भारत और नेपाल की सेनाएं मिल कर निपटेंगी आतंकियों से
नेपाल सीमा पर सेना...
बढ़ती आतंकी हरकतों को देखते हुए भारतीय सेना ने भारत-नेपाल के खुले सीमाक्षेत्र पर सेना तैनात करने का प्रस्ताव दिया है। भारत-नेपाल सीमाक्षेत्र में बढ़ती जा रही आतंकी-आपराधिक-अराजक गतिविधियों से सेना और खुफिया एजेंसियां चिंतित हैं। नेपाल सीमा पर द्विस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था स्थापित करने के सेना के प्रस्ताव पर रक्षा मामलों की संसदीय समिति विचार कर रही है। वरिष्ठ नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने पिछले दिनों सेना के मध्य कमान मुख्यालय जाकर शीर्ष सेनाधिकारियों से बातचीत की और सुरक्षा जरूरतों का जायजा लिया। केंद्र सरकार रक्षा विशेषज्ञों की उस सलाह पर भी गंभीरता से विचार कर रही है जिसमें सीमा सुरक्षा का सम्पूर्ण प्रबंधन सेना के हाथ में दिए जाने की सिफारिश की गई है। इसमें यह भी शामिल है कि सीमा पर तैनात अर्ध सैनिक बलों पर भी सेना का ही कमांड एंड कंट्रोल रहे। विशेषज्ञों ने यह भी कहा है कि सेना से रिटायर होने वाले पूर्व सैनिकों को लेकर टेरिटोरियल आर्मी की बटालियनें खड़ी की जाएं, जिसे सीमा पर तैनात किया जा सके और सीमा की पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था की गारंटी हो सके। नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और नेपाली सेनाध्यक्ष जनरल राजेंद्र छेत्री का भारत दौरा इस नजरिए से भी महत्वपूर्ण है। दोनों तरफ सीमा की पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था को लेकर चिंता है। यह समय की मांग है...
आईएसआईएस के संभावित खतरों, आईएसआई पोषित आतंकवाद और पठानकोट जैसे आतंकी हमलों के कारण देश के सुरक्षा मापदंड और अनिवार्यताएं तेजी से बदली हैं। इसे देखते हुए भारतीय सेना ने नेपाल और भारत से जुड़ी 1757 किलोमीटर सीमा पर ठीक उसी तरह की सुरक्षा व्यवस्था लागू करने का प्रस्ताव दिया है जैसी सुरक्षा का द्विस्तरीय बंदोबस्त पाकिस्तान से लगी सीमाओं पर है। पाकिस्तान से लगे 3323 किलोमीटर सीमा-क्षेत्र में बीएसएफ तैनात है और उसके ठीक पीछे भारतीय सेना की कतारें तैनात रहती हैं। बांग्लादेश से लगी 4,096 किलोमीटर लंबी सीमा पर भी बीएसएफ तैनात है लेकिन उसे कवर करने के लिए सैन्य इकाइयां नजदीक में तैनात नहीं हैं। भारत-नेपाल सीमा पर न तो बीएसएफ है और न निकट में सैन्य इकाइयां तैनात हैं। यहां सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) तैनात है। एसएसबी को आतंकवादियों से सीधे लड़ने का कोई तजुर्बा नहीं है और दूसरी तरफ वह नेपाल के रास्ते भारत में हो रही जाली करेंसी और हथियारों की तस्करी व राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को रोकने में नाकाम साबित हुआ है। एसएसबी की नाकामियां देश की सुरक्षा संवेदनशीलता को देखते हुए काफी गंभीर हैं। कुछ ही अर्सा पहले जब एसएसबी के 13 जवानों को नेपाली सुरक्षा बल ने गिरफ्तार कर लिया और काफी देर तक बंधक बनाए रखने के बाद भारतीय दूतावास के हस्तक्षेप से छोड़ा तब एसएसबी की कमजोरी उजागर हुई थी। इससे भारत की काफी किरकिरी भी हुई थी। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार से लगा सीमा क्षेत्र सेना के मध्य कमान के तहत आता है, लिहाजा नेपाल सीमा की सुरक्षा उसकी चिंता का विषय है। इस मसले पर मध्य कमान का लखनऊ मुख्यालय इधर लगातार सक्रिय है। सेना मामलों की संसदीय समिति ने भी दो और तीन फरवरी को मध्य कमान का दौरा कर शीर्ष सैन्य अधिकारियों से सीमा सुरक्षा के विभिन्न मसलों पर विचार-विमर्श किया और सेना की राय से सहमति जताई। उधर, पश्चिम बंगाल से लगी नेपाल सीमा और बांग्लादेश से लगी सीमा की सुरक्षा जरूरतों के बारे में सेना के पूर्वी कमान ने रक्षा मंत्रालय को अपनी राय से अवगत करा दिया है। सुरक्षा प्राथमिकता का ही नतीजा है कि नेपाल के थलसेना अध्यक्ष जनरल राजेंद्र छेत्री कई दिन लखनऊ में रहे, भारतीय अधिकारियों के साथ बैठकें कीं, सैन्य इकाइयों का निरीक्षण किया और भारत-नेपाल सेना के साझा युद्धाभ्यास का जायजा लिया। भारत और नेपाल के सैनिकों का साझा अभ्यास लखनऊ में भी हुआ और उत्तराखंड में भी। नेपाली सेना के साथ हुए इस बार के साझा अभ्यास की खास बात यह रही कि भारतीय सेना ने नेपाली सेना को युद्ध के साथ-साथ आतंकियों से लड़ने का भी अभ्यास कराया और भूकंप या बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने की भी ट्रेनिंग दी। इन अभ्यासों में आतंकवादियों से मुकाबले के लिए ज्वाइंट-ऑपरेशन की तकनीक पर अधिक जोर दिया गया। नेपाल के सेनाध्यक्ष ने भारत-नेपाल सीमा पर सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त के प्रस्ताव पर अपनी सहमति जताई है। नेपाल की सेना के साथ साझेदारी और समझदारी का रवैया दिखा कर भारत सरकार ने नेपाल सरकार की यह भ्रांति भी हटाई है कि नेपाली मधेसियों को भारत समर्थन दे रहा है। इस भ्रम से पर्दा हटने के बाद ही नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली भारत आए और आपसी रिश्ते प्रगाढ़ किए। लंबे अर्से तक चले विवाद के बाद नेपाल के प्रधानमंत्री की सौहार्दपूर्ण भारत यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण है। छह दिनों की यात्रा पर भारत आए नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने कहा भी कि भारत के साथ हमारी सारी गलतफहमियां दूर हो गई हैं। भारत-नेपाल सीमा की सुरक्षा संवेदनशीलता को लेकर बढ़ी इस सक्रियता में देश के थलसेना अध्यक्ष जनरल दलबीर सिंह सुहाग के हाल ही हुए मध्य कमान के दौरे और मध्य कमान के सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बलवंत सिंह नेगी के उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार की विभिन्न सैन्य इकाइयों के दौरों को भी जोड़ कर देखा जा रहा है।
खबर के विस्तार में जाने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता का फायदा उठा कर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने नेपाल में किस तरह अपनी पकड़ मजबूत बनाई है। केंद्रीय खुफिया एजेंसी भी कहती है और जमीनी तथ्य भी बताते हैं कि नेपाल से लगे सीमा क्षेत्र में आईएसआई संरक्षित भारत विरोधी तत्वों को विस्तार से बसाया गया जिससे नकली करेंसी और हथियारों की तस्करी से लेकर तमाम आपराधिक गतिविधियां अप्रत्याशित रूप से बढ़ गईं। लश्कर-ए-तैयबा के कुख्यात आतंकी अब्दुल करीम टुंडा और इंडियन मुजाहिदीन के सरगना यासीन भटकल समेत कई आतंकवादियों की नेपाल में हुई गिरफ्तारियां इसकी सनद हैं। भारतीय खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड अनालिसिस विंग (रॉ) के अधिकारी कहते हैं कि आईएसआई पोषित तत्वों ने मधेसियों के आंदोलन में घुसपैठ कर नेपाल में हिंसक अराजकता फैलाने की कोशिश की और यह रंग दिया कि मधेसियों के आंदोलन को भारत की तरफ से समर्थन मिल रहा है। जबकि इसके पीछे असली इरादा सीमाई इलाके में घनघोर अस्थिरता फैलाना और भारत को बदनाम करना था। खुफिया एजेंसियों का मानना है कि नेपाल सीमा पर बसाई गई अवैध बस्तियों से ही आईएसआईएस जैसे खतरों के भी सतह पर आने की आशंका है। लिहाजा, जिस तरह म्यांमार की सेना के साथ मिल कर साझा ऑपरेशन और साझा निगरानी के फार्मूले पर उत्तर पूर्व में सहमति से काम हो रहा है उसी तरह नेपाल, भूटान और बांग्लादेश से मिल कर भी साझा सख्ती, साझा निगरानी और साझा ऑपरेशंस पर सहमति बनाने का काम तेजी से आगे बढ़ रहा है। सेना के शीर्ष सूत्रों का कहना है तीनों देशों ने इस पर अपनी सैद्धांतिक सहमति दी है। इसे व्यवहारिक शक्ल में बदलने के लिए जरूरी ढांचागत और व्यवस्थागत बंदोबस्त किए जा रहे हैं। भारत-नेपाल सीमा की सड़कों को दुरुस्त करने के लिए केंद्र सरकार ने राज्यवार मंजूरी दे दी है। भारत-नेपाल सीमा पर सेना की तैनाती का प्रस्ताव व्यवस्थागत बंदोबस्त का ही अहम हिस्सा है।
