सिक्किम में कनक नदी में भागीरथी जैसी कृत्तिम झील,मूसलाधार बारिश से कहर बरपने का अंदेशा
एक्सेकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
हस्तक्षेप संवाददाता
गांतोक।1978 में गंगोत्री के ऊपर भागीरथी के उत्स में भूस्खलन से कृत्तिम झील बन जाने से आयी बाढ़ से बंगाल तक के बह जाने के हालात बन गये थे।गंगा के किनारे गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक उस तबाही के आलम के फिर हिमालय के दूसरे छोर पर करीब चार दशक बाद सिक्किम की कनक और तीस्ता नदियों के संगम के मुख पर बनी कृत्तिम झील के निर्माण से दोहराये जाने का अंदेशा है,इसका विध्वंसक असर सिक्किम में उतना न भी हो तो सिक्किम से आने वाली तीस्ता जैसी नदियों के उफने जाने की हालत में उत्तर बंगाल के जनजातिबहुल तमाम इलाकों से लेकर बांग्लादेश तक कहर टूटने की आशंका है।
मीडिया के मुताबिक सिक्किम में तीस्ता नदी की सहायक नदी कनक पर एक कृत्रिम झील बन जाने से निचले इलाकों पर अचानक बाढ़ आने का खतरा बढ़ गया है।150 फीट चौड़ी इस झील से सिक्किम के निचले इलाकों और उत्तरी बंगाल में खतरा बढ़ गया है।दरअसल गंगटोक से 70 किलोमीटर दूर जोंगू में भारी बारिश से पहाड़ का बहुत बड़ा हिस्सा नीचे बह रही कनका नदी में गिर गया।अचानक गिरे मलबे से कनक नदी ब्लॉक हो गई...और उसमें कृत्तिम झील बन गयी..अब मुश्किल यह है कि इस झील में पानी लगातार जमा हो रहा है...और वक्त के साथ खतरा बढ़ता ही जा रहा है..
केंद्रीय जल आयोग यानी सीडब्ल्यूसी ने पहाड़ों में भूस्खलन से की वजह से कनक नदी के रास्ते में रुकावट आने से झील के खतरे पर एक रपट तैयार की है।
इस रपट के मुताबिक, कनक नदी पर बनी कृत्रिम झील में बहुत भारी मात्रा में पानी जमा हो रहा है और इसपर बने अवरोध के फटने से कनक और तीस्ता नदी में पानी का स्तर बहुत तेजी से 4.5 मीटर से ऊपर तक चढ़ जाएगा।
वैसे भी तिस्ता हमेशा बरसात में प्रलंयकर बन जाती है और अपने दोनों किनारों पर कगार तोड़कर कहर बरपाती है।उत्तर बंगाल में सालाना बाढ़ आम बात है और इस वक्त भी उत्र बंगाल बाढ़ के शिंकजे से कतई रिहा हुआ नहीं है।
पिछले तेरह अगस्त को हुए भूस्खलन से यह कृत्तिम जझील बनी है।भूस्खलन से सिक्किम के ऊंचे पहाड़ों के मध्य मंगन के पास नदी बंध गयी है और उसमें पाहड़ का हिस्सा गिरने से प्राकृतिक बांध जैसा बनकर कनक नदी का अबाध जलप्रवाहझील में तब्दील है और मूसलाधार बारिश से उसके कभी भी टूट जाने की आशंका है।
गांतोक में फिर भारी वर्षा की चेतावनी जारी कर दी गयी है और गांतोक में बैठे अंदाजा लगाना मुश्किल है कि आपदा प्रबंधन के लिए सिक्किम के बाहर खासकर उत्तर बंगाल में क्या एहतियाती इंतजाम किये जा रहे हैं।
गौरतलब है कि हाल के वर्षों में समुद्री तूफान से पहले मिली चेतावनी के बाद प्रभावित होने वाले इलाकों से जनसंख्या हटाने की कवायद कामयाब होते रहने की वजह से जान माल के नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सका है।
बहरहाल समुद्री तूफान से प्रभावित होने वाले समुद्रतट के सीमित क्षेत्र से जनसंख्या को हटाना जितना सरल है,पहाडों और तराई के दुर्गम इलाकों में वह करना बेहद मुश्किल है।फिर बाढ़ की चपेट में कमोबेश पूरा देश है।
केदार जलप्रलय के अनुभव के मद्देनजर हुए मौसम भविष्यवाणी के मुताबिक देश में भारी वर्षा,भूस्खलन और बाढ़ से जान माल की हानि कम करने के लिहाज से समुद्री तूफान से निपटने की तर्ज पर अभी कुछ हुआ हो,ऐसी जानकारी नहीं मिली है।
बहरहाल सूखे से किसानों की कमर टूट जाने के बाद देश भर में अतिवृष्टि और बाढ़ का सिलसिला शुरु हो गया है।हर साल की तरह राहत और सहायता की तैयारी जितनी है,आपदा प्रबंधन की कवायद उस हिसाब से नहीं के बराबर है।केंद्र और राज्यों की राजनीति जितनी गरमा रही है,हकीकत की जमीन पर आपदा प्रभावितों की जान माल की परवाह उतनी नहीं है।
