Monday, March 14, 2016

Dilip C Mandal कुछ मुसलमान दोस्त बार बार कहते हैं कि जब फातिमा शेख और सावित्रीबाई फुले ने 1848 में भारत का पहला गर्ल्स स्कूल खोला, फिर सावित्रीबाई फुले राष्ट्र नायिका क्यों और फातिमा शेख के हिस्से में अंधकार क्यों? फातिमा शेख की बात क्यों नहीं होती? ऐसा है दोस्त कि नायिका और नायक होते नहीं हैं, बनाना पड़ता है. लोग तो अपना किरदार निभाकर चले जाते हैं, बाकी का काम आने वाली नस्लों को करना पड़ता है. सावित्रीबाई फुले के चाहने वालों ने बड़ी मेहनत से उनके काम को स्थापित किया. मुसलमानों ने फातिमा शेख के लिए ऐसा कुछ नहीं किया है. फातिमा शेख को जो मान्यता मिली है, उसे दिलाने का काम अब तक गैर मुसलमानों ने ही किया है. स्कूल खुला उस्मान शेख के मकान में, फातिमा शेख टीचर, लेकिन इस बात को बताने में मुसलमान शरमाता क्यों है? जब आप को अपने महान लोगों की पहचान नहीं है, तो औरों से शिकायत कैसी? फातिमा शेख का काम इतना महान है, कि उन्हें स्थापित होने से कोई रोक नहीं सकता. लेकिन क्या मुसलमानों में इसका आत्मविश्वास है.




कुछ मुसलमान दोस्त बार बार कहते हैं कि जब फातिमा शेख और सावित्रीबाई फुले ने 1848 में भारत का पहला गर्ल्स स्कूल खोला, फिर सावित्रीबाई फुले राष्ट्र नायिका क्यों और फातिमा शेख के हिस्से में अंधकार क्यों? फातिमा शेख की बात क्यों नहीं होती?
ऐसा है दोस्त कि नायिका और नायक होते नहीं हैं, बनाना पड़ता है. लोग तो अपना किरदार निभाकर चले जाते हैं, बाकी का काम आने वाली नस्लों को करना पड़ता है.
सावित्रीबाई फुले के चाहने वालों ने बड़ी मेहनत से उनके काम को स्थापित किया. मुसलमानों ने फातिमा शेख के लिए ऐसा कुछ नहीं किया है. फातिमा शेख को जो मान्यता मिली है, उसे दिलाने का काम अब तक गैर मुसलमानों ने ही किया है.
स्कूल खुला उस्मान शेख के मकान में, फातिमा शेख टीचर, लेकिन इस बात को बताने में मुसलमान शरमाता क्यों है?
जब आप को अपने महान लोगों की पहचान नहीं है, तो औरों से शिकायत कैसी? फातिमा शेख का काम इतना महान है, कि उन्हें स्थापित होने से कोई रोक नहीं सकता.
लेकिन क्या मुसलमानों में इसका आत्मविश्वास है.

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