डॉ. मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली 11 सदस्यीय संसदीय समिति दो फरवरी को मध्य कमान के लखनऊ मुख्यालय पहुंची और अपने दो दिवसीय दौरे में भारत-नेपाल सीमा सुरक्षा के विभिन्न मसलों और सैन्य आश्यकताओं पर गहन विचार-विमर्श किया। इसमें सीमा पर सैन्य इकाइयों की तैनाती, उसके लिए जरूरी स्थापना, इस पर आने वाले खर्च से लेकर तमाम सम्बद्ध मसले शामिल थे। संसदीय समिति के साथ बातचीत में मध्य कमान के जनरल अफसर कमांडिंग इन चीफ (जीओसी इन सी) लेफ्टिनेंट जनरल बलवंत सिंह नेगी व मध्य कमान के अन्य शीर्ष अधिकारी शामिल थे। संसदीय समिति ने सेना के मध्य कमान की ऑपरेशनल तैयारियों का भी जायजा लिया। मध्य कमान के सेना कमांडर ने सीमांत क्षेत्रों में सड़कों और रेलवे के ढांचागत विकास की त्वरित अनिवार्यता को खास तौर पर रेखांकित किया। भारत-नेपाल सीमा पर सीमा स्तम्भों और सीमा चौकियों की चाक-चौबंद व्यवस्था के पहले सीमाई सड़कों का पुख्ता होना आवश्यक है। इसी इरादे से केंद्र सरकार ने 3853 करोड़ रुपये की लागत से नेपाल सीमा पर 1377 किलोमीटर सड़क के निर्माण को मंजूरी दे दी है। इसका राज्यवार विवरण यह है कि उत्तराखंड में नेपाल से लगी सीमा पर 530 करोड़ की लागत से 173 किलोमीटर सड़क का निर्माण होगा। उत्तर प्रदेश में नेपाल सीमा पर 1621 करोड़ की लागत से 640 किलोमीटर सड़क का निर्माण होगा और बिहार में नेपाल सीमा पर 1702 करोड़ रुपये की लागत से 564 किलोमीटर सड़क बनेगी।
मध्य कमान के शीर्ष सैन्य अधिकारियों और संसदीय समिति की दो दिवसीय बैठक में उठे मसलों की जानकारी देते हुए एक सेनाधिकारी ने बताया कि सड़कों के निर्माण के बाद भारत-नेपाल सीमा को रेखांकित करने वाले स्तम्भों को दुरुस्त करने का काम किया जाएगा। सीमा-स्तम्भों के सर्वेक्षण का कार्य हो रहा है। संसदीय समिति के रवाना होने के एक दिन बाद ही पांच फरवरी को लखनऊ पहुंचे नेपाल के सेनाध्यक्ष जनरल राजेंद्र छेत्री के समक्ष भी यह मसला उठा और यह सहमति बनी कि दोनों पक्ष सीमा-स्तम्भों के पुनरस्थापन, मरम्मती व क्षेत्र निर्धारण के काम में परस्पर सहयोग करेंगे। नेपाल के सेनाध्यक्ष अपने 10 सदस्यीय सैन्य प्रतिनिधिमंडल के साथ लखनऊ पहुंचे थे। दोनों देशों के सेनाधिकारियों के बीच दोनों देशों की सुरक्षा से जुड़े मसलों पर कई दौर की बातचीत हुई और सहमतियां बनीं। नेपाल के सेनाध्यक्ष ने 11वीं गोरखा रेजिमेंटल सेंटर का दौरा किया और सेना के प्रशिक्षण कार्यक्रमों का जायजा लिया। उनके साथ मध्य कमान के सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बलवंत सिंह नेगी मौजूद रहे। दोनों सेनाओं के बीच यह तय हुआ कि पारम्परिक रूप से दोनों देश की सीमाएं तो खुली रहेंगी, लेकिन जिस तरह बिना जांच-पड़ताल के निर्बाध रूप से लोगों का आवागमन बना रहता है, उस पर अब सख्त निगरानी और नियंत्रण रखने की आवश्यकता है।
उल्लेखनीय है कि भारत-नेपाल सीमा पर लगे 8553 स्तम्भों में से तकरीबन 2750 सीमा-स्तम्भ ध्वस्त हो चुके हैं या उन्हें हटा कर वहां पर लोग रहने लगे हैं। यहां तक कि सीमा स्तम्भों के दोनों तरफ सौ-सौ मीटर के नो-मैंस-लैंड पर भी लोगों को बसा दिया गया है। सीमा-स्तम्भों को हटा कर किया गया अतिक्रमण और सुनियोजित तरीके से लोगों को बसा दिए जाने को सेना भविष्य के खतरे का संकेत मानती है। रक्षा मंत्रालय के समक्ष पेश किए गए तथ्यों और आंकड़ों के मुताबिक नेपाल सीमा पर लगे स्तम्भों में से 1,451 स्तम्भ गायब हैं और वहां पर लोग बाकायदा बस्तियां बना कर रह रहे हैं। करीब 13 सौ स्तम्भ बुरी तरह ध्वस्त कर दिए गए हैं। बिहार की दशा और भी खराब है। बिहार से लगी नेपाल सीमा पर अवैध बसावट भीषण शक्ल अख्तियार कर चुकी है। बिहार-नेपाल सीमा पर 970 स्तम्भ ढहाए जा चुके हैं और अधिकांश स्थानों पर (नो मैंस लैंड समेट कर) अवैध बस्तियां बस चुकी हैं। खुफिया एजेंसियां कहती हैं कि सीमा स्तम्भों को गायब कर वहां बसाई गई अवैध बस्तियों से भारत विरोधी गतिविधियां संचालित होती हैं और वे तस्करों से लेकर आतंकी और अपराधी तत्वों का सुरक्षित ठिकाना बन चुकी हैं। भारत-नेपाल सीमा का उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल से लगा विशाल क्षेत्र दोनों देशों के नियंत्रण से बाहर फिसलता जा रहा है, लिहाजा इस पर फौरन द्विपक्षीय बंदोबस्त और कार्रवाई आवश्यक है। सीमा स्तम्भों का ऐसा ही हाल भारत-भूटान सीमा का भी है, जहां नौ सौ से अधिक स्तम्भ गायब हो चुके हैं। भारत-भूटान के 699 किलोमीटर वाले मुक्त सीमा क्षेत्र में कुल 1705 स्तम्भ हैं। फिलहाल, भारत-नेपाल सीमा पर स्तम्भों के गायब होने के कारण क्षेत्र को लेकर बन रहे भ्रम को दूर कर उन्हें फिर से स्थापित करने और मरम्मत करने की दिशा में काम हो रहा है। जहां स्तम्भ गायब हैं वहां सीमा के सटीक निर्धारण के लिए सेना कार्टोग्राफिक तकनीक का इस्तेमाल करने जा रही है। इसमें सर्वेक्षण विभाग की भी मदद ली जा रही है। सीमा पर नेपाल के स्तम्भ कम हैं और भारत के ज्यादा, फिर भी, विषम (ऑड) और सम (इवन) नंबरों के आधार पर भारत और नेपाल के सुरक्षा बल अपने-अपने क्षेत्र में स्तम्भों को फिर से स्थापित करने का काम कर रहे हैं। सम संख्या भारत के स्तम्भों की है तो विषम संख्या वाले स्तम्भ नेपाल के हैं। सीमा क्षेत्र के निर्धारण और गायब स्तम्भों की शिनाख्त के काम में सुरक्षा बल के साथ-साथ भारत के सर्वे विभाग की आधा दर्जन टीमें उत्तर प्रदेश और बिहार में काम कर रही हैं। उत्तर प्रदेश के बहराइच, लखीमपुर खीरी, बलरामपुर, गोरखपुर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर और बिहार के रक्सौल, जयनगर में खास तौर पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, क्योंकि इन सीमाई क्षेत्रों में स्तम्भ हटा कर अवैध बस्तियां बसाने का काम धुंआधार हुआ है। सीमा स्तम्भों की पहचान करने का काम युद्ध स्तर पर शुरू करने का फैसला सेना की सतर्कता के बाद हुआ है, इसमें उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के भू-स्थानिक आंकड़ा केंद्र को भी संलग्न करने का निर्णय हुआ है। भारत-नेपाल सीमा कार्यकारी समूह इसकी निगरानी कर रहा है। सीमा स्तम्भों पर जीपीएस उपकरण लगाए जाएंगे और उनके नियंत्रण के लिए तकरीबन सौ कंट्रोल प्वाइंट्स होंगे, जहां स्तम्भों के बारे में जानकारियां दर्ज रहेंगी।
सेना सूत्रों ने कहा कि भारत-नेपाल सीमा प्रबंधन का काम कई क्रम में होगा। सीमा स्तम्भों की पहचान और उसके निर्माण के साथ ही सीमा चौकियों के प्रबंधन को भी दुरुस्त किया जाना है। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और सिक्किम तक नेपाल से जुड़ी सीमा 1757 किलोमीटर तक विस्तृत है। इसमें उत्तराखंड से 263 किलोमीटर, उत्तर प्रदेश से 566 किलोमीटर, बिहार से 729 किलोमीटर, पश्चिम बंगाल से 100 किलोमीटर और सिक्किम से 99 किलोमीटर सीमा लगती है। इस 1757 किलोमीटर के सीमा क्षेत्र में फिलहाल 455 सुरक्षा चौकियां हैं, जिसकी संख्या बढ़ाई जा रही है। प्रत्येक चार किलोमीटर के अंतर पर एक सुरक्षा चौकी बनाने का प्रस्ताव है। फिलहाल जो चौकियां हैं, वे एसएसबी की निगरानी में हैं, जिसे बीएसएफ के सुपुर्द करने का प्रस्ताव है। इन 455 सीमा रक्षा चौकियों में उत्तराखंड की 53, उत्तर प्रदेश की 148, बिहार की 193, पश्चिम बंगाल की 43 और सिक्किम की 18 रक्षा चौकियां शामिल हैं। सीमा सुरक्षा को लेकर नेपाल का रवैया अबतक गैर जिम्मेदाराना रहा है। नेपाल ने यह माना है कि तकरीबन 18 सौ किलोमीटर लंबे सीमा क्षेत्र की सुरक्षा में आर्म्ड पुलिस फोर्स (एपीएफ) की तैनाती बगैर किसी ठोस योजना के की गई। इस वजह से सीमा के स्तम्भों की हिफाजत की रणनीतिक जरूरतों पर कोई ध्यान नहीं दिया जा सका। नेपाल की तरफ कुल 87 बॉर्डर आउट पोस्ट हैं, जबकि भारत ने 455 सुरक्षा चौकियां बना रखी हैं और इसे बढ़ाया जा रहा है।
