Monday, April 25, 2016

अपने दमित क्रोध , हिंसक वृत्ति और कुंठाओं के विस्फोट से मूक वाजि को अन्ततः मार डालने वाले ओ अश्व हन्ता , तुम्हारे लिए यह धरा धाम ही निसन्देह रौरव नर्क बन जाएगा । कितनी भी वंचना कर लो , लेकिन तुम्हारी सुधियों में रह रह कर हिनहिनाएगा वह निर्दोष घोडा । # शक्तिमान अश्व हनन

Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
नौ बैणी आछरियों
नौ बैणी आछरियों
बहुत बहुत धन्यवाद भैजी , जू आप हम सभी तें समय गाड़ी हम तें कृतार्थ करदा

अपने दमित क्रोध , हिंसक वृत्ति और कुंठाओं के विस्फोट से मूक वाजि को अन्ततः मार डालने वाले ओ अश्व हन्ता , तुम्हारे लिए यह धरा धाम ही निसन्देह रौरव नर्क बन जाएगा । कितनी भी वंचना कर लो , लेकिन तुम्हारी सुधियों में रह रह कर हिनहिनाएगा वह निर्दोष घोडा । # शक्तिमान अश्व हनन

आज भारत के एक अतिशय महत्वाकांक्षी , चतुर , सुयोग्य एवं अवसर वादी राज नेता रह चुके हेमवती नन्दन बहुगुणा जीवित होते तो 97 वर्ष के होते । लेकिन 100 वर्ष तक जीवित रह पाना सिर्फ गुलजारी लाल नन्दा अथवा मोरारजी देसाई जैसे संयमी एवं संतोषी नेता के ही वश में होता है , बहुगुणा जैसों के नहीं । जब डॉक्टरों ने उन्हें सलाह दी , की 69 वर्ष की पक्व आयु में दिल का ऑपरेशन कराने की बजाय उन्हें दवाओं के भरोसे रहना अधिक सुरक्षित रहेगा , ब शर्ते वह दौड़ भाग कम और आराम अधिक करें । इस पर हेमवती बाबू का जवाब था कि मैं ऐसे जीवन का क्या करूँगा । लिहाज़ा वह ऑपरेशन कराने अमेरिका गए , और मर गए ।
सत्ता लोलुप होने की वजह से उन्होंने कई पार्टियां बदलीं , और कई समझौते किये । लेकिन जन संघ अथवा भाजपा से कभी हाथ नहीं मिलाया , क्योंकि वह मूलतः एक प्रगति शील राजनेता थे । आज उनके आत्मज उसी भाजपा के पाले में खड़े हैं । 1981 - 82 के ऐतिहासिक गढ़वाल उप चुनाव में सारा विपक्ष उनके साथ एकजुट था । सिर्फ जनसंघी ही उन्हें हराने के लिए प्रच्छन्न रूप से कोंग्रेस का साथ दे रहे थे । क्योंकि साम्प्रदायिकता के वह शाश्वत शत्रु थे ।
उन्होंने अपनी राजनैतिक समिधा इलाहाबाद से जुटाई , लेकिन अपनी मातृ भूमि उत्तराखण्ड का क़र्ज़ भरपूर चुकाया । संचार मंत्री रहे , तो यहां गांव गांव डाक घर खुलवाये , और पेटोल मंत्री रहते हुए घर घर गैस पँहुचाई । मैं पटना में अखबार की नौकरी करता था , तो वह लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते बहुधा पटना आते थे , और अपने स्थानीय नेता लालू प्रसाद यादव से मेरा ध्यान रखने को कहते थे । स्नेह वश वह वर्षों तक मुझे पढ़ाई का खर्चा देते रहे , बल्कि मेरे कॉलेज छोड़ने के बाद भी उन्होंने मेरा गुज़ारा भत्ता बन्द नहीं किया ।बहुत कम लोगों को पता होगा की वह कोंग्रेस में बहुत लेट , 1946 के आस पास आये । उससे पहले अरुणा आसफ अली इत्यादि के क्रांतिकारी गुट में थे । एक बार उन्होंने मुझसे कहा था - अगर मैं गढ़वाल छोड़ कर प्रयाग न जाता , तो शायद ब्लॉक प्रमुख भी न बन पाता । क्योंकि हमारे लोग अपने ही प्रतिभावान पुरुष की टांग खींचते हैं । खुशवंत सिंह ने उनके बारे में उचित ही लिखा था कि देवताओं ने उनका साथ नहीं दिया ।

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