Saturday, March 19, 2016

उमर ख़ालिद और अनिर्बाण भट्टाचार्य का यह जमानती आदेश पढ़ें. उमर के वकील त्रिदीप पायस द्वारा उनका पक्ष रखने का जो हवाला इसमें दिया गया है, उसका एक हिस्सा हमारे लिए सबक की तरह याद कर लेने लायक है. 124 A के तहत अपराध की श्रेणी में किसे रखेंगे, इस पर अपनी बात रखते हुए पिछले कई मामलों में आये अदालती आदेशों के हवाले से यह निचोड़ पेश किया गया है:

उमर ख़ालिद और अनिर्बाण भट्टाचार्य का यह जमानती आदेश पढ़ें. उमर के वकील त्रिदीप पायस द्वारा उनका पक्ष रखने का जो हवाला इसमें दिया गया है, उसका एक हिस्सा हमारे लिए सबक की तरह याद कर लेने लायक है. 124 A के तहत अपराध की श्रेणी में किसे रखेंगे, इस पर अपनी बात रखते हुए पिछले कई मामलों में आये अदालती आदेशों के हवाले से यह निचोड़ पेश किया गया है:
(1) सरकार की कार्यवाहियों या सार्वजनिक पदाधिकारियों के काम की बहुत सख्त आलोचना करनेवाला कठोर भाषण देना या लिखित रूप में ओजस्वी शब्दों का इस्तेमाल करना IPC की धारा 124 A के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता. सिर्फ़ ऐसे शब्द जिनमें सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करने या कानून और व्यवस्था को अस्त-व्यस्त करने की प्रवृत्ति या मंशा हो, वे ही 124 A के दायरे में रखे जा सकते हैं.
(2) अभियक्ति की आज़ादी का तब तक दमन नहीं किया जा सकता जब तक उस आज़ादी को इजाज़त देने से बननेवाले हालात बहुत गंभीर न हों और सामुदायिक हित को उनसे ख़तरा न हो. अनुमानित खतरे को दूर की कौड़ी या अटकलबाजी जैसा नहीं होना चाहिए. उसका अभिव्यक्ति के साथ निकट का और सीधा गठजोड़ होना चाहिए. अभिव्यक्ति को तात्विक रूप में खतरनाक होना चाहिए. उस अभिव्यक्ति को अपेक्षित कार्य के साथ इस तरह अविच्छेद्य रूप में जुड़ा होना चाहिए कि वह ‘बारूद में चिंगारी’ की तरह हो.
(3) अदालत का यह काम है कि वह प्रयुक्त शब्दों की असली मंशा और भावना पर विचार करे और यह निश्चित करे कि शब्दों के पीछे समाज के एक हिस्से को भड़काने की कोई सामन्य प्रवृत्ति थी या कि प्रयुक्त शब्द सरकार के कामों तीखी आलोचना थे.
(4) 124 A के तहत जो अपराध निर्धारित है, उसका आशय है ऐसे काम करना जो कानून द्वारा स्थापित सरकार को घृणा और अवमानना का शिकार बनाए; कानूनसम्मत उपायों से सरकार के प्रति असहमति और आलोचना व्यक्त करना राजद्रोही गतिविधि नहीं है.
(5) अभिव्यक्ति की आज़ादी के अंतर्गत तीन चीज़ों पर विचार किया गया है: बहस, वकालत और उत्तेजन (उत्तेजित करना). किसी ख़ास उद्देश्य को लेकर, वह जितना भी अलोकप्रिय हो, बहस करना, यहाँ तक कि उसकी वकालत करना, संविधान की धारा 19 (1) (a) के तहत मान्य है. यह बहस या वकालत जब उत्तेजन के स्तर तक पहुँचती है, तभी धारा 19 (2) का काम शुरू होता है. यही चरण है जहां ऐसे भाषण या इज़हार (की आज़ादी) को कम करने के लिए कानून का सहारा लिया जा सकता है जो अव्यवस्था का कारण बने, या जिसमें सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करने का रुझान हो या जिसमें भारत की संप्रभुता या अखंडता को प्रभावित करने की प्रवृत्ति हो, इत्यादि.(जनवादी लेखक संघ की वॉल से साभार)

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