Tuesday, March 8, 2016

Poem by Gorakh Pandey,the people`s poet!'उसने जीने के लिए खाना खाया उसने खाने के लिए पैसा कमाया उसने पैसे के लिये रिक्शा चलाया उसने चलाने के लिए ताकत जुटायी उसने ताकत के लिए फिर रोटी खाई उसने खाने के लिए पैसा कमाया उसने पैसे के लिए रिक्शा चलाया उसने रोज रोज नियम से चक्कर लगाया अंत में मरा तो उसे जीना याद आया।' वक्त बदल गया, हालात नहीं बदले।


आज ही के दिन यानि 8 मार्च 1976 को कवि गोरख पांडेय ने जौनपुर जाते समय रिक्शे पर मुझे यह कविता सुनाई थी:
'उसने जीने के लिए खाना खाया
उसने खाने के लिए पैसा कमाया
उसने पैसे के लिये रिक्शा चलाया
उसने चलाने के लिए ताकत जुटायी
उसने ताकत के लिए फिर रोटी खाई
उसने खाने के लिए पैसा कमाया
उसने पैसे के लिए रिक्शा चलाया
उसने रोज रोज नियम से चक्कर लगाया
अंत में मरा तो उसे जीना याद आया।'
वक्त बदल गया, हालात नहीं बदले।

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