राजीव नयन बहुगुणा
भारत माता की जय बोलना कोई बुरा नहीं । मैं यदा कदा बोलता रहता हूँ । लेकिन जो नहीं बोलते , वे अपराध भी नहीं कर रहे । शहरों के चटर पटर बच्चे मदर्स डे पर पोस्ट करते हैं - लव यु मम्मा ! लेकिन जो बच्चे ऐसा पोस्ट या ट्वीट नहीं करते , वे भी अपनी माँ से प्यार करते हैं । शायद - लव यु मम्मा कहने वालों से भी अधिक ।
बागी पर एक निबंध
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यद्यपि मैं बाग़ी पर एकाधिक बार लिख चुका हूँ , लेकिन वर्तमान परिस्थियों में पुनः लिखना पड़ रहा है । सभी जानते हैं , जो नहीं जानते , जान लें कि गढ़वाल में बागी नर भैंसा अथवा झोटे को कहा जाता है । बागी अत्यधिक जिद्दी , उद्दंड , अप्रतिहत और दुर्निवार होता है । यह जिसके खेत में घुस जाता है , उसे बर्बाद ही कर डालता है । जब , जहां और जैसे मन आये , भैंस पर चढ़ बैठता है । अपना पराया कुछ नहीं देखता ।महा लड़ाकू होता है । इसके युद्ध देखने दूर दूर से लोग जुटते हैं । मैदानों में तो इसके अंडकोष थेच् कर इसे बुग्गी पर जोत दिया जाता है , पर पहाड़ में बागी का काम सिर्फ लोगों के खेत चरना , लड़ाई करना और भैंसों को गाभिन करना है । हुर्र हुर्र कहने से यह जोश में आता है । अस्तु ।
जहां न गुड है , और न गांव , ऐसी परायी जगह जा सिधारे तुम । आओ तो सही इस बार गांव । तुम्हारा गुड गोबर न कर दिया तो ।
ज्ञान , विज्ञान , दर्शन , राजनीति अदि के बीच कुछ बुनियादी सुझाव देता हूँ । चाहें तो संज्ञान लें , चाहे हंसी में उड़ा दें ।
1:- बाथ रूम में मार्बल की टाइल्स न लगाएं
। कई दिग्गज इस जगह और इस वजह से कुल्हा तुड़वा कर बिस्तर पर पड़े हैं । टूटा कुल्हा बहुत मुश्किल से जुड़ता है , बनिस्बत टूटे दिल के ।
2:- नहाते वक़्त टॉयलेट शीट से दूर हट कर साबुन लगाएं । साबुन हाथ से फिसल कर सीधे पाखाने में गिर सकता है । हर चिकनी चीज़ फिसल कर छेद में ही घुसती है । ऐसे में आपको या तो सुबह सुबह पाखाने के सुराख में हाथ डालना होगा , अथवा बगैर साबुन के नहाना होगा ।
3:- कच्छा , बनियान , तौलिया अलग अलग खूंटी पर टाँगे । नहाने के बाद कोई भी एक चीज़ उतारते समय दूसरी नीचे गिर जाती है , और भीग जाती है ।
4:- बाथरूम में घुसने से पहले सुनिश्चित कर लें कि आप तौलिया साथ ला चुके हैं । नहाने के बाद जब आप नंगे होकर पत्नी या बच्चों को चिल्ला कर तौलिया मांगते हैं , तो आपकी इस मज़बूरी का फायदा उठा कर वे आपसे अपनी कोई कठिन मांग पूरी करने का वचन ले सकते है ।
शंकराचार्य ने हमे अद्वैत दर्शन के सिवा आग और धूप सेंकने की पद्धति भी सिखाई । " अग्रे वनहिः , पृष्ठे भानू , भज गोविन्दम् मूढ़ मते ।
