रविशंकर जिस आर्ट की बात करते हैं, वह बनावटी है.... शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद
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जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने दिल्ली में यमुना किनारे हुए श्री श्री रविशंकर के प्रोग्राम को दिखावा बताया है। शंकराचार्य ने रविशंकर को बनावटी करार देते हुए कहा, "वह शख्स भारतीय संस्कृति नहीं बल्कि सिर्फ संगीत सिखाता है। इससे किसी का भला नहीं होने वाला है।" रविशंकर जिस आर्ट की बात करते हैं, वह बनावटी है....
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जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने दिल्ली में यमुना किनारे हुए श्री श्री रविशंकर के प्रोग्राम को दिखावा बताया है। शंकराचार्य ने रविशंकर को बनावटी करार देते हुए कहा, "वह शख्स भारतीय संस्कृति नहीं बल्कि सिर्फ संगीत सिखाता है। इससे किसी का भला नहीं होने वाला है।" रविशंकर जिस आर्ट की बात करते हैं, वह बनावटी है....
- शंकराचार्य ने सोमवार को कहा, "रविशंकर जिस आर्ट की बात करते हैं, वह बनावटी है। जीवन में सरलता होनी चाहिए। बनावटीपन से कोई खुश नहीं रह सकता।"
- "हर चीज में आर्ट घुसाना सही नहीं है। जिसे बिजनेस में घाटा हुआ हो, जिसका कोई करीबी दुनिया छोड़ गया हो, वह संगीत से खुश नहीं हो सकता। उसका जीवन आध्यात्म ही बेहतर कर सकता है।"
कई सालों तक साफ नहीं की जा सकेगी यमुना
- शंकराचार्य ने कहा, "हम नदी में फूल डालने को भी गलत मानते हैं और आप इतनी ज्यादा तादाद में मैला यमुना जी में मिला रहे हो। उन्होंने (श्रीश्री) तीन दिन में यमुना जितनी गंदी की है, उसे कई सालों तक साफ नहीं किया जा सकेगा।"
- "प्रधानमंत्री को उस कार्यक्रम में जाने की जरूरत नहीं थी। वहां जाकर उन्होंने कुछ खास नहीं बोला। वह भी आर्ट दिखाकर आ गए।"
- "रविशंकर जिस भारतीय संस्कृति की बात कर रहे हैं, उसे कोई गोमांस छोड़े बिना कैसे सीख सकता है।"
- "अगर कोई गोमांस खाना नहीं छोड़ेगा, तो वह योग का सही अभ्यास नहीं कर सकता।"
उनके लंबे कुर्ते लोग संभालते हैं'
- शंकराचार्य ने रविशंकर की निजी रूप से भी खिंचाई की।
- उन्होंने कहा, "रविशंकर लंबे कुर्ते पहनते हैं, जिसका आधा हिस्सा जमीन पर रहता है। उसे कई लोग संभालते हैं। उन पर फूल बरसाते हैं। उन्होंने अपने बाल काले कर रखे हैं। यह जीने की कला नहीं है, बनावटीपन है।"
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उनके लंबे कुर्ते लोग संभालते हैं'
- शंकराचार्य ने रविशंकर की निजी रूप से भी खिंचाई की।
- उन्होंने कहा, "रविशंकर लंबे कुर्ते पहनते हैं, जिसका आधा हिस्सा जमीन पर रहता है। उसे कई लोग संभालते हैं। उन पर फूल बरसाते हैं। उन्होंने अपने बाल काले कर रखे हैं। यह जीने की कला नहीं है, बनावटीपन है।"
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