पेशावर विद्रोह की शानदार परम्परा जिंदाबाद !
Kailash Pandey
23 अप्रैल 1930 को कामरेड चंद्र सिंह गढ़वाली के नेतृत्व में ब्रिटिश फौज की गढ़वाली टुकड़ी ने देश की आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे निहत्थे मुस्लिम पठानों पर गोली चलाने के आदेश पर अमल करने से इंकार कर दिया था। यह बहुत विराट फलक का विद्रोह था जिसने अंग्रेजी हुकूमत की हिन्दू-मुस्लिम एकता को भंग कर फूट डालो और राज करो की नीति पर गढ़वाली के नेतृत्व में सैनिकों ने एक करारा प्रहार कर इतिहास रच दिया था। आज हमारे मौजूदा हुक्मरान-जिनका और उनके मातृ संगठन आरएसएस का आज़ादी की लड़ाई से कोई वास्ता नहीं रहा- जब राष्ट्र के नाम पर मज़हबी उन्माद भड़काने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं,तब ऐसे समय में कामरेड चंद्र सिंह गढ़वाली और पेशावर विद्रोह का ऐतिहासिक महत्व और भी बढ़ गया है।
कामरेड चंद्र सिंह गढ़वाली आज़ादी के बाद भी मेहनतकश जनता के बुनियादी अधिकारों के लिए हमेशा लड़े चाहे उसके लिये उन्हें आज़ादी आंदोलन के समय के उनके नायक-नेता रहे शासकों के ख़िलाफ़ ही क्यों न लड़ना पड़ा। वे कम्युनिस्ट पार्टी में भर्ती हुए, कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर गढ़वाल लोकसभा चुनाव लड़े और उन्होंने अपना पूरा जीवन समझौताविहीन संघर्ष को समर्पित किया। वे नेहरू-इंदिरा के शासक वर्ग में समाहित होने के तमाम प्रस्तावों को ठुकराते हुए आजीवन प्रतिबद्ध कम्युनिस्ट रहे।
कामरेड चंद्र सिंह गढ़वाली आज़ादी के बाद भी मेहनतकश जनता के बुनियादी अधिकारों के लिए हमेशा लड़े चाहे उसके लिये उन्हें आज़ादी आंदोलन के समय के उनके नायक-नेता रहे शासकों के ख़िलाफ़ ही क्यों न लड़ना पड़ा। वे कम्युनिस्ट पार्टी में भर्ती हुए, कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर गढ़वाल लोकसभा चुनाव लड़े और उन्होंने अपना पूरा जीवन समझौताविहीन संघर्ष को समर्पित किया। वे नेहरू-इंदिरा के शासक वर्ग में समाहित होने के तमाम प्रस्तावों को ठुकराते हुए आजीवन प्रतिबद्ध कम्युनिस्ट रहे।
कामरेड चंद्र सिंह गढ़वाली की समझौताविहीन संघर्ष की विरासत जिंदाबाद !
कामरेड चंद्र सिंह गढ़वाली को लाल सलाम !!
कामरेड चंद्र सिंह गढ़वाली को लाल सलाम !!
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