मित्र जगमोहन रौतेला की टीप देख रहा हूँ , जिसमे आये दिन हो रहे सम्मान समारोहों का उल्लेख है । मैं भी प्रायः देहरादून में होने वाले सम्मान समारोहों की सुर्खियां पढ़ता रहता हूँ , जिसमे दर्जनों लोग थोक में एक साथ सम्मानित होते रहते हैं । इस " सम्मान " के रूप में उन्हें कागज़ का फ्रेम किया एक टुकड़ा और एक शाल मिलती है , जो सर्दी में गरीबों को बांटे जाने वाले कम्बल से भी गयी गुज़री होती है । सम्मान देने वाला प्रायः कोई ऐसा बनिया , नेता या ब्यूरोक्रेट होता है , जिसके साथ खड़ा होना भी एक इज़्ज़तदार व्यक्ति के लिए अपमान जनक है । जहां तक मेरा प्रश्न है , मैं ऐसे किसी भी सम्मान को फ्रॉड समझता हूँ , जिसमे कैश शामिल न हो । मैं भी देहरादून में लोक गायकों को सम्मानित करवाता रहा हूँ , लेकिन 11 हज़ार से कम कैश किसी को सम्मान के रूप में नहीं दिया । चूँकि मैं भी एक लफ़्फ़ाज़ और बातूनी आदमी हूँ ,अतःमुझे भी कभी कभार यत्र तत्र से सम्मानित होने के निमन्त्रण मिलते रहते हैं । लेकिन ज़्यादातर शाल श्रीफल वाले होते हैं , अतः नहीं जाता । ऐसे मेडल और प्रशस्ति पत्रों से टिहरी में मेरे घर के दो कमरे फुल भरे हैं । ये मेरे पिता को मिले हैं । इनमे वैकल्पिक नोबल पुरस्कार और पदम् विभूषण भी शामिल है । इनमे से कई बोरों में ठुसे पड़े हैं । शाल मैंने कई बार भिखारियों को बांटे , और कुछ को काट कर पैरों का पोछा बनाया , फिर भी कम न हुए , बल्कि बढ़ते गए । अतः मेरी दृष्टि में बिना नकदी का सम्मान देने और लेने वाले फ़र्ज़ी और ठग हैं । मैं नकदी में ही अपना सम्मान समझता हूँ , जिसके पास जिस चीज़ की कमी हो , उसी के पीछे भागता है । जिन्हें सम्मान चाहिए , मुझसे ले जाएँ , मुझे करेंसी दें ।
भारत माता की जय बोलना कोई बुरा नहीं । मैं यदा कदा बोलता रहता हूँ । लेकिन जो नहीं बोलते , वे अपराध भी नहीं कर रहे । शहरों के चटर पटर बच्चे मदर्स डे पर पोस्ट करते हैं - लव यु मम्मा ! लेकिन जो बच्चे ऐसा पोस्ट या ट्वीट नहीं करते , वे भी अपनी माँ से प्यार करते हैं । शायद - लव यु मम्मा कहने वालों से भी अधिक ।
बागी पर एक निबंध
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यद्यपि मैं बाग़ी पर एकाधिक बार लिख चुका हूँ , लेकिन वर्तमान परिस्थियों में पुनः लिखना पड़ रहा है । सभी जानते हैं , जो नहीं जानते , जान लें कि गढ़वाल में बागी नर भैंसा अथवा झोटे को कहा जाता है । बागी अत्यधिक जिद्दी , उद्दंड , अप्रतिहत और दुर्निवार होता है । यह जिसके खेत में घुस जाता है , उसे बर्बाद ही कर डालता है । जब , जहां और जैसे मन आये , भैंस पर चढ़ बैठता है । अपना पराया कुछ नहीं देखता ।महा लड़ाकू होता है । इसके युद्ध देखने दूर दूर से लोग जुटते हैं । मैदानों में तो इसके अंडकोष थेच् कर इसे बुग्गी पर जोत दिया जाता है , पर पहाड़ में बागी का काम सिर्फ लोगों के खेत चरना , लड़ाई करना और भैंसों को गाभिन करना है । हुर्र हुर्र कहने से यह जोश में आता है । अस्तु ।
जहां न गुड है , और न गांव , ऐसी परायी जगह जा सिधारे तुम । आओ तो सही इस बार गांव । तुम्हारा गुड गोबर न कर दिया तो ।
ज्ञान , विज्ञान , दर्शन , राजनीति अदि के बीच कुछ बुनियादी सुझाव देता हूँ । चाहें तो संज्ञान लें , चाहे हंसी में उड़ा दें ।