सीमा सुरक्षा के इन जरूरी मसलों पर जद्दोजहद के साथ ही उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में भारत और नेपाली सेना का साझा युद्धाभ्यास सूर्य-किरण-9 भी शुरू हुआ। आठ फरवरी से 21 फरवरी तक चले युद्धाभ्यास की खासियत यह रही कि इसमें नेपाली सेना की सबसे बेहतरीन मानी जाने वाली रुद्र धोज बटालियन शरीक हुई। मध्य कमान के कार्यवाहक मेजर जनरल संजय शर्मा के नेतृत्व में मध्य कमान के पंचशूल ब्रिगेड के तहत यह युद्धाभ्यास हुआ। भारत और नेपाल का यह नौवां साझा युद्धाभ्यास था, लेकिन यह युद्धाभ्यास खास इसलिए माना जा रहा है क्योंकि इस बार नेपाली सेना को आतंकवादियों से मुकाबला करने और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने की भी विशेषज्ञीय ट्रेनिंग दी गई। साझा युद्धाभ्यास के आखिरी दौर में दोनों तरफ की सेनाओं के वरिष्ठ अधिकारियों ने हिस्सा लिया। इसमें नेपाली सेना के मेजर जनरल शेखर सिंह बंसायत और भारतीय सेना की पंचशूल ब्रिगेड के कमांडर ब्रिगेडियर राकेश मनोचा भी शरीक हुए। इस संयुक्त अभ्यास में पर्वतीय क्षेत्रों में लड़े जाने वाले जंगल युद्ध और आतंकवाद विरोधी सैन्य ऑपरेशन के बारे में खास ट्रेनिंग हुई और तकनीकी व खुफिया जानकारियां साझा की गईं।
थलसेना की ऑपरेशनल शाखा से जुड़े एक आला अधिकारी ने बताया कि भारत सरकार ने कई देशों से जुड़ने वाली अपनी सीमाओं के प्रबंधन को दुरुस्त करने की दिशा में ठोस काम किया है। श्रीलंका से जुड़ी समुद्री सीमा पर राष्ट्र विरोधी और तस्करी की गतिविधियां बहुत कम हो गई हैं। यही स्थिति बांग्लादेश और म्यांमार सीमा पर भी कायम हुई है। बांग्लादेश और म्यांमार सरकार से साझा सहमति बना कर वहां भी सीमा प्रबंधन का द्विपक्षीय बंदोबस्त किया जा रहा है। यही पहल नेपाल और भूटान के साथ हो रही है और भारत-नेपाल विस्तृत सीमा क्षेत्र के पुख्ता प्रबंधन की दिशा में ठोस काम हो रहा है। उल्लेखनीय है कि भारत और बांग्लादेश के बीच 4,096 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है, जबकि म्यांमार से सटी भारत की सीमा 1643 किलोमीटर लंबी है। इसमें उत्तर पूर्व के चार राज्यों की सीमा लगती है। अरुणाचल प्रदेश की 520 किलोमीटर सीमा, नगालैंड की 215 किलोमीटर, मणिपुर की 398 किलोमीटर और मिजोरम की 510 किलोमीटर सीमा म्यांमार से जुड़ती है। पाकिस्तान से जुड़ने वाली भारतीय सीमा सबसे विस्तृत है। भारत के साथ लगने वाली पाकिस्तान सीमा तकरीबन 3323 किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। जम्मू-कश्मीर में कुल 708 किलोमीटर की नियंत्रण रेखा है। इसमें अकेले जम्मू में भारत और पाकिस्तान के बीच 210 किलोमीटर की अंतरराष्ट्रीय सीमा है। भारत और पाकिस्तान के बीच पंजाब से सटा 553 किलोमीटर सीमाक्षेत्र है। भारत और पाकिस्तान के बीच गुजरात से लगी 508 किलोमीटर लंबी सीमा है। राजस्थान में पाकिस्तान से लगी सीमा 1037 किलोमीटर की है। इतने विस्तृत सीमा क्षेत्र में अग्रिम चौकियों पर सीमा सुरक्षा बल (बीएसफ) और उसके ठीक पीछे सेना की लड़ाकू इकाइयां तैनात हैं। देश की अन्य अंतरराष्ट्रीय सीमा पर भी सैन्य इकाइयों की तैनाती का प्रस्ताव है, जिसे लेकर केंद्र सरकार और रक्षा मंत्रालय गंभीर है।
आतंकी हरकतों का बड़ा जरिया बन सकता है नेपाल का सीमा क्षेत्र
नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) ने इस बात की तस्दीक की है कि नेपाल से लगा सीमा क्षेत्र आने वाले समय में आतंकवादी हरकतों का बड़ा मार्ग बन सकता है, लिहाजा इसकी समुचित व्यवस्था समय रहते की जानी चाहिए। पिछले कुछ ही अंतराल में कुख्यात आतंकी यासीन भटकल, पाकिस्तानी आतंकी अब्दुल करीम टुंडा, जब्बार, जावेद कमाल, नेपाल के कपिलवस्तु का रहने वाला वसीम उर्फ खब्बू, बबर खालसा के सुखविंदर सिंह, भाग सिंह, अजमेर सिंह जैसे कई कुख्यात आतंकवादियों के पकड़े जाने से यह उजागर हुआ कि नेपाल आतंकवादियों के बड़े हब के रूप में विकसित हो चुका है। वैसे, मुंबई बम कांड के अभियुक्त टाइगर मेमन को भी भारत-नेपाल सीमा पर ही गिरफ्तार किया गया था। कभी नेपाल सरकार में मंत्री रहे मिर्जा दिलशाद बेग ने नेपाल में आईएसआई को फलाने-फुलाने में सक्रिय भूमिका अदा की थी। उसकी हत्या के बाद ऐसे नामों की कड़ी में सौकत बेग, युनुस अंसारी, फैजान अहमद, मजीद मनिहार जैसे अनगिनत लोगों का नाम जुड़ता गया जो नेपाल की राजनीति में प्रभावी कद रखते थे और रखते हैं। ये आईएसआई के एजेंट भी हैं और पाकिस्तान से फर्जी नोट मंगा कर उसे भारत में तस्करी कराते हैं। इसमें जामिम शाह भी एक नाम था, जिसे आईएसआई ने मीडिया टाइकून के रूप में नेपाल में खड़ा करने और भारत के प्रति नेपाल में नफरत पैदा करने वाली खबरें प्रसारित-प्रचारित कराने के लिए अकूत धन लगाया था। जामिम की हत्या हो जाने के बाद आईएसआई ने अपनी इस मंशा के लिए अन्य हथकंडों का इस्तेमाल किया। इस तरह आईएसआई की गतिविधियां लगातार बढ़ती ही चली गईं। इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि अकेले उत्तर प्रदेश के महराजगंज स्थित सोनौली बार्डर से ही पिछले डेढ़ साल में डेढ़ सौ से अधिक आतंकी पकड़े जा चुके हैं। आईएसआई की जड़ें नेपाल में इतनी गहरी रही हैं कि यासीन भटकल ने नेपाल में ही इंडियन मुजाहिदीन का गठन करना मुनासिब समझा था। एक लंबा दौर गुजरा है जब नेपाल के रास्ते ही आतंकवादियों की आमदरफ्त हो रही थी। यहां तक कि जब कश्मीर में आतंकियों के पुनर्वास की योजना बनी और उनके समक्ष आत्मसमर्पण का प्रस्ताव रखा गया तो पाकिस्तान में रह रहे कई आतंकवादी नेपाल के रास्ते ही भारत आए। खुफिया एजेंसी बताती है कि नेपाल के रास्ते कम से कम चार सौ आतंकवादी भारत पहुंचे। गृह मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि चार साल में साढ़े तीन सौ आतंकवादियों ने नेपाल पहुंच कर भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के आगे आत्मसमर्पण की इच्छा जताई और एसएसबी ने उन्हें जम्मू कश्मीर सरकार के सुपुर्द किया। विचित्र तथ्य यह है कि पाकिस्तान में छिपे कश्मीरी आतंकियों को आत्मसमर्पण करने के लिए अटारी बाघा बॉर्डर, सलमाबाद, चकन दा बाग सुरक्षा चौकी या इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के रास्ते आने का प्रावधान किया गया था, लेकिन इन प्रस्तावित रास्तों से कोई भी आतंकी नहीं आया। इसके लिए सबने नेपाल को अपना पसंदीदा स्थान चुना। आईएसआई पोषित आतंकी नेपाल से जुड़े तीनों राज्यों की खुली सीमा का खूब लाभ उठा रहे हैं लेकिन सीमा पर तैनात सीमा सुरक्षा बल ठीक से निगरानी नहीं कर पा रहा है। आतंकी गुट अकूत धन के लिए नशीले पदार्थों की अंधाधुंध तस्करी कर रहे हैं। एसएसबी का तर्क यह है कि उन्हें पासपोर्ट एंड कस्टम्स एक्ट का अधिकार नहीं दिया गया है, लिहाजा तस्करी की गतिविधियों पर कारगर रोक संभव नहीं हो पा रही। एसएसबी को तस्करों को गिरफ्तार करने, बरामद पदार्थों को जब्त करने और उनसे पूछताछ करने का अधिकार नहीं है। इसके लिए अलग से कस्टम विभाग और नारकोटिक्स महकमे के अधिकारियों को मौके पर बुलाना पड़ता है।
