#Shudown JNU सत्ता के लिए अनिवार्य है क्योंकि
राष्ट्र अब अंध केसरिया राष्ट्रवाद के मुलम्मे में हिंदुत्व का मुक्तबाजार है और कानून व्यवस्था वैदिकी हिंसा की रघुकुल रीति है तो कानून का राज अश्वमेध है।
जबाव में हस्तक्षेप की मुहिम में शामिल होने को हमारा खुल्ला आवाहन
#Shudown JNU सत्ता के लिए अनिवार्य है क्योंकि दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों, स्त्रियों और बच्चों के खिलाफ देश के हर हिस्से में अत्याचार और उनका उत्पीड़न देश का रोजनामचा है तो मेहनतकशों के हकहकूक हैं ही नहीं।
#Shudown JNU मुहिम के तहत छात्र नेताओंं को सजा अनिवार्य है जबकि अदालत में उनपर मुकदमे में उनका अपराध अभी साबित भी नहीं हुआ है।अनिर्वाण पर एक सतर के निष्कासन के बहाने पांच साल के लिए उसकी पढ़ाई रोक दी गयी है तो कन्हैया की लोकप्रियता की मजबूरी या छात्रों में आपसी गलतफहमी की रणनीति के तहत कन्हैया को मामली जुर्माना की सजा सुनायी गयी है और हाल यह है कि बजरंगी नंगी तलवारें लेकर उनके पीछे देश भर में घूम रहे हैं।हवाई जहाज में भी फासिज्म का राजकाज घात लगाकर गला घोंट देने के फिराक में है।
पलाश विश्वास
साथी हिमांशु कुमार का ताजा स्टेटस हैः
जेएनयू प्रशासन द्वारा कन्हैया, उमर खालिद और अनिर्वान के खिलाफ सज़ा का ऐलान किया है ၊ सभी जानते हैं कि यह सज़ा संघ और भाजपा सरकार के दबाव में दी गयी है ၊ खतरनाक बात यह है कि एक ऐसे मामले में सज़ा सुनाई गयी है जो अदालत में विचाराधीन है ၊ इसलिये इस सज़ा को कोर्ट में चुनौती दी जाय ၊ दूसरी आपत्तिजनक बात यह है कि सज़ा इस आरोप पर दी गयी है कि इन छात्रों नें कश्मीर की आज़ादी के पक्ष में नारे लगाये थे ၊ हांलाकि मौजूद वीडियो सबूतों से साफ हो चुका है कि नारे दरअसल भाजपा से जुड़े एबीवीपीके एजेंटों ने गड़बड़ी फैलाने के लिये लगाये थे ၊ लेकिन अगर थोड़ी देर के लिये मान भी लिया जाय कि किसी भारतीय नागरिक को कश्मीरी जनता की आत्मनिर्णय की मांग जायज़ लगती हो तो क्या वह नागरिक अपनी विचारधारा को नारा लगा कर व्यक्त नहीं कर सकता ၊ कोई भी कानून नागरिक के सोचने और उसे व्यक्त करने पर रोक नहीं लगाता ၊ कोई भी सरकार नागरिकों को आदेश नहीं दे सकती कि नागरिक क्या सोच सकते हैं और क्या नहीं सोच सकते ၊ क्योंकि अगर ऐसा हो गया तो संध कहेगा कि भारत के सभी नागरिक वैसा ही सोचें जैसा संध चाहता है ၊ और जो वैसा नहीं सोचेगा उसे जेल में डाल दिया जायेगा ၊ हम इस सज़ा को किसी भी हालत में स्वीकार नहीं करेंगे, नहीं तो लोकतन्त्र की ही हत्या हो जायेगी ၊
#Shudown JNU सत्ता के लिए अनिवार्य है क्योंकि दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों, स्त्रियों और बच्चों के खिलाफ देश के हर हिस्से में अत्याचार और उनका उत्पीड़न देश का रोजनामचा है तो मेहनतकशों के हकहकूक हैं ही नहीं।राष्ट्र अब अंध केसरिया राष्ट्रवाद के मुलम्मे में हिंदुत्व का मुक्तबाजार है और कानून व्यवस्था वैदिकी हिंसा की रघुकुल रीति है तो कानून का राज अश्वमेध है।
#Shudown JNU मुहिम के तहत छात्र नेताओंं को सजा अनिवार्य है जबकि अदालत में उनपर मुकदमे में उनका अपराध अभी साबित भी नहीं हुआ है।
