Monday, April 11, 2016

मजहब को वैयक्तिक विचार से अधिक महत्व नहीं मिलना चाहिए। देश की संस्कृति, सभ्यता, इतिहास की मौके-बे-मौके जिस प्रकार दुहाई दी जाती है, वह भी हमारे कार्य में बाधा डालने वाली है। मनुष्य लाखों बरस के विकास के बाद आज यहाँ पहुँचा है। पहले उसके विकास की गति मंद रही, लेकिन इधर वह तीव्र होती गयी। मनुष्य के इतिहास के किन्हीं भी दो समयों में एक परिस्थिति नहीं रही। हमेशा समस्याएँ नयी उठीं और उनके हल भी नये निकालने पड़े। अपने भूत के प्रति गौरव और आवश्यकता से अधिक अनुराग हमारे लिए बड़ी ख़तरनाक चीज़ है। वह हमारी पुरानी बेवकूफियों के प्रति आदर का भाव पैदा कर देता है। आज जिन सामाजिक और धार्मिक ख़राबियों को हम देख रहे हैं, उनकी जड़ उसी भूत की श्रद्धा में निहित है। -- राहुल सांकृत्यायन

मजहब को वैयक्तिक विचार से अधिक महत्व नहीं मिलना चाहिए। देश की संस्कृति, सभ्यता, इतिहास की मौके-बे-मौके जिस प्रकार दुहाई दी जाती है, वह भी हमारे कार्य में बाधा डालने वाली है। मनुष्य लाखों बरस के विकास के बाद आज यहाँ पहुँचा है। पहले उसके विकास की गति मंद रही, लेकिन इधर वह तीव्र होती गयी। मनुष्य के इतिहास के किन्हीं भी दो समयों में एक परिस्थिति नहीं रही। हमेशा समस्याएँ नयी उठीं और उनके हल भी नये निकालने पड़े। अपने भूत के प्रति गौरव और आवश्यकता से अधिक अनुराग हमारे लिए बड़ी ख़तरनाक चीज़ है। वह हमारी पुरानी बेवकूफियों के प्रति आदर का भाव पैदा कर देता है। आज जिन सामाजिक और धार्मिक ख़राबियों को हम देख रहे हैं, उनकी जड़ उसी भूत की श्रद्धा में निहित है।
-- राहुल सांकृत्यायन

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