Sunday, April 24, 2016

Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna सभ्यता , शिष्टाचार और समझदारी का तकाज़ा यही है , कि बुर्के की बहस और फैसला उसी समुदाय के ज़िम्मे सौंप दी जाए , जिनकी यह प्रथा है । अन्य लोग इसमें गवाह , वक़ील या जज न बनें तो बेहतर । राम देव की तरह दूसरे की सलवार में टांग फंसना श्रेयष्कर नहीं । वैसे बुर्के से भी आगे बढ़ कर , कई क्षेत्रों में हिन्दू समाज की मेहरारू दो दो हाथ के घूंघट काढ़ कर निकलती हैं । अब काले धन की तरह कोई अपनी मेहरारू को छुपा कर रखना चाहे , तो क्या किया जाये ।दूसरे के खाने - पहनने पर टीका न हो तो बेहतर ।

सभ्यता , शिष्टाचार और समझदारी का तकाज़ा यही है , कि बुर्के की बहस और फैसला उसी समुदाय के ज़िम्मे सौंप दी जाए , जिनकी यह प्रथा है । अन्य लोग इसमें गवाह , वक़ील या जज न बनें तो बेहतर । राम देव की तरह दूसरे की सलवार में टांग फंसना श्रेयष्कर नहीं । वैसे बुर्के से भी आगे बढ़ कर , कई क्षेत्रों में हिन्दू समाज की मेहरारू दो दो हाथ के घूंघट काढ़ कर निकलती हैं । अब काले धन की तरह कोई अपनी मेहरारू को छुपा कर रखना चाहे , तो क्या किया जाये ।दूसरे के खाने - पहनने पर टीका न हो तो बेहतर ।

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