Bhaskar Upreti
48 घंटे लगातार, 950 किलोमीटर, कुल जमा 7.30 घंटे की नींद. बाकी चलना..चलना..चलना..उत्तरकाशी का सफ़र इस बार तनावों और उलझावों से भरा था. एक साथी (Bhupen Singh) को उत्तरकाशी और दूसरे साथी (Vineet Fulara) को देहरादून ने हमसे छीन लिया. फिर रह गए तीन. चलते रहे, बोलते रहे, बुदबुदाते रहे..जहाँ नहीं चल सकी..ऊंघते रहे..यही कहते रहे- कि दूरियां नाप लेना भर यात्रा है? यह यात्रा अगली यात्राओं के लिए सबक है..कई बार 'जनसरोकारों' के नाम पर हम 'बहक' जाते हैं. बहुत कुछ तो (Jeevan Singh) को ही झेलना पड़ा, जो नींद को धोखा देते स्टेयरिंग खेंचते रहे..इस बार की यात्रा के स्क्रिप्ट राइटर Vineet Fulara कुछ चूक गए. मगर हर यात्रा का कुछ न कुछ उजला हिस्सा भी होता है. दोस्तों ने इस बार टिहरी डैम के छद्म को समझा. बाँध कहाँ था, यहाँ तो सिल्ट का समुन्दर था. हमारी छलछलाती नदियों की हत्या कर दी उन्होंने!
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