मध्य कमान में तैनात मिलिट्री इंटेलिजेंस के एक अधिकारी ने बताया कि कुछ अर्सा पहले नेपाल के रास्ते भारतीय सीमा क्षेत्र में घुस कर चीनी अधिकारियों के जायजा लेने की हरकतों को भी काफी गंभीरता से लिया गया। चीन के कस्टम विभाग के अधिकारियों के छद्म में चीनी सेना के अधिकारी और चीनी खुफिया एजेंसी के अधिकारियों ने भारतीय सीमा क्षेत्र का निरीक्षण किया था। हालांकि नेपाली सेना के अधिकारियों ने बताया था कि चीन के कस्टम विभाग के डिप्टी डायरेक्टर जनरल लांग चिंग वी व अन्य चीनी अधिकारियों ने निरीक्षण किया था। लेकिन चीनी अधिकारियों की अधिक दिलचस्पी भारत-नेपाल सीमा के नो मैंस लैंड में क्यों थी और उसी खास क्षेत्र का वे घंटों तक क्या निरीक्षण करते रहे, इसका समुचित जवाब नेपाली पक्ष से नहीं मिल पाया था। लेकिन इस घटना के बाद ही इस मामले में सेना ने अपना हस्तक्षेप बढ़ाना शुरू किया।
दूसरी तरफ रक्षा रणनीति के विशेषज्ञों ने भी देश के सीमा प्रबंधन को लेकर केंद्र सरकार से कहा है कि देश की सम्पूर्ण सीमा की सुरक्षा का प्रबंधन और नियंत्रण सेना के हाथ में दे दिया जाए। जिन सीमाओं की निगरानी का दायित्व अर्ध सैनिक बल के जिम्मे है, उन्हें भी सेना की निगरानी और नियंत्रण में रखा जाए, ताकि सीमा की सुरक्षा प्रोफेशनल तरीके से हो सके। पाकिस्तान, चीन, नेपाल, भूटान, म्यांमार और बांग्लादेश से लगी सीमाएं देश के 17 राज्यों के 92 जिलों से गुजरती हैं, लिहाजा बदले हुए सुरक्षा परिदृश्य में देश के विशाल सीमा क्षेत्र की हिफाजत के लिए कठोर प्रोफेशनल-मैनेजमेंट की आवश्यकता है। अभी सीमा सुरक्षा के काम में सेना के साथ-साथ असम राइफल्स, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) और सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) तैनात हैं। समुद्री सीमा की सुरक्षा के लिए अग्रिम पंक्ति में तटरक्षक बल और उसके बाद नौसेना तैनात रहती है। अलग-अलग स्थानीय पहलुओं को देखते हुए अलग-अलग सीमा की खास-खास तरीके से हिफाजत की जरूरत है। विशेषज्ञों ने सीमा प्रबंधन मामले में रक्षा मंत्रालय को अग्रणी भूमिका में रखने की सलाह दी है और कहा है कि सीमा की सुरक्षा में लगे सुरक्षा बलों में रणनीतिक जरूरतों के मद्देनजर ढांचागत फेरबदल किया जाना चाहिए। रक्षा मामलों के थिंक-टैंक से जुड़े विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर दिया है कि नेपाल, चीन, भूटान, म्यांमार और बांग्लादेश की सीमाओं पर जो केंद्रीय अर्ध सैनिक बल तैनात हैं, उन्हें भी सेना के सीधे नियंत्रण में दिया जाना अनिवार्य है। विशेषज्ञों ने म्यांमार सीमा की सुरक्षा असम राइफल्स से लेकर बीएसएफ को देने के प्रस्ताव पर सख्त एतराज जताया है। अपेक्षाकृत कम उम्र में ही रिटायर हो जाने वाले पूर्व सैनिकों को लेकर टेरिटोरियल आर्मी की ऐसी बटालियनें खड़ी करने की सलाह दी गई है जिसे सीमा पर तैनात किया जा सके, जो सुरक्षा में अर्ध सैनिक बलों से बेहतर साबित होंगी। सीमा की निगरानी के लिए ड्रोन की सुविधाओं से भी सेना को लैस किया जा रहा है। सलाह देने वालों में केंद्र सरकार के गृह सचिव रहे जीके पिल्लई, थलसेना के एडजुटेंट जनरल रहे लेफ्टिनेंट जनरल मुकेश सब्बरवाल, मिलिट्री ऑपरेशंस के डीजी रहे लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया, थलसेना की उत्तरी कमान के पूर्व मेजर जनरल उमंग सेठी, सेना मुख्यालय के डीडीजी रहे ब्रिगेडियर नरेंद्र कुमार जैसे सुरक्षा विशेषज्ञ शामिल हैं।
सीमा के बेहतर प्रबंधन और रखरखाव के लिए भारत सरकार नेपाल को जरूरी उपकरण और तकनीक वगैरह भी मुहैया कराने जा रही है। सीमा स्तम्भों पर जीपीआरएस सिस्टम लगाने और निगरानी के लिए जरूरी तकनीकी साधन उपलब्ध कराने के साथ-साथ नेपाल को हथियार और आयुध भी दिए जा रहे हैं। रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि नेपाली सेना द्वारा भारत से मांगे गए सैन्य उपकरणों की आपूर्ति की जा रही है। इसके पहले भी हथियारों और उपकरणों की बड़ी खेप नेपाल भेजी जा चुकी है। नेपाल को सैन्य उपकरणों की आपूर्ति के साथ-साथ नियमित संयुक्त अभ्यास, आतंकवाद विरोधी साझा कार्रवाई और दोनों देशों के बीच अभिसूचना के आदान-प्रदान पर भी सहमति हुई है। पिछली खेप में नेपाली सेना को भारत ने नेपाली मुद्रा में 1.76 अरब रुपये के हथियारों की आपूर्ति की थी। इसमें भारी संख्या में विभिन्न बोर की गोलियां, बम निरोधी उपकरण और विस्फोटकों सहित 26,000 अलग-अलग तरह के हथियार और उपकरण शामिल थे। भारत की तरफ से नेपाल को कारतूसों, बम निरोधी उपकरणों और विस्फोटकों से भरे 45 ट्रक, गैर-घातक साजो-सामान में 35 बख्तरबंद वाहन, 216 हल्के और 154 भारी वाहन सहित सैकड़ों वाहन और भारी वाहनों में 7.5 टन क्षमता वाले 58 ट्रक भेजे गए थे। इसके अलावा नेपाल को बारूदी सुरंग, डेटोनेटर, सेफ्टी फ्यूज और टाइम पेंसिल भी मुहैया कराए जा रहे हैं।
दोस्ती दोनों के लिए जरूरी
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने कहा कि भारत आकर हमारी सारी गलतफहमियां दूर हो गई हैं। नेपाल की गलतफहमियां क्या थीं, यह स्पष्ट है। चीन और पाकिस्तान द्वारा प्रदूषित माहौल में गलतफहमियां गहरा रही थीं, लेकिन भारत ने उसे समय रहते दूर करने की कोशिश की। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ओली से मिलते हुए कहा कि नेपाल की सुरक्षा भारत की सुरक्षा के साथ अंतरनिहित है। इस पर नेपाली प्रधानमंत्री ने भारतीय प्रधानमंत्री को बिग-ब्रदर नहीं बल्कि बड़ा भाई कहा। नेपाल का पूरा तंत्र हफ्तेभर से अधिक समय तक भारत में था। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से लेकर सेनाध्यक्ष राजेंद्र छेत्री और तमाम शीर्ष सेनाधिकारियों की टीम के भारत में होने का मतलब है और दुनिया को संदेश भी है। दरअसल भारत और नेपाल अलग-अलग रह ही नहीं सकते। दोनों देशों के संस्कार, परम्पराएं, रिश्तेदारियां, व्यापार जैसे तमाम आयाम एक-दूसरे से गहरे जुड़े हुए हैं। पुरातन समय से दोनों देश तकरीबन दो हजार किलोमीटर की लंबी विस्तृत सीमा बिल्कुल खुले तौर पर निर्बाध बांटते रहे हैं, जहां कोई पासपोर्ट और वीजा की जरूरत नहीं रही। 1950 में तो एक संधि भी हुई थी जिसमें नेपाली नागरिकों को भारतीय नागरिक की तरह ही समान शिक्षा और समान आर्थिक अवसर देने की बात कही गई थी। भारत ऐसा अकेला देश है जहां नेपाली नागरिकों को सिविल सेवा सहित दूसरी सरकारी सेवाओं में समान हिस्सा लेने का अधिकार है। भारत में 80 लाख से अधिक नेपाली नागरिक काम करते हैं। तकरीबन एक लाख से अधिक नेपाली नागरिक भारतीय सेना और अर्ध सैनिक बलों में काम कर रहे हैं। इसी तरह तकरीबन 10 लाख भारतीय नागरिक नेपाल में रहते हैं। भारत की तमाम बड़ी कंपनियां नेपाल की बड़ी निवेशक हैं। नेपाल का करीब 50 फीसदी विदेशी पूंजी निवेश भारतीय कंपनियों और योजनाओं के जरिए आता है। दो सौ से अधिक भारतीय उपक्रम नेपाल में काम कर रहे हैं। इनमें आईटीसी, डाबर इंडिया, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, एशियन पेंट्स, मणिपाल ग्रुप, एस्सेल इंफ्रा प्रोजेक्ट, टाटा पावर जैसी कई कंपनियां शामिल हैं। नेपाल के कुल कारोबार में 70 फीसदी व्यापार भारत के साथ होता है।
नेपाल सीमा पर सेना...
