिकारियों ने 13 जुलाई, 1929 से अनशन आरम्भ कर दिया। जतीन्द्र भी इसमें सम्मिलित हुए। उनका कहना था कि एक बार अनशन आरम्भ होने पर हम अपनी मांगों की पूर्ति के बिना उसे नहीं तोड़ेंगे। कुछ समय के बाद जेल अधिकारियों ने नाक में नली डालकर बलपूर्वक अनशन पर बैठे क्रांतिकारियों के के पेट में दूध डालना शुरू कर दिया। जतीन्द्र को 21 दिन के पहले अपने अनशन का अनुभव था। उनके साथ यह युक्ति काम नहीं आई। नाक से डाली नली को सांस से खींचकर वे दांतों से दबा लेते थे। अन्त में पागल खाने के एक डॉक्टर ने एक नाक की नली दांतों से दब जाने पर दूसरी नाक से नली डाल दी, जो जतीन्द्र के फेफड़ों में चली गई। उनकी घुटती सांस की परवाह किए बिना उस डॉक्टर ने एक सेर दूध उनके फेफड़ों में भर दिया। इससे उन्हें निमोनिया हो गया। कर्मचारियों ने उन्हें धोखे से बाहर ले जाना चाहा, लेकिन जतीन्द्र अपने साथियों से अलग होने के लिए तैयार नहीं हुए।
अनशन के 63वें दिन 13 सितम्बर, 1929 को जतीन्द्रनाथ दास का देहान्त हो गया। जतीन्द्र के भाई किरण चंद्रदास ट्रेन से उनके शव को कोलकाता ले गए। सभी स्टेशनों पर लोगों ने इस शहीद को श्रद्धांजलि अर्पित की। कोलकाता में शवदाह के समय लाखों की भीड़ एकत्र थी। उनकी इस शानदार अहिंसात्मक शहादत का उल्लेख पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में किया है।
अनशन के 63वें दिन 13 सितम्बर, 1929 को जतीन्द्रनाथ दास का देहान्त हो गया। जतीन्द्र के भाई किरण चंद्रदास ट्रेन से उनके शव को कोलकाता ले गए। सभी स्टेशनों पर लोगों ने इस शहीद को श्रद्धांजलि अर्पित की। कोलकाता में शवदाह के समय लाखों की भीड़ एकत्र थी। उनकी इस शानदार अहिंसात्मक शहादत का उल्लेख पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में किया है।
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