तानाशाह गधे को लंबी सी रस्सी कोई दे दें!
2016/02/16 | धर्म - मज़हब, हस्तक्षेप |
क्योंकि फासिज्म के राजकाज में समरसता जलवा यह कि घास को बढ़ने की आजादी है तो गधे को चरने की आजादी है!
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब देशद्रोह कानून है, जिसके तहत जो भी हुकूमत के खिलाफ बोले तड़ीपार करने का अनिवार्य रघुकुल रीत सनातन नियति है
फिरभी गति का चौथा नियम भी है कि ऐसे में बेखौफ तानाशाह बन चुके गधे को लंबी सी रस्सी दो ताकि वह अपने लिए फंदा बना लें और खेत में हरियाली रहे!
अंधेर नगरी चौपट राजा टका सेर भाजी टका सेर खाजा!
फासिज्म के राजकाज में समरसता जलवा यह कि घास को बढ़ने की आजादी है तो गधे को चरने की आजादी है!
फिरभी गति का चौथा नियम भी है कि ऐसे में बेखौफ तानाशाह बन चुके गधे को लंबी सी रस्सी दो, ताकि वह अपने लिए फंदा बना लें और खेत में हरियाली रहे!
ऐसा हिंदू हितों के मुताबिक कितना माफिक हैं यह पेशवा महाराज ही तय कर सकते हैं या उनके सिपाहसालार। बेशक यह गधे और खेत दोनों के हित में हैं। खेती और किसानों का सत्यानाश करने पर तुले आदमखोर भेड़िये इसे कितना समझेंगे, हम नहीं जानते।
वे तो जरूर समझेंगे जो खुद गधे न होंगे और गुरुजी के चेले की तरह अंधेर नगरी की मौज उड़ाने की फिक्र में न होंगे।
क्योंकि फंदा तो आखिर फंदा है जिसका गला माफिक है, उसके गले में पड़ना है।
यह हकीकत जेएनयू के छात्र समझ रहे होते तो यह भारी विपदा आन न पड़ी होती।
न्यूटन के गति नियम
न्यूटन के गति नियम तीन भौतिक नियम हैं जो चिरसम्मत यांत्रिकी के आधार हैं। ये नियम किसी वस्तु पर लगने वाले बल और उससे उत्पन्न उस वस्तु की गति के बीच सम्बन्ध बताते हैं। इन्हें तीन सदियों में अनेक प्रकार से व्यक्त किया गया है। न्यूटन के गति के तीनों नियम, पारम्परिक रूप से, संक्षेप में निम्नलिखित हैं –
प्रथम नियम: प्रत्येक पिंड तब तक अपनी विरामावस्था अथवा सरल रेखा में एकसमान गति की अवस्था में रहता है जब तक कोई बाह्य बल उसे अन्यथा व्यवहार करने के लिए विवश नहीं करता। इसे जड़त्व का नियम भी कहा जाता है।
द्वितीय नियम: किसी भी पिंड की संवेग परिवर्तन की दर लगाये गये बल के समानुपाती होती है और उसकी (संवेग परिवर्तन की) दिशा वही होती है जो बल की होती है।
तृतीय नियम: प्रत्येक क्रिया की सदैव बराबर एवं विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है।
फासिज्म के राजकाज में न जाने किस पांचवें वेद में मौलिक फासिज्म की विचारधारा है, जो अभी इस पृथ्वी पर लागू हो नहीं सकी है। किसी हिटलर और मुसोलिनी ने कोशिश की जरुर थी, लेकिन वे लोग उतने विशुद्ध रक्त के नहीं थे, जो भारत देश के गुजरात के कल्कि वंशजों के रगों में दौड़ता है, इसलिए अब पीपपी गुजराती चक्रवर्ती राजाधिराज के 56 इंच सीने में मौलिक फासिज्म लागू करने की केसरिया सुनामी दहाड़ें मार रही है।
इस मौलिक फासिज्म में ज्ञान विज्ञान हिंदू हितों के मुताबिक नहीं है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब देशद्रोह कानून है, जिसके तहत जो भी हुकूमत के खिलाफ बोले तड़ीपार करने का अनिवार्य रघुकुल रीत सनातन नियति है और मनुष्य और प्रकृति नियतिबद्ध निमित्तमात्र हैं तो देश विखंडन की आदिम अंधकार प्रोयोगशाला एकदम गुजरात की तरह।
न्यूटन के गति के नियम तो पढ़े लिखे लोगों के लिए हैं। अपढ़ बिरंची बाबा के लिए यह एकदम बेकार की चीज है सिरे से।
उनके लिए गति का चौथा नियम भी है।
यह विज्ञान में नहीं है। लेकिन इस देश के मूलनिवासी अछूत बहुजनों को खेती के कामकाज में हजारों सालों से अपने रगों में इसे घोल लेने की आदत है और इसके लिए न पतंजलि का पुत्रजीवक अनिवार्य है और न अंबानी अडानी का सहयोग, न एफडीआई और न मेकिंग इन, खर पतवार की सफाई हमारी लोक संस्कृति है जो वैदिकी हिंसा की विरासत वाले हत्यारों की समझ से बाहर है।
गति का चौथा नियमः
बेखौफ तानाशाह बन चुके गधे को लंबी सी रस्सी दो ताकि वह अपने लिए फंदा बना लें और खेत में हरियाली रहे
इस नियम को फिर अमल में लाने का परम अवसर है और ऐसा करने से पहले भारतेंदु की अमर कृति का मंचन अनिवार्य है।
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