Monday, March 14, 2016

राजीव नयन बहुगुणा उवाच,उनके फेसबुक वाल से साभार धिक् नराधम --------------- प्रागैतिहासिक काल के आख्यानों में युयुत्सु शासक अपनी जीत का डंका बजाने के लिए घोड़े की बलि देते थे । इसे अश्व मेध यज्ञ कहा जाता था । आज देहरादून में उत्तराखण्ड के एक माननीय विधायक ने यह वेद विहित रस्म साकार कर दी । मनुष्य की मूक हय से यह कैसी प्रतिद्वन्द्विता । यह क्रूरता का जुगुप्सु सार्वजनिक विस्फोट ! धत्तेरे की । अय हिंसक पशु तुल्य , तू तो गधे से भी न्यून निकला ।


राजीव नयन बहुगुणा उवाच,उनके फेसबुक वाल से साभार
धिक् नराधम 
---------------
प्रागैतिहासिक काल के आख्यानों में युयुत्सु शासक अपनी जीत का डंका बजाने के लिए घोड़े की बलि देते थे । इसे अश्व मेध यज्ञ कहा जाता था । आज देहरादून में उत्तराखण्ड के एक माननीय विधायक ने यह वेद विहित रस्म साकार कर दी । मनुष्य की मूक हय से यह कैसी प्रतिद्वन्द्विता । यह क्रूरता का जुगुप्सु सार्वजनिक विस्फोट ! धत्तेरे की । अय हिंसक पशु तुल्य , तू तो गधे से भी न्यून निकला ।

अपने वस्त्र विन्यास में परिवर्तन के संघ निर्णय को एक अच्छे संकेत के रूप में देखना चाहिए । यद्यपि पहले उनकी ड्रेस अंग्रेजों के अर्दलियों जैसी थी , और अब प्रस्तावित ड्रेस सिक्योरटी गार्ड जैसी है । आशा की जानी चाहिए , कि उनमें स्वयं के आचार व्यवहार के प्रति प्रायश्चित का भाव जाग रहा है , तथा वे अलगाव और हिंसा का मार्ग छोड़ , राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल होना चाहते हैं । यदि सचमुच ऐसा है , तो इसका करतल ध्वनि से स्वागत होना चाहिए । उन्हें गांधी , कार्ल मार्क्स , भगत सिंह , टॉलस्टॉय एवं मैक्सिम गोर्की इत्यादि का राजनैतिक साहित्य उपलब्ध कराया जाना चाहिए , तथा इतिहास , भूगोल , विज्ञान आदि की बुनियादी शिक्षा दी जानी चाहिए , ताकि उन्हें शीघ्र स्वास्थ्य लाभ हो सके ।
स्वयं को अच्छी तरह धुल चुकने के बाद वही बचा खुचा पानी हमारी ओर ढोल देता है आकाश . गनीमत यही है की नहाते धोते समय साबुन का इस्तेमाल नहीं करता . वरना हम कैसे पीते साबुन मिला पानी . हमारे अनाजों में भी तब साबुन की गंध आती ...

दिल्ली में उत्तराखंड प्रवासियों के सारे धरना - प्रदर्शन जन्तर मन्तर पर रविवार को ही क्यों होते हैं ? क्या किसी जोतखी ने बताया है ? सन्डे को 12 बजे के आसपास घर से खाना खा कर वहां भूख हड़ताल पर जा बैठते हो । फिर 4 बजे के आसपास इंडिया गेट पर आइसक्रीम कुल्फी खाकर अपनी भूख हड़ताल पिकनिक मनाते हुए तोड़ते हो। मत किया करो हर हफ्ते ऐसी भूख हड़ताल , कमज़ोर हो जाओगे । अन्यथा कभी कार्यदिवस पर भी बैठो जंतरमंतर ।

दाढ़िया बढ़ाय के भई गेल जोगी बकरा
--------------------------------------------
जो भी जोगटा जटा जूट डाई से रंगता है , मेक अप करता है , हज़ारों लाखों का मज़मा जुटा कर योग , ध्यान और साधना का प्रपञ्च रचता है , टी वी चैनलों को दारू और पैसा पिला कर अपना ढिंढोरा करवाता है , वह पाषंडी , धूर्त , कामी और लोभी है यह ठीक से समझ लो । इस श्रेणी में अब तक पिछली सदी का रजनीश चन्द्र मोहन जैन उर्फ़ ओशो अव्वल है , जिसके अगणित बुद्धि और धन सम्पन्न भक्त थे , और हैं । उनकी बुद्धि और धन दोनों का हरण कर वह ऐश उड़ाता था । वह एक तार्किक , बौद्धिक , अध्य्यन शील और आधुनिक दृष्टि वाला मायावी था , जिसने लोक मनोविज्ञान का खूब दोहन किया । विवादास्पद उलट बाँसियां कह कर धन , यश और दारा को भोगने की उसे लत पड़ गयी थी , लेकिन भारत और अन्यत्र भी चमत्कार की बजाय आचरण की ही सदैव पूजा होती रही है , इस तथ्य को जान कर भी वह अनजान बना रहा । गांधी की जम कर खिल्ली उड़ाता और तालियां बटोरता था । लेकिन गांधी और उसका भेद अंततः तब सामने आ गया , जब वह कई साल दमा और पीठ दर्द से तड़प कर बिस्तर पर मरा , जबकि गांधी राम नाम जपता हुआ रण भूमि में । दमे और पीठ दर्द ने उसके तमाम आत्म ज्ञान की ऐसी तैसी कर दी । कुल मिला कर उसकी चटोरी और तड़कती फड़कती बातें सलीम जावेद के लेबल की थी , जिनमे आचरण का कोई समावेश न था । ( जारी )

हर हाल में बना रहे फूलों और हरियाली का साथ



No comments:

Post a Comment