Saturday, March 5, 2016

देश भर में पैर पसारते फासीवाद के दौर में "संविधान में आस्था" के नारों के बीच इंकलाबी शायर अवतार सिंह 'पाश' की कविता "संविधान" आज भी प्रासंगिक है "संविधान यह पुस्तक मर चुकी है इसे मत पढ़ो इसके लफ़्ज़ों में मौत की ठंडक है और एक-एक पन्ना ज़िन्दगी के अन्तिम पल जैसा भयानक यह पुस्‍तक जब बनी थी तो मैं एक पशु था सोया हुआ पशु और जब मैं जागा तो मेरे इन्सान बनने तक ये पुस्‍तक मर चुकी थी अब अगर इस पुस्तक को पढ़ोगे तो पशु बन जाओगे सोए हुए पशु ।"


देश भर में पैर पसारते फासीवाद के दौर में "संविधान में आस्था" के नारों के बीच इंकलाबी शायर अवतार सिंह 'पाश' की कविता "संविधान" आज भी प्रासंगिक है
"संविधान
यह पुस्तक मर चुकी है
इसे मत पढ़ो
इसके लफ़्ज़ों में मौत की ठंडक है
और एक-एक पन्ना
ज़िन्दगी के अन्तिम पल जैसा भयानक
यह पुस्‍तक जब बनी थी
तो मैं एक पशु था
सोया हुआ पशु
और जब मैं जागा
तो मेरे इन्सान बनने तक
ये पुस्‍तक मर चुकी थी
अब अगर इस पुस्तक को पढ़ोगे
तो पशु बन जाओगे
सोए हुए पशु ।"

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