Sunday, March 27, 2016

अब जोत सिंह जब भी मुझे मिलते हैं , तो उन्हें बाँहों में भर कर उनकी तोंद पर हाथ फेरता हूँ । ईमानदार व्यक्ति की तोंद हवा खा कर भी बढ़ जाती है , जैसे मेरी , शमशेर बिष्ट की और जोत सिंह की बढ़ गयी । अब कहाँ से लाएं ऐसा विधायक ।





Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
वर्तमान घटना क्रम में हठात् मसूरी के मुच्छड़ और पुराने मॉडल के नेता जोत सिंह गुनसोला का ध्यान आता है । लगभग 14 साल पहले वह विधायक थे । जल संस्थान के तत्कालीन चीफ हर्षपति उनियाल के पिता का शव सामने था , और जोत सिंह फूट फुट कर रो रहे थे । नेताओं के रोने और हंसने के अभिनय से मैं ब खूबी वाकिफ़ हूँ , इस लिए मैंने अपने पास खड़े एक इंजीनियर को कोहनी मार कर कहा - देखा ये ढंडी सणि । ( देखो इस पाखण्डी को ) । गढ़वाली इंजीनियर ने जवाब दिया - नहीं , ये ढंड नहीं कर रहा , बल्कि सच में रो रहा है । ये दोनों आस पास के गांव के निवासी हैं । मैंने बात मान ली ।
जोत सिंह से मेरी दूसरी देखा देखी देहरादून के एक ढाबे पर हुयी । अपने चेला चांटी , हाली मवालियों के साथ वह आये । स्टील के गिलासों में सबने चोरी छुपे डिस्पोजल फिट कर जिन ढाली । गटागट पी और पैसे देकर चलते बने । मैं पहले से ही वहां ये काम कर रहा था ।जोत सिंह का यह देसी स्टाइल मेरे दिल में उत्तर गया । मुझे सन् 70 के आसपास की एक घटना याद आ गयी । अपने पिता के साथ मैं बालक मसूरी बस अड्डे पर उतरा । मेरे पिता को रिसीव करने वालों में युवा जोत सिंह भी थे । उन्होंने मुझे 2 रूपये का एक लाल नोट दिया , और मुझे रोप वे की चर्खी में बिठा कर चले गए । उन दो रुपयों से मैंने एक खिलौना घड़ी , चश्मा और कुल्फी खरीद कर ऐश की । फिर भी 12 आने बच गए ।
अब जोत सिंह जब भी मुझे मिलते हैं , तो उन्हें बाँहों में भर कर उनकी तोंद पर हाथ फेरता हूँ । ईमानदार व्यक्ति की तोंद हवा खा कर भी बढ़ जाती है , जैसे मेरी , शमशेर बिष्ट की और जोत सिंह की बढ़ गयी । अब कहाँ से लाएं ऐसा विधायक ।

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