ताराचंद्र त्रिपाठी
जब तक जातिबोध है वर्गबोध विकसित नहीं हो सकता. जाति और संप्रदाय जिन के हितों के साधक हैँ और सत्ता की सीढ़ी हैँ , वे कभी नहीं चाहेंगे कि इस देश का गरीब एक हो. आरक्षण के झून झुने को त्यागे बिना सर्वहारा की एकता संभव नहीं है.
मैं किसी के दावे की पुष्टि के लिए नहीं लिखता. आप जरा रामासिस द्वितीय का इतिहास उठा कर देखें तो सही. लोक कल्पनाओं और युगान्तरो में समायोजित प्रसंगों को अलग कर दें दोनों का व्यक्तित्व और कृतित्व एक सा है. यही नहीं राम की अवधपुरी और रामासिस की अबद्योस (पुरी)में भी गजब का ध्वनि साम्य चकित कर देता है. एक बार उठा कर देखिए तो सही. केवल इतिहास के एक .निरपेक्ष अध्येता की तरह.
जाति और संप्रदाय बोध से ऊपर उठ कर, भय और प्रलोभन से मुक्त हो कर, जिस दल को आप आम जनता के हित के लिए कृतसंकल्प मानते हैँ, यदि वह दल ऐसे प्रत्याशी को खड़ा करता है तो उसे जी जान लगा कर जितायें. भारत को संकीर्णता के गर्त में गिरने से बचाएं
मैं राम को खोज रहा था, कुछ विद्वान उन को वाल्मिकी रामायण में अंकित जन्म समय के नक्षत्रो की स्थिति का आधार लेकर 10 जनवरी .4997 ई.पू. जन्म लेना दिखा रहे हैँ. यदि वाल्मीकी रामायण में दी गया होडाचक्र राम के व्यक्तित्व और कृतित्व के आधार पर कल्पित न किया गया होता तो राम .अर्ध जांगल अवस्था से आरंभिक कृषि युग के नायक होते. न अवध जैसी भव्य नगरी होती न वह चित्र जो राम कथा में दृष्यमान है.
यह विराट महामानव तो लोक कल्पना का सहारा लेकर धीरे धीरे विकसित हुआ है और पूरे दक्षिण एशिया में अनेक रूपों में रूपायित हुआ है.
उसके नाम से मिलता जुलता एक महान नरेश मिश्र का फराओं रामासिस द्वितीय है . कमाल तो यह है कि उसके राज्य का प्रमुख नगर अबद्योस भी अयोध्या से मिलता जुलता है.
वह भी 14 वर्ष की अवस्था में युवराज घोषित होता है. अगले ग्यारह साल मंच से गायब रहता है. उसके बाद सत्तासीन होते ही अपने देश में स्वर्ण युग लाने में लग जाता है. 90 वर्ष की अवस्था में जब उसका देहावसान होता है तब तक उसके अधिकतर परिवारी जन गोलोकवासी हो चुके होते हैँ.
भगवान जाने इतिहास के गर्भ में कितनी सच्ची घटनाएं है और कितने मिथक.
यह विराट महामानव तो लोक कल्पना का सहारा लेकर धीरे धीरे विकसित हुआ है और पूरे दक्षिण एशिया में अनेक रूपों में रूपायित हुआ है.
उसके नाम से मिलता जुलता एक महान नरेश मिश्र का फराओं रामासिस द्वितीय है . कमाल तो यह है कि उसके राज्य का प्रमुख नगर अबद्योस भी अयोध्या से मिलता जुलता है.
वह भी 14 वर्ष की अवस्था में युवराज घोषित होता है. अगले ग्यारह साल मंच से गायब रहता है. उसके बाद सत्तासीन होते ही अपने देश में स्वर्ण युग लाने में लग जाता है. 90 वर्ष की अवस्था में जब उसका देहावसान होता है तब तक उसके अधिकतर परिवारी जन गोलोकवासी हो चुके होते हैँ.
भगवान जाने इतिहास के गर्भ में कितनी सच्ची घटनाएं है और कितने मिथक.
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