सुभाषिनी सहगल अली
अबकी साल, १४ अप्रैल को बाबासाहेब आंबेदकर की १२५वी वर्ष गांठ मनाई जाएगी। देश की गरीब जनता इस जयंती को बड़े ही उल्लास के साथ मनाएंगे। वह जानते है की भारत के इतिहास में पहली बार समानता के सिद्धांत को न्यायिक रूप बाबासाहेब के अथक प्रयास के बाद ही भारत के संविधान में दिया गया था। यह समानता अभी भी उनकी पहुँच से बहुत दूर है, लेकिन बाबासाहब ने उसको प्राप्त करने की उम्मीद उनके अंदर पैदा की है जिसके लिए वह हमेशा उनको अपना प्रेरणास्त्रोत मानेगे।
प्रधान मंत्री जी बहुत योजनाबद्ध तरीके से १४ अप्रैल की तैयारी कर रहे हैं। १४ अप्रैल को वह बाबासाहब के जन्म स्थान, मऊ, उनको श्रद्धांजलि देने जाएंगे। यही नहीं, ४ तारीख को उन्होंने नौयडा में 'स्टैंड फार इण्डिया' का आयोजन महिलाओं और दलितों के विकास को सुनिश्चित करने के लिए किया और उनको ई रिक्शो का मालिक बनाया। ५००० ई रिक्शे बांट भी दिए। जाते-जाते उन्होंने कहा कि ई रिक्शा चालक परिवारों के साथ वह जल्द ही 'चाय पर चर्चा' ज़रूर करेंगे।
इंतज़ार तो इस बात का था की दलितों के खिलाफ होने वाली अत्याचार की तमाम वीभत्स घटनाओं का वह विरोध करेंगे और शिकार व्यक्तियों और उनके परिवारों को न्याय दिलवाने के लिए आवश्यक कदम उठाएंगे। लेकिन इन मामलों पर उनको ट्वीट करने की फुर्सत भी नहीं मिली।
रोहित वेमुला की शर्मनाक आत्म-हत्या के घाव अभी भरे नहीं; दलितों पर अत्याचार की घटनाएं देश के हर कोने में लगातार हो रही हैं। पिछले पखवाड़े में ही ऐसी दो घटनाएं घटी हैं जो इस बात को प्रमाणित करती हैं की बाबासाहब के सपनो के साथ कितना क्रूर खिलवाड़ हो रहा है।
समाज से छुआछूत और भेदभाव की भावना को दूर करने के लिए, बाबासाहब ने अंतर्जातीय विवाह को प्रोत्साहन देने की राय दी और अपनी मुक्ति को सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने दलितों को एक नारा दिया - शिक्षित हो, संगठित हो, संघर्ष करो। पहले, शिक्षित हो।
डेल्टा मेघवाल गरीब दलित परिवार की एक प्रतिभाशाली १६ वर्षीय छात्रा थी जो टीचर ट्रेनिंग हासिल करने के लिए राजस्थान के बाड़मेर जिले से बीकानेर के कालेज आई थी। कुछ साल पहले, प्रदेश की मुख्य मंत्री, वसुंधरा राजे, ने उसे अपने हाथो से इनाम भी दिया था। डेल्टा ने बहुत सुखद सपने देखे होंगे की वह एक अच्छी शिक्षिका बनकर अपने गरीब माँ-बाप को बेहतर ज़िन्दगी गुज़ारने का मौका उपलब्ध करायेगी।
होली की छुटटी थी। ४ अन्य लड़कियां के साथ डेल्टा हॉस्टल में ही बनी रही। २७ मार्च को उससे कहा गया की वह जाकर एक पुरुष शिक्षक का कमरा साफ करे। जैसे की आज के भारत में शिक्षिका की ट्रेनिंग ले रही एक होनहार छात्रा को 'जाओ मास्टर साहब का कमरा साफ कर दो' कह देना आश्चर्य की बात नहीं ह, वैसे ही डेल्टा का उस काम को स्वीकार कर लेना भी आज के भारत में आश्चर्य की बात नहीं है!