अनिर्वाण पर एक सत्र के निष्कासन के बहाने पांच साल के लिए उसकी पढ़ाई रोक दी गयी है तो कन्हैया की लोकप्रियता की मजबूरी या छात्रों में आपसी गलतफहमी की रणनीति के तहत कन्हैया को मामली जुर्माना की सजा सुनायी गयी है और हाल यह है कि बजरंगी नंगी तलवारें लेकर उनके पीछे देश भर में घूम रहे हैं।
हवाई जहाज में भी फासिज्म का राजकाज घात लगाकर गला घोंट देने के फिराक में है।
इस पर चर्चा से पहले कुछ जरुरी जानकारी दे दें।
अमलेंदु सड़क दुर्घटना के बाद हस्तक्षेप अपडेट करने में असमर्थ है और रियल टािम में आप तक सारी सूचनाएं पहुंचाने की हमारी मुहिम को गहरा झटका लगा है।डाक्टरों को आशंका थी कि उनके दाएं हाथ में क्रैक है लेकिन एक्सरे से पता चला कि क्रैक नहीं है और प्लास्टर या गार्ड की जरुरत नहीं है।
समस्या फिरभी गंभीर है कि भीतर मांसपेशियां फट गयी हैं।
वक्त लगेगा।
वक्त इसलिए भी लगेगा क्योंकि अमलेंदु को शुगर है।
इस बीच वीरेन डंगवाल के शिष्य और हमारे मित्र यशवंत नें भड़ास के मार्फत हमारा साथ दिया है।उनका और भड़ास का आभार। मीडियामोर्चा का भी साथ है।आभार।
फेसबुक और अन्य माध्यमों से देश भर से साथियों के संदेश समर्थन और मदद के वायदे के साथ आ रहे हैं।
उन सबका आभार और उनकी मदद का इंतजार है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के हमारे विद्वान मित्र शमसुल इस्लाम शुरु से ही हस्तक्षेप के साथ हैं और उनने फिर दस हजार का चेक भेजा है।ऐसे सौ चेक मिल जायें तो हमें दस लाख रुपये तत्काल मिल सकते हैं जो हस्तक्षेप की नींव मजबूत कर सकते हैं तुरंत।
हम इतने बड़े देश में इतने समर्थ लोगं में वे सौ लोग फिलहाल खोज रहे हैं।हजार लोग हो जायें तो एक करोड़।सिर्फ एक सामूहिक प्रयास जरुरी है।
पहले भी हमने सौ सौ हजार हजार करोड़ के संसाधन मसीहावृद के लिए जुटाते रहे हैं,जिसका कोई हिसाब कभी मिला नहीं है।हम सिर्फ वैकल्पिक मीडिया ही नहीं, मीडियाकर्मी साथियों के वैकल्पिक रोजगार की पारदर्शी योजना पेश कर रहे हैं।
इसीतरह कारपोरेट मीडिया के शिकार वंचित उत्पीड़ित पत्रकारों की फौज जो यशवंत और भड़ास से या अन्यत्र जुड़े हैं,वे हमारी मुहिम का समर्थन और सहयोग करें तो हमारी ताकत बाजार का दम निकाल सकता है।उम्मीद है कि तमाम साथी इस पर गौर भी करेंगे।
सबसे बड़ी बात हमारे लिए यह है कि हमारे गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी मदद करेंगे और उनने हमें यह पूछकर मुश्किल में डाला है कि कितनी मदद चाहिए।
हमारे लिए गुरुजी का आशीर्वाद अनिवार्य है और वे जितनी चाहे मदद कर सकते हैं लेकिन इससे ज्यादा जरुरी है कि वे अपने काबिल शिष्यों को भी हमारे साथ खड़े होने के लिए कहें।
हम बहुत जल्द मराठी में मुंबई से हस्तक्षेप लांच करने की स्थिति में हैं लेकिन बंगाल और पंजाब में अभी तैयारियां बाकी हैं।
जाहिर है कि अलग अलग स्थान पर अलग अलग भाषा में हस्तक्षेप निकालने के लिए हमें दफ्तर और सर्वर और काम करने वाले साथियों के राशन पानी का बंदोबस्त करना होगा।
यह बंदोबस्त भी आसान नहीं है।मुश्किल भी नहीं है।
हमारे पास देश भर में ऐसे साथी बड़ी तादाद में मौजूद हैं जो इस मिशन का मतलब समझें तो यह कोई समस्या ही नहीं है और इसके लिए न हमें राजनीतिक मदद की जरुरत है और न बाजार की मदद की।विज्ञापनों के मामले भी और मदद के मामले में भी हम किसी भी स्तर पर कोई समझौता नहीं कर रहे हैं।
