Wednesday, March 2, 2016

पढिए, जेएनयू के पिछडे और दलित विद्यार्थियों द्वारा 2011, 2012, 2013 और 2014 में जारी पोस्‍टर। स्‍मृति इरानी कहती हैं कि इन लोगों ने अमर्यादित भाषा का प्रयोग किया! जबकि इन पोस्टरों में तो ऐसा कुछ भी नहीं है।


पढिए, जेएनयू के पिछडे और दलित विद्यार्थियों द्वारा 2011, 2012, 2013 और 2014 में जारी पोस्‍टर। स्‍मृति इरानी कहती हैं कि इन लोगों ने अमर्यादित भाषा का प्रयोग किया! जबकि इन पोस्टरों में तो ऐसा कुछ भी नहीं है।
इरानी जी, वे बुद्ध की परंपरा के लोग हैं। वे आपसे अधिक मार्यादा जानते हैं। वह पोस्‍टर, जिसका जिक्र आपने संसद में किया, वह इन दलित पिछडे लडके-लडकियों ने नहीं निकाला था, बल्कि आपके ही छात्र संगठन ने इन पर झूठा आरोप लगाने के लिए जारी किया था। अगर आपके पास सबूत है तो वह पोस्‍टर जारी करें, जिसमें आयोजनकर्ताओं ने अमार्यादित भाषा का इस्‍तेमाल किया हो। बहरहाल आपने संसद में जो कहा, वही बात संथाल आदिवासी अपने दसईं त्‍योहार में गीत व नृत्‍य के माध्‍यम से हर साल कहते हैं। लेकिन उनकी भी भाषा ऐसी विभत्‍स नहीं होती, जैसी आपकी थी।
भारत में एक संस्‍कृति नहीं, कई संस्‍कृतियां हैं। इसीलिए सवाल तथ्‍य का ही नहीं, भाषा का भी है। विभिन्‍न संस्‍कृतियों का सहअस्तित्‍व तभी संभव है, जब भाषा शालीन हो। तभी हम एक दूसरे को समझ सकते हैं, एक दूसरे से सीख सकते हैं। लेकिन आपकी मंशा यह नहीं लगती है। आपकी मंशा तो नफरत फैलाने व कमजारों की संस्‍कृतियों को रौंद देने की है।
महिषासुर दिवस के आयोजकों ने कहा है कि जेएनयू प्रशासन ने आपके छात्र संगठन एबीवीपी द्वारा लगवाये गये पोस्‍टर को ही 'प्रमाणित' किया है, न कि महिषासुर दिवस का आयोजन करने वालों के पोस्‍टर को। यानी, आपके छात्र संगठन ने जो 'आरेाप' लगाए, उसी को आपने 'तथ्‍य' के रूप में संसद में पेश कर दिया। यह साफ तौर पर एक फरेब है। आपको संसद को बताना चाहिए कि इस प्रकार के आरोप हमारे छात्र संगठन एबीवीपी से जुडे कुछ 'एससी, एसटी ओबीसी' लडकों ने लगाये हैं। यह भाषा हमारे छात्र संगठन की है।
स्मृति जी, लड़ाइयां चलती रहेगीं, लेकिन आपसे आग्रह है कि भारतीय संसद की उच्‍च परंपराओं को कृपया इस प्रकार दूषित न करें।

No comments:

Post a Comment