इस लिहाज से गांतोक,कोलकाता और दिल्ली या देश के किसी भी राजधानी क्षेत्र के मिजाज और मौसम में बुनियादी कोई फर्क नहीं है न पर्यावरण चेतना है।
गांतोक में राज्य सरकार की कमान दशकों से पवन चामलिंग के हाथों में है,जो बहुत जल्द कामरेड ज्योति बसु के लगातार मुख्यमंत्री बने रहने का रिकार्ड तोड़ देने वाले हैं।
सिक्कम के सीमावर्ती इलाकों में सेना ही मुख्य तौर पर आपदाओं से निबटती है और इसलिए पवन चामलिंग को आपदा प्रबंधन को लेकर खास सरदर्द नहीं है।
वैसे भी बाकी हिमालयी क्षेत्रों कीतुलना में कश्मीर संकट के बाद पर्यटन के लिहाज से गांतोक और बाकी सिक्किम का खूब विकास हुआ है और गांतोक से ऊपर बर्फ छके पहाड़ों तक पहुंचने वाले तमाम रास्ते सेना के हवाले है।
गांतोक में भी एक कदम पैदल चलेन की गुंजाइश नहीं है क्योंकि शहर के चप्पे चप्पे पर ऊंचाइयों और ढलान पर उतरने चढ़ने के लिए हर कदम पर टैक्सी है।पर्यटकों को दो चार दिन गांतोक अगर टहरना बी पड़े तो उनकी सेहत में कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है।
सिक्किम में भारी पैमाने पर पूंजी निवेश हो रहा है।पर्यटन और पूंजी के इस खेल में आम जनता की जाम माल को लेकर जाहिर है कि सत्तावर्ग को कोई ज्यादा फिक्र भी नहीं है।
जाहिर है,मूसलाधार बारिश से पर्यटन को होने वाले नुकसान से ही पवन चामलिंग को सरदर्द हो सकता है।आपदा प्रबंधन को लेकर नहीं।लेकिन भारत सरकार या बंगाल की राज्य सरकार को कनक नदी में कृत्तिम जलाशय के निर्माण से भागीरथी की 1978 जैसी बाढ़ के हालेता से निपटने की कितनी चिंता है,इसका अभी पता नहीं चला है।
हांलाकि अबकी दफा मौसम चेतावनी के मुताबिक मूसलाधार बारिश होने से वह कृत्तिम झील टूटने ही वाली है।
गौरतलब है कि इसी कनक नदी पर एनएचपीसी के कई बिजली संयंत्र लगे हैं और उन्हें सबसे ज्यादा खतरा है।एनएचपीसी में इसे लेकर खलबली मची है।सिक्किम में एनएचपीसी के कई पनबिजली उत्पादन केंद्रों के खतरे में पड़ जाने का अंदेशा है।
बहरहाल सीडब्ल्यूसी की टीम ने कनक नदी पर बनी इस कृत्रिम झील से उत्पन्न खतरे का आंकलन किया है और अपनी रपट सिक्किम सरकार, एनडीएमए और एनएचपीसी को सौंप दी है। इस रपट में इस बात का आंकलन किया गया है कि कृत्रिम झील के अंदर कितना पानी जमा है? साथ ही इसमें कितनी तेजी से इजाफा हो रहा है?
65 मीटर है डैम की ऊंचाई
सीडब्ल्यूसी के ताजा रपट के मुताबिक, कनका नदी पर बनी कृत्रिम झील के डैम की ऊंचाई 65 मीटर है। नदी में पानी इस डैम से ओवरफ्लो कर रहा है। गौरतलब है कि कनक नदी तीस्ता नदी की सहायक नदी है और ये मंगन से तीन किलोमीटर पहले तीस्ता नदी में मिलती है। तीस्ता और कनका के संगम स्थान से चार किलोमीटर पहले कनका नदी पर भूस्खलन से यह कृत्रिम झील बनी है।
गौरतलब है कि कृत्रिम झील से 21 किलोमीटर की दूरी पर तीस्ता नदी पर एनएचपीसी का पनबिजली डैम है।
रपट के मुताबिक, कनका नदी का कैचमेंट एरिया 739 वर्ग किलोमीटर का है और इसमें से 264 वर्ग किलोमीटर 4500 मीटर से ऊपर की ऊंचाई पर है। इसका सीधा सा मतलब ये हुआ कि 475 वर्ग किलोमीटर के इलाके में होने वाली बारिश से कनक नदी पर बनी कृत्रिम झील में पानी जा रहा है। सीडब्ल्यूसी की मानें तो, 65 मीटर गहरी झील में तकरीबन 75.5 लाख घन मीटर पानी जमा हो चुका है।
ऐसे में वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि मानसून की झमाझम बारिश के बीच कृत्रिम झील के फटने का खतरा है। ऐसी स्थिति में क्या होगा इसका आंकलन भी किया गया है।
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