बक्सादुआर के बाघ,कर्नल लाहिड़ी का आदिवासी जीवन पर नायाब उपन्यास
पलाश विश्वास
अभी अभी कर्नल भूपाल चंद्र लाहिड़ी के बहुचर्चित बांग्ला उपन्यास बक्सा दुआरेर बाघ के अनुवाद को अंतिम रुप दे दिया है। उत्तर बंगाल के बक्सा जंगल के विभिन्न आदिवासी समूह के रोजमर्रे की जिंदगी,इनके समूह जीवन,भाषा और संस्कृति और उनके खिलाफ जारी दमनात्मक शोषण के जुल्मोसितम के मद्देनर भारत के लोकतंत्र,कानून व्यवस्था,सरकार और प्रशासन,राजनीति और संविधान,वन और वन अधिनियम के विविध आयाम और उनके प्रतिरोध का सिलसिलेवार ब्यौरा समेत बेहद दिलचस्प उपन्यास है।गारो और राभा जैसे आदिवासी समूहों की भाषा को यथासंभव उसकी मौलिकता के साथ,संगीतबद्धता के साथ संप्रेषित करने में हमने लिंग्वस्टिक्स और फोनेटिक्स का सहारा लिया।
कर्नल भूपाल लाहिड़ी ने सैन्य रोजनामचे पर भी बहुत बेहतरीन लिखा है।इस वक्त हफ्ते में चार दिन उनका डायलिसिस जारी है और इसके बावजूद उनकीजनप्रतिबद्ध जीजिविषा देखेने पर हमें अपनी मानसिक कमजोरी पर शर्म आ रही है।अस्सीपार लगातार अस्वस्थ चल रहे कर्नल लाहिड़ी अपने घर पर ओवी वैन खड़ा करके सुंदरवन के बच्चों को नियमित पढ़ा रहे हैं।
मैं बेहद जल्दी यह काम पूरा करना चाहता था।फिरभीमहीनेभर लग गया।इस बीच कुछ और छिटपुट अनुवाद के अलावा नियमित लेखन भी जारी रखना हुआ।शरणार्थी आंदोलन के सिलसिले में कोलकाता और उत्तर बंगाल तक की जगह जाना पड़ा।
बांग्लादेश के कथाकारों की जनपद भाषा में लिखी कहानियों के अनुवाद के बाद बक्सादुआर का यह अनुवाद बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है।किताब छपेगी तो इसकी प्रतिक्रिया का मुझे इंतजार रहेगा।
अब अनुवाद के जरिये ही मुझे दिहाड़ी कमाकर जीना है तो लिखने के साथ ही जनप्रतिबद्धता के मोर्चे पर निरंतर सक्रियता मेरे लिए आगे और बड़ी चुनौती बनने वाली है।
मित्रों से आग्रह है कि मुझे मेरी दिहाड़ी से वंचित करके बेवजह दौड़ाये नहीं।जहां जाना अनिवार्य होगा,वहां मैं खुद चला जाउंगा।लेकिन जहां जा नहीं सकता,उसके लिए माफी की जरुरत रहेगी।
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