Sunday, March 27, 2016

नरेन्द्र शासने अस्मिन जटिला वित्त विधेयका भारतमाताजयं .उक्त्वा वित्तपापात्विमुच्यते

अथ नव भागवत पुराणे भारतमाताया: जय: उच्चारण महात्म्यं.
सूतोवाच
नरेन्द्र शासने अस्मिन जटिला वित्त विधेयका
भारतमाताजयं .उक्त्वा वित्तपापात्विमुच्यते
(1) तो
सूत जी बोले हे सौनखरादि ऋषियो. इस नरेन्द्र के शासन में जेटली के जो वित्त विधेयक हैं. उनके अनुसार कोई भी बडा आर्थिक अपराध करने वाला यदि एक बार भी भारतमाता की जय का उच्चारण कर ले तो वित्तीय पापों से मुक्त हो जाता है. इसलिए जितना सूत सकते हो सूत लो. ऐसा अवसर बार - बार नहीं मिलता.

अल्प माल्या नरकं याति महामाल्या तिहाड़कम
विजय: माल्या राजन कैवल्यं परिलब्धते.

सूत जी बोले हे सौनखरादि ऋषियो बैंकों से थोड़ा सा कर्ज .लेने वाला तो कर्ज न चुका पाने पर हवालात में नरक भोगता है , महामाल्या, जैसे सहारा के सुब्रतो रौय तिहाड भोगते हैं. केवल विजय माल्या ही मोक्ष पाते हैं
न मैं
मोदी का निंदक हूँ न प्रशंसक. मैं केवल समीक्षक हूँ. अच्छाइयां और कमियां दोनों पर विचार करता हूँ. मैं केवल यह देखता हूँ कि उसके जिन वादों पर भरोसा कर हमने उसे पांच साल के लिए चुना है उसको वह कितना निभा पाता है
पूर्वग्रह युक्त आलोचना किसी भी शासन कर्ता को हतोत्साहित करती है और आँख मूंद कर की गयी प्रशंसा निरंकुश और स्वेच्छाचारी बना कर अंतत: पतन के गर्त में गिरा देती है. जो चाटुकारों के चक्कर में पडा वह गया

भा.ज.पा. अध्यक्ष और मंत्री कहते हैं कि राष्ट्रवाद के मामले में कोई समझौता नहीं होगा. मेरा कहना यह है कि राष्ट्रवाद तो 15 अगस्त 1947 की सुबह ही चल बसा था. अंग्रेजी शासन गया. अंग्रेजियत हावी हो गयी. पूरा न्याय, पूरा प्रशासन, विधान, शिक्षा, ..... सब पर अंग्रेजियत हावी हो गयी. राष्ट्रभाषाएं अंग्रेजी के सामने हेय हो गयीं. यहां तक माता -पिता को भी मौम और Dad के सामने देशी संबंध सूचक शब्द अखरने लगे. रही सही कसर साम्पदायिक नेताओं ने पूरी कर दी. जिस देश में सब कुछ स्वदेशी हेय हो जाय, वहां राष्ट्रवाद है ही कहां, जिससे समझौते की बात उठे.
राष्ट्रवाद जापानियों में है. उन का सब कुछ जापानी में है. हर नागरिक अपने व्यवहार में अपने देश की प्रतिष्ठा का ध्यान रखता है. हर उत्पादित वस्तु की गुणवत्ता को राष्ट्र की प्रतिष्ठा से जोड़ता है .
do you know english पूछने पर हमारी तरह हीन भावना से ग्रसित नहीं होता. गर्व से निहोंगी (जापानी ) कहता है वर्तमान में भारत में राष्ट्रवाद का अर्थ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के उन फरमानों पर आँख मूद कर अमल करना है.जिन से नेताओं की.हवश और मनमानी में खलल न पड़ता हो

इस बीच कुछ दिन आत्म मन्थन करूंगा. यह विचार करूंगा कि फेस बुक से यह चिपक कहीं बैठे ठाले का मनोरंजन तो नहीं है i

कोई भी नायक स्वयं नहीं उभरता. ऐतिहासिक क्रम में ऐसी स्थितियां बनती हैं कि अदना सा दिखने वाला व्यक्ति भी महानायक के रूप में उभरने लगता है. यदि दक्षिण अफ्रीकी रंगभेदियों ने मोहनदास करमचन्द नाम के वकील को, जो लंदन में सामान्य नागरिक के अधिकारों का उपभोग करता आया था, गोरा न होने के कारण ट्रेन के प्रथम श्रेणी के डिब्बे से बाहर न फैंका होता तो गांधी का आविर्भाव कैसे होता. यही बात कन्हैया के बारे में भी लागू होती है. यदि सत्ता के मद में सांसद महेश गिरि ने अ.भा. वि. प. के नेताओं,जो अपनी पराजय का बदला लेने के अवसर की तलाश में थे, के कहने पर जे एन यू के छात्रों के कार्यक्रम में लगे तथाकथित अफजलवादी नारों के लिए पुलिस कार्यवाही पर दबाव नहीं डाला होता तो एक अदने से छात्र नेता को कौन जानता था. इसी तरह हैदराबाद का बवाल बंगारू दत्तात्रेय और स्मृति ईरानी के अविवेक की उपज है. सावधान ये अंध भक्त नेता और चमचा मीदिया ही मोदी की खाट खड़ी करेंगे .

  

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