दूसरे दिन उसकी लाश कालेज के परिसर में मौजूद एक कुँए में मिली। उस लाश को पुलिस कचरा उठाने वाली गाड़ी में पोस्ट मार्टम के लिए ले गयी। कालेज की ओर से कोई रिपोर्ट या कोई कार्यवाही नहीं हुई। पुरे देश में धरना-प्रदर्शन के बाद ही प्रशासन हरकत में आया है लेकिन न्याय की लम्बी लड़ाई की शुरुआत भी नहीं हुई है।
डेल्टा की मौत के ही दिन, तामिल नाडु की कौशल्या को डाक्टरों ने खतरे से मुक्त घोषित किया। अपनी २०वी वर्षगांठ से एक दिन पहले वह अपने पति के साथ अपने लिए तोहफा खरीदने गई थी। दोनों खुश थे। अपने सपनो के साकार होने का विश्वास उनके अंदर प्रबल होने लगा था। कौशल्या ने अपने दलित सहपाठी, शंकर, से शादी की थी। परिवार के विरोध से बचने के लिए दोनों छिपकर रह रहे थे। कौशल्या ने पढाई छोड़कर, नौकरी कर ली थी। अब शंकर की पढाई ख़त्म हो गई थी और उसकी अच्छी नौकरी भी लगने वाली थी। कौशल्या अपनी छूटी पढाई को फिर से शुरू वाली थी।
दूसरे दिन उसकी लाश कालेज के परिसर में मौजूद एक कुँए में मिली। उस लाश को पुलिस कचरा उठाने वाली गाड़ी में पोस्ट मार्टम के लिए ले गयी। कालेज की ओर से कोई रिपोर्ट या कोई कार्यवाही नहीं हुई। पुरे देश में धरना-प्रदर्शन के बाद ही प्रशासन हरकत में आया है लेकिन न्याय की लम्बी लड़ाई की शुरुआत भी नहीं हुई है।
डेल्टा की मौत के ही दिन, तामिल नाडु की कौशल्या को डाक्टरों ने खतरे से मुक्त घोषित किया। अपनी २०वी वर्षगांठ से एक दिन पहले वह अपने पति के साथ अपने लिए तोहफा खरीदने गई थी। दोनों खुश थे। अपने सपनो के साकार होने का विश्वास उनके अंदर प्रबल होने लगा था। कौशल्या ने अपने दलित सहपाठी, शंकर, से शादी की थी। परिवार के विरोध से बचने के लिए दोनों छिपकर रह रहे थे। कौशल्या ने पढाई छोड़कर, नौकरी कर ली थी। अब शंकर की पढाई ख़त्म हो गई थी और उसकी अच्छी नौकरी भी लगने वाली थी। कौशल्या अपनी छूटी पढाई को फिर से शुरू वाली थी।
अचानक, भरी बाजार में, दिन दहाड़े, कौशल्या के पिता और रिश्तेदारों ने दोनों पर हसियो से वार किया। शंकर तो वही मर गया। कौशल्या, लहू-लुहान, अस्पताल लाई गई। उसकी जान तो बच गयी लेकिन उसके सपने टूटकर बिखर गए। सरकार और प्रशासन, दोनों ही मौन है। बस, जीवन बीमा निगम के कर्मचारियों की लाल झंडे वाली यूनियन है जिसने कौशल्या को वचन दिया है की जितना भी वह पढ़ना चाहे, उसका पूरा ज़िम्मा वह लेगी।
रोहित के सपने, डेल्टा के सपने, कौशल्या के सपने, बाबासाहब के सपने - पता नहीं कितने हज़ारो-लाखो के सपने चकनाचूर ही होते जा रहे हैं। इसकी कोई चर्चा ही नहीं। न चाय पर न और कहीं!
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