बढ़ती आतंकी हरकतों को देखते हुए भारतीय सेना ने भारत-नेपाल के खुले सीमाक्षेत्र पर सेना तैनात करने का प्रस्ताव दिया है। भारत-नेपाल सीमाक्षेत्र में बढ़ती जा रही आतंकी-आपराधिक-अराजक गतिविधियों से सेना और खुफिया एजेंसियां चिंतित हैं। नेपाल सीमा पर द्विस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था स्थापित करने के सेना के प्रस्ताव पर रक्षा मामलों की संसदीय समिति विचार कर रही है। वरिष्ठ नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने पिछले दिनों सेना के मध्य कमान मुख्यालय जाकर शीर्ष सेनाधिकारियों से बातचीत की और सुरक्षा जरूरतों का जायजा लिया। केंद्र सरकार रक्षा विशेषज्ञों की उस सलाह पर भी गंभीरता से विचार कर रही है जिसमें सीमा सुरक्षा का सम्पूर्ण प्रबंधन सेना के हाथ में दिए जाने की सिफारिश की गई है। इसमें यह भी शामिल है कि सीमा पर तैनात अर्ध सैनिक बलों पर भी सेना का ही कमांड एंड कंट्रोल रहे। विशेषज्ञों ने यह भी कहा है कि सेना से रिटायर होने वाले पूर्व सैनिकों को लेकर टेरिटोरियल आर्मी की बटालियनें खड़ी की जाएं, जिसे सीमा पर तैनात किया जा सके और सीमा की पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था की गारंटी हो सके। नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और नेपाली सेनाध्यक्ष जनरल राजेंद्र छेत्री का भारत दौरा इस नजरिए से भी महत्वपूर्ण है। दोनों तरफ सीमा की पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था को लेकर चिंता है। यह समय की मांग है...
आईएसआईएस के संभावित खतरों, आईएसआई पोषित आतंकवाद और पठानकोट जैसे आतंकी हमलों के कारण देश के सुरक्षा मापदंड और अनिवार्यताएं तेजी से बदली हैं। इसे देखते हुए भारतीय सेना ने नेपाल और भारत से जुड़ी 1757 किलोमीटर सीमा पर ठीक उसी तरह की सुरक्षा व्यवस्था लागू करने का प्रस्ताव दिया है जैसी सुरक्षा का द्विस्तरीय बंदोबस्त पाकिस्तान से लगी सीमाओं पर है। पाकिस्तान से लगे 3323 किलोमीटर सीमा-क्षेत्र में बीएसएफ तैनात है और उसके ठीक पीछे भारतीय सेना की कतारें तैनात रहती हैं। बांग्लादेश से लगी 4,096 किलोमीटर लंबी सीमा पर भी बीएसएफ तैनात है लेकिन उसे कवर करने के लिए सैन्य इकाइयां नजदीक में तैनात नहीं हैं। भारत-नेपाल सीमा पर न तो बीएसएफ है और न निकट में सैन्य इकाइयां तैनात हैं। यहां सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) तैनात है। एसएसबी को आतंकवादियों से सीधे लड़ने का कोई तजुर्बा नहीं है और दूसरी तरफ वह नेपाल के रास्ते भारत में हो रही जाली करेंसी और हथियारों की तस्करी व राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को रोकने में नाकाम साबित हुआ है। एसएसबी की नाकामियां देश की सुरक्षा संवेदनशीलता को देखते हुए काफी गंभीर हैं। कुछ ही अर्सा पहले जब एसएसबी के 13 जवानों को नेपाली सुरक्षा बल ने गिरफ्तार कर लिया और काफी देर तक बंधक बनाए रखने के बाद भारतीय दूतावास के हस्तक्षेप से छोड़ा तब एसएसबी की कमजोरी उजागर हुई थी। इससे भारत की काफी किरकिरी भी हुई थी। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार से लगा सीमा क्षेत्र सेना के मध्य कमान के तहत आता है, लिहाजा नेपाल सीमा की सुरक्षा उसकी चिंता का विषय है। इस मसले पर मध्य कमान का लखनऊ मुख्यालय इधर लगातार सक्रिय है। सेना मामलों की संसदीय समिति ने भी दो और तीन फरवरी को मध्य कमान का दौरा कर शीर्ष सैन्य अधिकारियों से सीमा सुरक्षा के विभिन्न मसलों पर विचार-विमर्श किया और सेना की राय से सहमति जताई। उधर, पश्चिम बंगाल से लगी नेपाल सीमा और बांग्लादेश से लगी सीमा की सुरक्षा जरूरतों के बारे में सेना के पूर्वी कमान ने रक्षा मंत्रालय को अपनी राय से अवगत करा दिया है। सुरक्षा प्राथमिकता का ही नतीजा है कि नेपाल के थलसेना अध्यक्ष जनरल राजेंद्र छेत्री कई दिन लखनऊ में रहे, भारतीय अधिकारियों के साथ बैठकें कीं, सैन्य इकाइयों का निरीक्षण किया और भारत-नेपाल सेना के साझा युद्धाभ्यास का जायजा लिया। भारत और नेपाल के सैनिकों का साझा अभ्यास लखनऊ में भी हुआ और उत्तराखंड में भी। नेपाली सेना के साथ हुए इस बार के साझा अभ्यास की खास बात यह रही कि भारतीय सेना ने नेपाली सेना को युद्ध के साथ-साथ आतंकियों से लड़ने का भी अभ्यास कराया और भूकंप या बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने की भी ट्रेनिंग दी। इन अभ्यासों में आतंकवादियों से मुकाबले के लिए ज्वाइंट-ऑपरेशन की तकनीक पर अधिक जोर दिया गया। नेपाल के सेनाध्यक्ष ने भारत-नेपाल सीमा पर सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त के प्रस्ताव पर अपनी सहमति जताई है। नेपाल की सेना के साथ साझेदारी और समझदारी का रवैया दिखा कर भारत सरकार ने नेपाल सरकार की यह भ्रांति भी हटाई है कि नेपाली मधेसियों को भारत समर्थन दे रहा है। इस भ्रम से पर्दा हटने के बाद ही नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली भारत आए और आपसी रिश्ते प्रगाढ़ किए। लंबे अर्से तक चले विवाद के बाद नेपाल के प्रधानमंत्री की सौहार्दपूर्ण भारत यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण है। छह दिनों की यात्रा पर भारत आए नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने कहा भी कि भारत के साथ हमारी सारी गलतफहमियां दूर हो गई हैं। भारत-नेपाल सीमा की सुरक्षा संवेदनशीलता को लेकर बढ़ी इस सक्रियता में देश के थलसेना अध्यक्ष जनरल दलबीर सिंह सुहाग के हाल ही हुए मध्य कमान के दौरे और मध्य कमान के सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बलवंत सिंह नेगी के उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार की विभिन्न सैन्य इकाइयों के दौरों को भी जोड़ कर देखा जा रहा है।
खबर के विस्तार में जाने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता का फायदा उठा कर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने नेपाल में किस तरह अपनी पकड़ मजबूत बनाई है। केंद्रीय खुफिया एजेंसी भी कहती है और जमीनी तथ्य भी बताते हैं कि नेपाल से लगे सीमा क्षेत्र में आईएसआई संरक्षित भारत विरोधी तत्वों को विस्तार से बसाया गया जिससे नकली करेंसी और हथियारों की तस्करी से लेकर तमाम आपराधिक गतिविधियां अप्रत्याशित रूप से बढ़ गईं। लश्कर-ए-तैयबा के कुख्यात आतंकी अब्दुल करीम टुंडा और इंडियन मुजाहिदीन के सरगना यासीन भटकल समेत कई आतंकवादियों की नेपाल में हुई गिरफ्तारियां इसकी सनद हैं। भारतीय खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड अनालिसिस विंग (रॉ) के अधिकारी कहते हैं कि आईएसआई पोषित तत्वों ने मधेसियों के आंदोलन में घुसपैठ कर नेपाल में हिंसक अराजकता फैलाने की कोशिश की और यह रंग दिया कि मधेसियों के आंदोलन को भारत की तरफ से समर्थन मिल रहा है। जबकि इसके पीछे असली इरादा सीमाई इलाके में घनघोर अस्थिरता फैलाना और भारत को बदनाम करना था। खुफिया एजेंसियों का मानना है कि नेपाल सीमा पर बसाई गई अवैध बस्तियों से ही आईएसआईएस जैसे खतरों के भी सतह पर आने की आशंका है। लिहाजा, जिस तरह म्यांमार की सेना के साथ मिल कर साझा ऑपरेशन और साझा निगरानी के फार्मूले पर उत्तर पूर्व में सहमति से काम हो रहा है उसी तरह नेपाल, भूटान और बांग्लादेश से मिल कर भी साझा सख्ती, साझा निगरानी और साझा ऑपरेशंस पर सहमति बनाने का काम तेजी से आगे बढ़ रहा है। सेना के शीर्ष सूत्रों का कहना है तीनों देशों ने इस पर अपनी सैद्धांतिक सहमति दी है। इसे व्यवहारिक शक्ल में बदलने के लिए जरूरी ढांचागत और व्यवस्थागत बंदोबस्त किए जा रहे हैं। भारत-नेपाल सीमा की सड़कों को दुरुस्त करने के लिए केंद्र सरकार ने राज्यवार मंजूरी दे दी है। भारत-नेपाल सीमा पर सेना की तैनाती का प्रस्ताव व्यवस्थागत बंदोबस्त का ही अहम हिस्सा है।