1:- बाथ रूम में मार्बल की टाइल्स न लगाएं
। कई दिग्गज इस जगह और इस वजह से कुल्हा तुड़वा कर बिस्तर पर पड़े हैं । टूटा कुल्हा बहुत मुश्किल से जुड़ता है , बनिस्बत टूटे दिल के ।
2:- नहाते वक़्त टॉयलेट शीट से दूर हट कर साबुन लगाएं । साबुन हाथ से फिसल कर सीधे पाखाने में गिर सकता है । हर चिकनी चीज़ फिसल कर छेद में ही घुसती है । ऐसे में आपको या तो सुबह सुबह पाखाने के सुराख में हाथ डालना होगा , अथवा बगैर साबुन के नहाना होगा ।
3:- कच्छा , बनियान , तौलिया अलग अलग खूंटी पर टाँगे । नहाने के बाद कोई भी एक चीज़ उतारते समय दूसरी नीचे गिर जाती है , और भीग जाती है ।
4:- बाथरूम में घुसने से पहले सुनिश्चित कर लें कि आप तौलिया साथ ला चुके हैं । नहाने के बाद जब आप नंगे होकर पत्नी या बच्चों को चिल्ला कर तौलिया मांगते हैं , तो आपकी इस मज़बूरी का फायदा उठा कर वे आपसे अपनी कोई कठिन मांग पूरी करने का वचन ले सकते है ।
शंकराचार्य ने हमे अद्वैत दर्शन के सिवा आग और धूप सेंकने की पद्धति भी सिखाई । " अग्रे वनहिः , पृष्ठे भानू , भज गोविन्दम् मूढ़ मते ।
मित्र जगमोहन रौतेला की टीप देख रहा हूँ , जिसमे आये दिन हो रहे सम्मान समारोहों का उल्लेख है । मैं भी प्रायः देहरादून में होने वाले सम्मान समारोहों की सुर्खियां पढ़ता रहता हूँ , जिसमे दर्जनों लोग थोक में एक साथ सम्मानित होते रहते हैं । इस " सम्मान " के रूप में उन्हें कागज़ का फ्रेम किया एक टुकड़ा और एक शाल मिलती है , जो सर्दी में गरीबों को बांटे जाने वाले कम्बल से भी गयी गुज़री होती है । सम्मान देने वाला प्रायः कोई ऐसा बनिया , नेता या ब्यूरोक्रेट होता है , जिसके साथ खड़ा होना भी एक इज़्ज़तदार व्यक्ति के लिए अपमान जनक है । जहां तक मेरा प्रश्न है , मैं ऐसे किसी भी सम्मान को फ्रॉड समझता हूँ , जिसमे कैश शामिल न हो । मैं भी देहरादून में लोक गायकों को सम्मानित करवाता रहा हूँ , लेकिन 11 हज़ार से कम कैश किसी को सम्मान के रूप में नहीं दिया । चूँकि मैं भी एक लफ़्फ़ाज़ और बातूनी आदमी हूँ ,अतःमुझे भी कभी कभार यत्र तत्र से सम्मानित होने के निमन्त्रण मिलते रहते हैं । लेकिन ज़्यादातर शाल श्रीफल वाले होते हैं , अतः नहीं जाता । ऐसे मेडल और प्रशस्ति पत्रों से टिहरी में मेरे घर के दो कमरे फुल भरे हैं । ये मेरे पिता को मिले हैं । इनमे वैकल्पिक नोबल पुरस्कार और पदम् विभूषण भी शामिल है । इनमे से कई बोरों में ठुसे पड़े हैं । शाल मैंने कई बार भिखारियों को बांटे , और कुछ को काट कर पैरों का पोछा बनाया , फिर भी कम न हुए , बल्कि बढ़ते गए । अतः मेरी दृष्टि में बिना नकदी का सम्मान देने और लेने वाले फ़र्ज़ी और ठग हैं । मैं नकदी में ही अपना सम्मान समझता हूँ , जिसके पास जिस चीज़ की कमी हो , उसी के पीछे भागता है । जिन्हें सम्मान चाहिए , मुझसे ले जाएँ , मुझे करेंसी दें ।
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