Wednesday, March 2, 2016

‘इंडिया टुडे’ का ताज़ा अंक राष्ट्रवाद को लेकर जारी बहस पर केंद्रित है। लेकिन अंग्रेज़ी और हिंदी संस्करण के कवर पेज पर छपे चित्रों में ऐसा फ़र्क़ है जो बहुत कुछ कहता है। क्या एक ही पत्रिका के अंग्रेज़ी और हिंदी संस्करणों की तस्वीर में यह फ़र्क़ महज़ संयोग है। यह मुमकिन नहीं। यह सुचिंतित फ़ैसला है। इंडिया टुडे निकालने वाले शायद मानते होंगे कि अंग्रेज़ी संस्करण में तर्क और विवेक पर ज़ोर देना ज़रूरी है, लेकिन हिंदी पट्टी पूरी तरह अंधराष्ट्रवाद के हवाले है और मुँह पर पट्टी बँधी तस्वीर उसके पाठकों को भड़का सकती है। सवाल यह है कि हिंदी समाज के बारे में यह राय इंडिया टुडे के मालिक अरुण पुरी की है या इसके पीछे संपादक अंशुमान तिवारी का दिमाग़ है। सुना है कि इंडिया टुडे का संपादक बनने से पहले अंशुमान तिवारी लंबे समय तक दैनिक जागरण में काम कर चुके हैं।


‘इंडिया टुडे’ का ताज़ा अंक राष्ट्रवाद को लेकर जारी बहस पर केंद्रित है। लेकिन अंग्रेज़ी और हिंदी संस्करण के कवर पेज पर छपे चित्रों में ऐसा फ़र्क़ है जो बहुत कुछ कहता है।
क्या एक ही पत्रिका के अंग्रेज़ी और हिंदी संस्करणों की तस्वीर में यह फ़र्क़ महज़ संयोग है। यह मुमकिन नहीं। यह सुचिंतित फ़ैसला है। इंडिया टुडे निकालने वाले शायद मानते होंगे कि अंग्रेज़ी संस्करण में तर्क और विवेक पर ज़ोर देना ज़रूरी है, लेकिन हिंदी पट्टी पूरी तरह अंधराष्ट्रवाद के हवाले है और मुँह पर पट्टी बँधी तस्वीर उसके पाठकों को भड़का सकती है। सवाल यह है कि हिंदी समाज के बारे में यह राय इंडिया टुडे के मालिक अरुण पुरी की है या इसके पीछे संपादक अंशुमान तिवारी का दिमाग़ है। सुना है कि इंडिया टुडे का संपादक बनने से पहले अंशुमान तिवारी लंबे समय तक दैनिक जागरण में काम कर चुके हैं।
'इंडिया टुडे' का ताज़ा अंक राष्ट्रवाद को लेकर जारी बहस पर केंद्रित है। लेकिन अंग्रेज़ी और हिंदी संस्करण के कवर पेज पर छपे चित्रों में ऐसा फ़र्क़ है जो बहुत कुछ
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