डॉ. मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली 11 सदस्यीय संसदीय समिति दो फरवरी को मध्य कमान के लखनऊ मुख्यालय पहुंची और अपने दो दिवसीय दौरे में भारत-नेपाल सीमा सुरक्षा के विभिन्न मसलों और सैन्य आश्यकताओं पर गहन विचार-विमर्श किया। इसमें सीमा पर सैन्य इकाइयों की तैनाती, उसके लिए जरूरी स्थापना, इस पर आने वाले खर्च से लेकर तमाम सम्बद्ध मसले शामिल थे। संसदीय समिति के साथ बातचीत में मध्य कमान के जनरल अफसर कमांडिंग इन चीफ (जीओसी इन सी) लेफ्टिनेंट जनरल बलवंत सिंह नेगी व मध्य कमान के अन्य शीर्ष अधिकारी शामिल थे। संसदीय समिति ने सेना के मध्य कमान की ऑपरेशनल तैयारियों का भी जायजा लिया। मध्य कमान के सेना कमांडर ने सीमांत क्षेत्रों में सड़कों और रेलवे के ढांचागत विकास की त्वरित अनिवार्यता को खास तौर पर रेखांकित किया। भारत-नेपाल सीमा पर सीमा स्तम्भों और सीमा चौकियों की चाक-चौबंद व्यवस्था के पहले सीमाई सड़कों का पुख्ता होना आवश्यक है। इसी इरादे से केंद्र सरकार ने 3853 करोड़ रुपये की लागत से नेपाल सीमा पर 1377 किलोमीटर सड़क के निर्माण को मंजूरी दे दी है। इसका राज्यवार विवरण यह है कि उत्तराखंड में नेपाल से लगी सीमा पर 530 करोड़ की लागत से 173 किलोमीटर सड़क का निर्माण होगा। उत्तर प्रदेश में नेपाल सीमा पर 1621 करोड़ की लागत से 640 किलोमीटर सड़क का निर्माण होगा और बिहार में नेपाल सीमा पर 1702 करोड़ रुपये की लागत से 564 किलोमीटर सड़क बनेगी।
मध्य कमान के शीर्ष सैन्य अधिकारियों और संसदीय समिति की दो दिवसीय बैठक में उठे मसलों की जानकारी देते हुए एक सेनाधिकारी ने बताया कि सड़कों के निर्माण के बाद भारत-नेपाल सीमा को रेखांकित करने वाले स्तम्भों को दुरुस्त करने का काम किया जाएगा। सीमा-स्तम्भों के सर्वेक्षण का कार्य हो रहा है। संसदीय समिति के रवाना होने के एक दिन बाद ही पांच फरवरी को लखनऊ पहुंचे नेपाल के सेनाध्यक्ष जनरल राजेंद्र छेत्री के समक्ष भी यह मसला उठा और यह सहमति बनी कि दोनों पक्ष सीमा-स्तम्भों के पुनरस्थापन, मरम्मती व क्षेत्र निर्धारण के काम में परस्पर सहयोग करेंगे। नेपाल के सेनाध्यक्ष अपने 10 सदस्यीय सैन्य प्रतिनिधिमंडल के साथ लखनऊ पहुंचे थे। दोनों देशों के सेनाधिकारियों के बीच दोनों देशों की सुरक्षा से जुड़े मसलों पर कई दौर की बातचीत हुई और सहमतियां बनीं। नेपाल के सेनाध्यक्ष ने 11वीं गोरखा रेजिमेंटल सेंटर का दौरा किया और सेना के प्रशिक्षण कार्यक्रमों का जायजा लिया। उनके साथ मध्य कमान के सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बलवंत सिंह नेगी मौजूद रहे। दोनों सेनाओं के बीच यह तय हुआ कि पारम्परिक रूप से दोनों देश की सीमाएं तो खुली रहेंगी, लेकिन जिस तरह बिना जांच-पड़ताल के निर्बाध रूप से लोगों का आवागमन बना रहता है, उस पर अब सख्त निगरानी और नियंत्रण रखने की आवश्यकता है।
उल्लेखनीय है कि भारत-नेपाल सीमा पर लगे 8553 स्तम्भों में से तकरीबन 2750 सीमा-स्तम्भ ध्वस्त हो चुके हैं या उन्हें हटा कर वहां पर लोग रहने लगे हैं। यहां तक कि सीमा स्तम्भों के दोनों तरफ सौ-सौ मीटर के नो-मैंस-लैंड पर भी लोगों को बसा दिया गया है। सीमा-स्तम्भों को हटा कर किया गया अतिक्रमण और सुनियोजित तरीके से लोगों को बसा दिए जाने को सेना भविष्य के खतरे का संकेत मानती है। रक्षा मंत्रालय के समक्ष पेश किए गए तथ्यों और आंकड़ों के मुताबिक नेपाल सीमा पर लगे स्तम्भों में से 1,451 स्तम्भ गायब हैं और वहां पर लोग बाकायदा बस्तियां बना कर रह रहे हैं। करीब 13 सौ स्तम्भ बुरी तरह ध्वस्त कर दिए गए हैं। बिहार की दशा और भी खराब है। बिहार से लगी नेपाल सीमा पर अवैध बसावट भीषण शक्ल अख्तियार कर चुकी है। बिहार-नेपाल सीमा पर 970 स्तम्भ ढहाए जा चुके हैं और अधिकांश स्थानों पर (नो मैंस लैंड समेट कर) अवैध बस्तियां बस चुकी हैं। खुफिया एजेंसियां कहती हैं कि सीमा स्तम्भों को गायब कर वहां बसाई गई अवैध बस्तियों से भारत विरोधी गतिविधियां संचालित होती हैं और वे तस्करों से लेकर आतंकी और अपराधी तत्वों का सुरक्षित ठिकाना बन चुकी हैं। भारत-नेपाल सीमा का उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल से लगा विशाल क्षेत्र दोनों देशों के नियंत्रण से बाहर फिसलता जा रहा है, लिहाजा इस पर फौरन द्विपक्षीय बंदोबस्त और कार्रवाई आवश्यक है। सीमा स्तम्भों का ऐसा ही हाल भारत-भूटान सीमा का भी है, जहां नौ सौ से अधिक स्तम्भ गायब हो चुके हैं। भारत-भूटान के 699 किलोमीटर वाले मुक्त सीमा क्षेत्र में कुल 1705 स्तम्भ हैं। फिलहाल, भारत-नेपाल सीमा पर स्तम्भों के गायब होने के कारण क्षेत्र को लेकर बन रहे भ्रम को दूर कर उन्हें फिर से स्थापित करने और मरम्मत करने की दिशा में काम हो रहा है। जहां स्तम्भ गायब हैं वहां सीमा के सटीक निर्धारण के लिए सेना कार्टोग्राफिक तकनीक का इस्तेमाल करने जा रही है। इसमें सर्वेक्षण विभाग की भी मदद ली जा रही है। सीमा पर नेपाल के स्तम्भ कम हैं और भारत के ज्यादा, फिर भी, विषम (ऑड) और सम (इवन) नंबरों के आधार पर भारत और नेपाल के सुरक्षा बल अपने-अपने क्षेत्र में स्तम्भों को फिर से स्थापित करने का काम कर रहे हैं। सम संख्या भारत के स्तम्भों की है तो विषम संख्या वाले स्तम्भ नेपाल के हैं। सीमा क्षेत्र के निर्धारण और गायब स्तम्भों की शिनाख्त के काम में सुरक्षा बल के साथ-साथ भारत के सर्वे विभाग की आधा दर्जन टीमें उत्तर प्रदेश और बिहार में काम कर रही हैं। उत्तर प्रदेश के बहराइच, लखीमपुर खीरी, बलरामपुर, गोरखपुर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर और बिहार के रक्सौल, जयनगर में खास तौर पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, क्योंकि इन सीमाई क्षेत्रों में स्तम्भ हटा कर अवैध बस्तियां बसाने का काम धुंआधार हुआ है। सीमा स्तम्भों की पहचान करने का काम युद्ध स्तर पर शुरू करने का फैसला सेना की सतर्कता के बाद हुआ है, इसमें उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के भू-स्थानिक आंकड़ा केंद्र को भी संलग्न करने का निर्णय हुआ है। भारत-नेपाल सीमा कार्यकारी समूह इसकी निगरानी कर रहा है। सीमा स्तम्भों पर जीपीएस उपकरण लगाए जाएंगे और उनके नियंत्रण के लिए तकरीबन सौ कंट्रोल प्वाइंट्स होंगे, जहां स्तम्भों के बारे में जानकारियां दर्ज रहेंगी।
सेना सूत्रों ने कहा कि भारत-नेपाल सीमा प्रबंधन का काम कई क्रम में होगा। सीमा स्तम्भों की पहचान और उसके निर्माण के साथ ही सीमा चौकियों के प्रबंधन को भी दुरुस्त किया जाना है। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और सिक्किम तक नेपाल से जुड़ी सीमा 1757 किलोमीटर तक विस्तृत है। इसमें उत्तराखंड से 263 किलोमीटर, उत्तर प्रदेश से 566 किलोमीटर, बिहार से 729 किलोमीटर, पश्चिम बंगाल से 100 किलोमीटर और सिक्किम से 99 किलोमीटर सीमा लगती है। इस 1757 किलोमीटर के सीमा क्षेत्र में फिलहाल 455 सुरक्षा चौकियां हैं, जिसकी संख्या बढ़ाई जा रही है। प्रत्येक चार किलोमीटर के अंतर पर एक सुरक्षा चौकी बनाने का प्रस्ताव है। फिलहाल जो चौकियां हैं, वे एसएसबी की निगरानी में हैं, जिसे बीएसएफ के सुपुर्द करने का प्रस्ताव है। इन 455 सीमा रक्षा चौकियों में उत्तराखंड की 53, उत्तर प्रदेश की 148, बिहार की 193, पश्चिम बंगाल की 43 और सिक्किम की 18 रक्षा चौकियां शामिल हैं। सीमा सुरक्षा को लेकर नेपाल का रवैया अबतक गैर जिम्मेदाराना रहा है। नेपाल ने यह माना है कि तकरीबन 18 सौ किलोमीटर लंबे सीमा क्षेत्र की सुरक्षा में आर्म्ड पुलिस फोर्स (एपीएफ) की तैनाती बगैर किसी ठोस योजना के की गई। इस वजह से सीमा के स्तम्भों की हिफाजत की रणनीतिक जरूरतों पर कोई ध्यान नहीं दिया जा सका। नेपाल की तरफ कुल 87 बॉर्डर आउट पोस्ट हैं, जबकि भारत ने 455 सुरक्षा चौकियां बना रखी हैं और इसे बढ़ाया जा रहा है।
