Monday, April 11, 2016

एक दलित कवि असंग घोष की कविता है यह। तथाकथित हिन्दू-भक्तों से अनुरोध है कि वे इस कविता को पढ़कर उसका विश्लेषण करें और यह बताएँ कि यह हिन्दू-दलित हिन्दुओं से किस बात पर नाराज़ है क्योंकि हिन्दू-भक्तों का कहना है कि वे दलितों के साथ कोई भेदभाव नहीं करते।

एक दलित कवि असंग घोष की कविता है यह। तथाकथित हिन्दू-भक्तों से अनुरोध है कि वे इस कविता को पढ़कर उसका विश्लेषण करें और यह बताएँ कि यह हिन्दू-दलित हिन्दुओं से किस बात पर नाराज़ है क्योंकि हिन्दू-भक्तों का कहना है कि वे दलितों के साथ कोई भेदभाव नहीं करते।
हाँ
मैं हिन्दू हूँ
मैंने अपना धर्म
नहीं बदला
केवल इसलिए
कि तुझे गालियां दे सकूं
तेरी हर करतूत को
उजागर कर सकूं
संसार के सामने,
तेरे सारे मिथकों को
नंगा कर सकूं
उनकी सच्चाई को
जग जाहिर कर
दुनियां को बता सकूं
कि तुम हरामीपन में भी
नम्बर वन हो,
यह बता सकूं
कि तू धर्म का
जगत्‌ गुरू नहीं
विश्व का गुरू हैं
शोषण करने में,
तेरी कुटिलता पर
मैं तुझे भड़ुवा कह सकूं
और तू स्याले
तेरा पिछवाड़ा
जलने के बाद भी
मेरा कुछ उखाड़ ना सके,
मैं तब तक हिन्दू रहूँगा
जब तक
तुझे गाड़ ना दूं
जमीन में
छै: फुट नीचे
समझा कि नहीं....
भो.... के
मैं हिन्दू हूँ

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