28 वर्षीय अध्यापिका और युवा आदिवासी कवि दोपदी सिंघार की एक और कविता।
रेप
'तेरा रेप हुआ
या पचीस हजार को आई है'
बोला हँसा और बोला
'तेरा रेप कौन करेगा
सतयुग में दोपदिया पाँच खसम किए है
कलयुग पचास करेगी
तेरा रेप हुआ है
झूठी मक्कार
या पचीस हजार को आई है'
बोला हँसा और बोला
'तेरा रेप कौन करेगा
सतयुग में दोपदिया पाँच खसम किए है
कलयुग पचास करेगी
तेरा रेप हुआ है
झूठी मक्कार
काला कालूटा बदन देख अपना
बासभरी बालभरी बगलें सूंघ अपनी
तू कहती है तेरा रेप हुआ है
बासभरी बालभरी बगलें सूंघ अपनी
तू कहती है तेरा रेप हुआ है
कल बोलेगी बच्चा होगा
परसों बोलेगी मेरा है पंच का है सरपंच का
तेरा रेप हुआ है
परसों बोलेगी मेरा है पंच का है सरपंच का
तेरा रेप हुआ है
हँसा बोला हँसा
'तू सनसनी फैलाने आई है
हमें डराने आई है
नेता बनने आई है
रूपैया बनाने आई है
'तू सनसनी फैलाने आई है
हमें डराने आई है
नेता बनने आई है
रूपैया बनाने आई है
अपने खसम का मुँह देख
बम्मन ने जो रेप किया दरबार ने रेप किया
तो तुझपे अहसान किया
तेरी सात पीढ़ी तारी है
तू कहती है तेरा रेप हुआ है'
बम्मन ने जो रेप किया दरबार ने रेप किया
तो तुझपे अहसान किया
तेरी सात पीढ़ी तारी है
तू कहती है तेरा रेप हुआ है'
कहा नहीं कुछ बस जरा आँख डबडबाई
मुँह ही मुँह बड़बड़ाई
'नहीं साब बच्चा नहीं होगा
अब बिदरोह होगा
आज लिख भी सकूँ न पूरा शब्द सही सही
मुँह ही मुँह बड़बड़ाई
'नहीं साब बच्चा नहीं होगा
अब बिदरोह होगा
आज लिख भी सकूँ न पूरा शब्द सही सही
एक दिन ऐसा आएगा
जब कोई किसी का हाथ खींचके
बलात्कार न करने पाएगा।
जब कोई किसी का हाथ खींचके
बलात्कार न करने पाएगा।
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