सीमा सुरक्षा के इन जरूरी मसलों पर जद्दोजहद के साथ ही उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में भारत और नेपाली सेना का साझा युद्धाभ्यास सूर्य-किरण-9 भी शुरू हुआ। आठ फरवरी से 21 फरवरी तक चले युद्धाभ्यास की खासियत यह रही कि इसमें नेपाली सेना की सबसे बेहतरीन मानी जाने वाली रुद्र धोज बटालियन शरीक हुई। मध्य कमान के कार्यवाहक मेजर जनरल संजय शर्मा के नेतृत्व में मध्य कमान के पंचशूल ब्रिगेड के तहत यह युद्धाभ्यास हुआ। भारत और नेपाल का यह नौवां साझा युद्धाभ्यास था, लेकिन यह युद्धाभ्यास खास इसलिए माना जा रहा है क्योंकि इस बार नेपाली सेना को आतंकवादियों से मुकाबला करने और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने की भी विशेषज्ञीय ट्रेनिंग दी गई। साझा युद्धाभ्यास के आखिरी दौर में दोनों तरफ की सेनाओं के वरिष्ठ अधिकारियों ने हिस्सा लिया। इसमें नेपाली सेना के मेजर जनरल शेखर सिंह बंसायत और भारतीय सेना की पंचशूल ब्रिगेड के कमांडर ब्रिगेडियर राकेश मनोचा भी शरीक हुए। इस संयुक्त अभ्यास में पर्वतीय क्षेत्रों में लड़े जाने वाले जंगल युद्ध और आतंकवाद विरोधी सैन्य ऑपरेशन के बारे में खास ट्रेनिंग हुई और तकनीकी व खुफिया जानकारियां साझा की गईं।
थलसेना की ऑपरेशनल शाखा से जुड़े एक आला अधिकारी ने बताया कि भारत सरकार ने कई देशों से जुड़ने वाली अपनी सीमाओं के प्रबंधन को दुरुस्त करने की दिशा में ठोस काम किया है। श्रीलंका से जुड़ी समुद्री सीमा पर राष्ट्र विरोधी और तस्करी की गतिविधियां बहुत कम हो गई हैं। यही स्थिति बांग्लादेश और म्यांमार सीमा पर भी कायम हुई है। बांग्लादेश और म्यांमार सरकार से साझा सहमति बना कर वहां भी सीमा प्रबंधन का द्विपक्षीय बंदोबस्त किया जा रहा है। यही पहल नेपाल और भूटान के साथ हो रही है और भारत-नेपाल विस्तृत सीमा क्षेत्र के पुख्ता प्रबंधन की दिशा में ठोस काम हो रहा है। उल्लेखनीय है कि भारत और बांग्लादेश के बीच 4,096 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है, जबकि म्यांमार से सटी भारत की सीमा 1643 किलोमीटर लंबी है। इसमें उत्तर पूर्व के चार राज्यों की सीमा लगती है। अरुणाचल प्रदेश की 520 किलोमीटर सीमा, नगालैंड की 215 किलोमीटर, मणिपुर की 398 किलोमीटर और मिजोरम की 510 किलोमीटर सीमा म्यांमार से जुड़ती है। पाकिस्तान से जुड़ने वाली भारतीय सीमा सबसे विस्तृत है। भारत के साथ लगने वाली पाकिस्तान सीमा तकरीबन 3323 किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। जम्मू-कश्मीर में कुल 708 किलोमीटर की नियंत्रण रेखा है। इसमें अकेले जम्मू में भारत और पाकिस्तान के बीच 210 किलोमीटर की अंतरराष्ट्रीय सीमा है। भारत और पाकिस्तान के बीच पंजाब से सटा 553 किलोमीटर सीमाक्षेत्र है। भारत और पाकिस्तान के बीच गुजरात से लगी 508 किलोमीटर लंबी सीमा है। राजस्थान में पाकिस्तान से लगी सीमा 1037 किलोमीटर की है। इतने विस्तृत सीमा क्षेत्र में अग्रिम चौकियों पर सीमा सुरक्षा बल (बीएसफ) और उसके ठीक पीछे सेना की लड़ाकू इकाइयां तैनात हैं। देश की अन्य अंतरराष्ट्रीय सीमा पर भी सैन्य इकाइयों की तैनाती का प्रस्ताव है, जिसे लेकर केंद्र सरकार और रक्षा मंत्रालय गंभीर है।
आतंकी हरकतों का बड़ा जरिया बन सकता है नेपाल का सीमा क्षेत्र
नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) ने इस बात की तस्दीक की है कि नेपाल से लगा सीमा क्षेत्र आने वाले समय में आतंकवादी हरकतों का बड़ा मार्ग बन सकता है, लिहाजा इसकी समुचित व्यवस्था समय रहते की जानी चाहिए। पिछले कुछ ही अंतराल में कुख्यात आतंकी यासीन भटकल, पाकिस्तानी आतंकी अब्दुल करीम टुंडा, जब्बार, जावेद कमाल, नेपाल के कपिलवस्तु का रहने वाला वसीम उर्फ खब्बू, बबर खालसा के सुखविंदर सिंह, भाग सिंह, अजमेर सिंह जैसे कई कुख्यात आतंकवादियों के पकड़े जाने से यह उजागर हुआ कि नेपाल आतंकवादियों के बड़े हब के रूप में विकसित हो चुका है। वैसे, मुंबई बम कांड के अभियुक्त टाइगर मेमन को भी भारत-नेपाल सीमा पर ही गिरफ्तार किया गया था। कभी नेपाल सरकार में मंत्री रहे मिर्जा दिलशाद बेग ने नेपाल में आईएसआई को फलाने-फुलाने में सक्रिय भूमिका अदा की थी। उसकी हत्या के बाद ऐसे नामों की कड़ी में सौकत बेग, युनुस अंसारी, फैजान अहमद, मजीद मनिहार जैसे अनगिनत लोगों का नाम जुड़ता गया जो नेपाल की राजनीति में प्रभावी कद रखते थे और रखते हैं। ये आईएसआई के एजेंट भी हैं और पाकिस्तान से फर्जी नोट मंगा कर उसे भारत में तस्करी कराते हैं। इसमें जामिम शाह भी एक नाम था, जिसे आईएसआई ने मीडिया टाइकून के रूप में नेपाल में खड़ा करने और भारत के प्रति नेपाल में नफरत पैदा करने वाली खबरें प्रसारित-प्रचारित कराने के लिए अकूत धन लगाया था। जामिम की हत्या हो जाने के बाद आईएसआई ने अपनी इस मंशा के लिए अन्य हथकंडों का इस्तेमाल किया। इस तरह आईएसआई की गतिविधियां लगातार बढ़ती ही चली गईं। इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि अकेले उत्तर प्रदेश के महराजगंज स्थित सोनौली बार्डर से ही पिछले डेढ़ साल में डेढ़ सौ से अधिक आतंकी पकड़े जा चुके हैं। आईएसआई की जड़ें नेपाल में इतनी गहरी रही हैं कि यासीन भटकल ने नेपाल में ही इंडियन मुजाहिदीन का गठन करना मुनासिब समझा था। एक लंबा दौर गुजरा है जब नेपाल के रास्ते ही आतंकवादियों की आमदरफ्त हो रही थी। यहां तक कि जब कश्मीर में आतंकियों के पुनर्वास की योजना बनी और उनके समक्ष आत्मसमर्पण का प्रस्ताव रखा गया तो पाकिस्तान में रह रहे कई आतंकवादी नेपाल के रास्ते ही भारत आए। खुफिया एजेंसी बताती है कि नेपाल के रास्ते कम से कम चार सौ आतंकवादी भारत पहुंचे। गृह मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि चार साल में साढ़े तीन सौ आतंकवादियों ने नेपाल पहुंच कर भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के आगे आत्मसमर्पण की इच्छा जताई और एसएसबी ने उन्हें जम्मू कश्मीर सरकार के सुपुर्द किया। विचित्र तथ्य यह है कि पाकिस्तान में छिपे कश्मीरी आतंकियों को आत्मसमर्पण करने के लिए अटारी बाघा बॉर्डर, सलमाबाद, चकन दा बाग सुरक्षा चौकी या इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के रास्ते आने का प्रावधान किया गया था, लेकिन इन प्रस्तावित रास्तों से कोई भी आतंकी नहीं आया। इसके लिए सबने नेपाल को अपना पसंदीदा स्थान चुना। आईएसआई पोषित आतंकी नेपाल से जुड़े तीनों राज्यों की खुली सीमा का खूब लाभ उठा रहे हैं लेकिन सीमा पर तैनात सीमा सुरक्षा बल ठीक से निगरानी नहीं कर पा रहा है। आतंकी गुट अकूत धन के लिए नशीले पदार्थों की अंधाधुंध तस्करी कर रहे हैं। एसएसबी का तर्क यह है कि उन्हें पासपोर्ट एंड कस्टम्स एक्ट का अधिकार नहीं दिया गया है, लिहाजा तस्करी की गतिविधियों पर कारगर रोक संभव नहीं हो पा रही। एसएसबी को तस्करों को गिरफ्तार करने, बरामद पदार्थों को जब्त करने और उनसे पूछताछ करने का अधिकार नहीं है। इसके लिए अलग से कस्टम विभाग और नारकोटिक्स महकमे के अधिकारियों को मौके पर बुलाना पड़ता है।
मध्य कमान में तैनात मिलिट्री इंटेलिजेंस के एक अधिकारी ने बताया कि कुछ अर्सा पहले नेपाल के रास्ते भारतीय सीमा क्षेत्र में घुस कर चीनी अधिकारियों के जायजा लेने की हरकतों को भी काफी गंभीरता से लिया गया। चीन के कस्टम विभाग के अधिकारियों के छद्म में चीनी सेना के अधिकारी और चीनी खुफिया एजेंसी के अधिकारियों ने भारतीय सीमा क्षेत्र का निरीक्षण किया था। हालांकि नेपाली सेना के अधिकारियों ने बताया था कि चीन के कस्टम विभाग के डिप्टी डायरेक्टर जनरल लांग चिंग वी व अन्य चीनी अधिकारियों ने निरीक्षण किया था। लेकिन चीनी अधिकारियों की अधिक दिलचस्पी भारत-नेपाल सीमा के नो मैंस लैंड में क्यों थी और उसी खास क्षेत्र का वे घंटों तक क्या निरीक्षण करते रहे, इसका समुचित जवाब नेपाली पक्ष से नहीं मिल पाया था। लेकिन इस घटना के बाद ही इस मामले में सेना ने अपना हस्तक्षेप बढ़ाना शुरू किया।
दूसरी तरफ रक्षा रणनीति के विशेषज्ञों ने भी देश के सीमा प्रबंधन को लेकर केंद्र सरकार से कहा है कि देश की सम्पूर्ण सीमा की सुरक्षा का प्रबंधन और नियंत्रण सेना के हाथ में दे दिया जाए। जिन सीमाओं की निगरानी का दायित्व अर्ध सैनिक बल के जिम्मे है, उन्हें भी सेना की निगरानी और नियंत्रण में रखा जाए, ताकि सीमा की सुरक्षा प्रोफेशनल तरीके से हो सके। पाकिस्तान, चीन, नेपाल, भूटान, म्यांमार और बांग्लादेश से लगी सीमाएं देश के 17 राज्यों के 92 जिलों से गुजरती हैं, लिहाजा बदले हुए सुरक्षा परिदृश्य में देश के विशाल सीमा क्षेत्र की हिफाजत के लिए कठोर प्रोफेशनल-मैनेजमेंट की आवश्यकता है। अभी सीमा सुरक्षा के काम में सेना के साथ-साथ असम राइफल्स, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) और सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) तैनात हैं। समुद्री सीमा की सुरक्षा के लिए अग्रिम पंक्ति में तटरक्षक बल और उसके बाद नौसेना तैनात रहती है। अलग-अलग स्थानीय पहलुओं को देखते हुए अलग-अलग सीमा की खास-खास तरीके से हिफाजत की जरूरत है। विशेषज्ञों ने सीमा प्रबंधन मामले में रक्षा मंत्रालय को अग्रणी भूमिका में रखने की सलाह दी है और कहा है कि सीमा की सुरक्षा में लगे सुरक्षा बलों में रणनीतिक जरूरतों के मद्देनजर ढांचागत फेरबदल किया जाना चाहिए। रक्षा मामलों के थिंक-टैंक से जुड़े विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर दिया है कि नेपाल, चीन, भूटान, म्यांमार और बांग्लादेश की सीमाओं पर जो केंद्रीय अर्ध सैनिक बल तैनात हैं, उन्हें भी सेना के सीधे नियंत्रण में दिया जाना अनिवार्य है। विशेषज्ञों ने म्यांमार सीमा की सुरक्षा असम राइफल्स से लेकर बीएसएफ को देने के प्रस्ताव पर सख्त एतराज जताया है। अपेक्षाकृत कम उम्र में ही रिटायर हो जाने वाले पूर्व सैनिकों को लेकर टेरिटोरियल आर्मी की ऐसी बटालियनें खड़ी करने की सलाह दी गई है जिसे सीमा पर तैनात किया जा सके, जो सुरक्षा में अर्ध सैनिक बलों से बेहतर साबित होंगी। सीमा की निगरानी के लिए ड्रोन की सुविधाओं से भी सेना को लैस किया जा रहा है। सलाह देने वालों में केंद्र सरकार के गृह सचिव रहे जीके पिल्लई, थलसेना के एडजुटेंट जनरल रहे लेफ्टिनेंट जनरल मुकेश सब्बरवाल, मिलिट्री ऑपरेशंस के डीजी रहे लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया, थलसेना की उत्तरी कमान के पूर्व मेजर जनरल उमंग सेठी, सेना मुख्यालय के डीडीजी रहे ब्रिगेडियर नरेंद्र कुमार जैसे सुरक्षा विशेषज्ञ शामिल हैं।
सीमा के बेहतर प्रबंधन और रखरखाव के लिए भारत सरकार नेपाल को जरूरी उपकरण और तकनीक वगैरह भी मुहैया कराने जा रही है। सीमा स्तम्भों पर जीपीआरएस सिस्टम लगाने और निगरानी के लिए जरूरी तकनीकी साधन उपलब्ध कराने के साथ-साथ नेपाल को हथियार और आयुध भी दिए जा रहे हैं। रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि नेपाली सेना द्वारा भारत से मांगे गए सैन्य उपकरणों की आपूर्ति की जा रही है। इसके पहले भी हथियारों और उपकरणों की बड़ी खेप नेपाल भेजी जा चुकी है। नेपाल को सैन्य उपकरणों की आपूर्ति के साथ-साथ नियमित संयुक्त अभ्यास, आतंकवाद विरोधी साझा कार्रवाई और दोनों देशों के बीच अभिसूचना के आदान-प्रदान पर भी सहमति हुई है। पिछली खेप में नेपाली सेना को भारत ने नेपाली मुद्रा में 1.76 अरब रुपये के हथियारों की आपूर्ति की थी। इसमें भारी संख्या में विभिन्न बोर की गोलियां, बम निरोधी उपकरण और विस्फोटकों सहित 26,000 अलग-अलग तरह के हथियार और उपकरण शामिल थे। भारत की तरफ से नेपाल को कारतूसों, बम निरोधी उपकरणों और विस्फोटकों से भरे 45 ट्रक, गैर-घातक साजो-सामान में 35 बख्तरबंद वाहन, 216 हल्के और 154 भारी वाहन सहित सैकड़ों वाहन और भारी वाहनों में 7.5 टन क्षमता वाले 58 ट्रक भेजे गए थे। इसके अलावा नेपाल को बारूदी सुरंग, डेटोनेटर, सेफ्टी फ्यूज और टाइम पेंसिल भी मुहैया कराए जा रहे हैं।
दोस्ती दोनों के लिए जरूरी
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने कहा कि भारत आकर हमारी सारी गलतफहमियां दूर हो गई हैं। नेपाल की गलतफहमियां क्या थीं, यह स्पष्ट है। चीन और पाकिस्तान द्वारा प्रदूषित माहौल में गलतफहमियां गहरा रही थीं, लेकिन भारत ने उसे समय रहते दूर करने की कोशिश की। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ओली से मिलते हुए कहा कि नेपाल की सुरक्षा भारत की सुरक्षा के साथ अंतरनिहित है। इस पर नेपाली प्रधानमंत्री ने भारतीय प्रधानमंत्री को बिग-ब्रदर नहीं बल्कि बड़ा भाई कहा। नेपाल का पूरा तंत्र हफ्तेभर से अधिक समय तक भारत में था। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से लेकर सेनाध्यक्ष राजेंद्र छेत्री और तमाम शीर्ष सेनाधिकारियों की टीम के भारत में होने का मतलब है और दुनिया को संदेश भी है। दरअसल भारत और नेपाल अलग-अलग रह ही नहीं सकते। दोनों देशों के संस्कार, परम्पराएं, रिश्तेदारियां, व्यापार जैसे तमाम आयाम एक-दूसरे से गहरे जुड़े हुए हैं। पुरातन समय से दोनों देश तकरीबन दो हजार किलोमीटर की लंबी विस्तृत सीमा बिल्कुल खुले तौर पर निर्बाध बांटते रहे हैं, जहां कोई पासपोर्ट और वीजा की जरूरत नहीं रही। 1950 में तो एक संधि भी हुई थी जिसमें नेपाली नागरिकों को भारतीय नागरिक की तरह ही समान शिक्षा और समान आर्थिक अवसर देने की बात कही गई थी। भारत ऐसा अकेला देश है जहां नेपाली नागरिकों को सिविल सेवा सहित दूसरी सरकारी सेवाओं में समान हिस्सा लेने का अधिकार है। भारत में 80 लाख से अधिक नेपाली नागरिक काम करते हैं। तकरीबन एक लाख से अधिक नेपाली नागरिक भारतीय सेना और अर्ध सैनिक बलों में काम कर रहे हैं। इसी तरह तकरीबन 10 लाख भारतीय नागरिक नेपाल में रहते हैं। भारत की तमाम बड़ी कंपनियां नेपाल की बड़ी निवेशक हैं। नेपाल का करीब 50 फीसदी विदेशी पूंजी निवेश भारतीय कंपनियों और योजनाओं के जरिए आता है। दो सौ से अधिक भारतीय उपक्रम नेपाल में काम कर रहे हैं। इनमें आईटीसी, डाबर इंडिया, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, एशियन पेंट्स, मणिपाल ग्रुप, एस्सेल इंफ्रा प्रोजेक्ट, टाटा पावर जैसी कई कंपनियां शामिल हैं। नेपाल के कुल कारोबार में 70 फीसदी व्यापार भारत के साथ होता है।
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