कारपोरेट मीडिया के लिए जरुरी सौ हजार करोड़ के बदले हमें उनके मुकाबले हर भाषा में वैकल्पिक मीडिया बतौर हस्तक्षेप के विस्तार के लिए फौरी तौर पर सिरिफ और कुल पांच करोड़ रुपये की जरुरत है और देशभर के प्रतिबद्ध साथी इस मिशन को पूरा करने में साथ दें तो यह बहुत मामूली रकम है लेकिन किसी एक व्यक्ति के लाख दस लाख की रकम दे देने से नेटवर्क बनेगा नहीं।
बजाय इसके सौ सो रुपये की मदद हर तहसील से मिले तो फिर तत्काल किसी की मदद की जरुरत नहीं होगी।
जनांदोलन मे हमारी साथी और वनाधिकार आंदोलन में जेलयात्री से लौटी रोमा खुद बेहद अस्वस्थ हैं और उनके मस्तिष्क में ट्यूमर है।
उनका इलाज चल रहा है।वे बहुत बहादुर हैं और हमें उनकी चिंता है।
उन्होंने एक हजार रुपये भेजकर पूछा है कि और कितनी मदद चाहिए।
हमने रोमा से कहा कि किसी के लाख दो लाख दे देने से यह मिशन चलेगा नहीं जबतक न जनांदोलन और जनसरोकार से जुड़े हर साथी वैकल्पिक मीडिया को अनिवार्य मानकर इसके लिए संसाधन जुटाने का काम सामूहिक तौर पर करें।आंदोलन की तर्ज पर।
अमलेंद को जो मदद अभी छिटपुट मिल रही है,उसके लिए संदेश भेजकर रसीद देने या धन्यवाद लिखने तक की हालत में वे नहीं हैं।
बहरहाल जो लोग साइट पर PAYUMONEY के तहत मदद कर रहे हैं ,उन्हें सीधे भुगतान के साथ साथ वहीं रसीद मिल रहा है और पारदर्शिता के लिहाज से हम इसी माध्यम से मदद की अपील कर रहे हैं।हस्तक्षेप पर PAYUMONEY बटन से आप तुरंत हमें न्यूनतम मदद अभी ही कर सकते हैं अगर आप चाहें तो।
पिछले महीने और इस महीने भी कुछ पैसा आया है जिसका ब्यौरा हम अमलेंदु के स्वस्थ होने के साथ साथ जारी कर देंगे और हर पैसे का हिसाब हम देंगे क्योंकि यह जनता का मोर्चा है और इसमें नेतृत्व के लिए जाति धर्म भाषा नस्ल क्षेत्र की दीवारें तोड़कर हम हर भारतीय नागरिक का खुला आवाहन करते हैं।
वैसे भी हम अलग अलग भाषा के लिए अलग अलग टीम बनाने जा रहे हैं और भुगतान न कर पाने की हालत में भी हम सभी साथियों के रोजगार की वैकल्पिक व्यवस्था के बारे में सोच रहे हैं।
आदरणीय शेष नारायण जी और शामसुल इस्लाम जी की मदद के बिना तो पांच साल का सफर भी असंभव था तो रणधीर सिंह सुमन जी और रिहाई मंच के तमाम साथी इस मुहिम को जारी रखने में लगातार साथ दे रहे हैं और हमारे अंबेडकरी मित्र ध्यान दें कि इनमें कोई ब्राह्मण भी नहीं है।
अंबेडकरी लोग साथ होंगे,नेतृत्व भी करेंगे तो किसी साथी की जात पूछ कर क्या करेंगे।
निरंकुश सत्ता के खिलाफ जात पांत की राजनीति का हश्र देख लीजिये और सत्तर साल की आजादी में जाति धर्म के नाम पर जिनके साथ खड़े हैं,उनका इतिहास और वर्तमान देख लीजिये।
हम सारे लोग बाबासाहेब के समता सिपाही हैं।
आपको बता दें कि अमलेंदु मधुमेह के मरीज भी हैं।
कंधे की चोट से उनके कामकाज पर असर नही है।पहले ही उनकी कमर में लगातार बैठने से परेशानी हो रही थी और कंप्यूटर पर लगातार काम करने से उनकी आंखों में पानी आ रहा था।
अब जबकि डाक्टरों की सलाह पूर्ण विश्राम की है तो भी मोबाइल से लिंक शेयर करने से बाज नहीं आ रहे अमलेंदु और इसके लिए सख्त मनाही है।लगता है कि डांटना ही पड़ेगा।
उन्हें आराम की जरुरत है।हमारे सिपाहसालार भी कम नहीं हैं।सिर्फ हमारे पास बजरंगी नहीं हैं।किसी को बेमतलब जान देने की जरुरत नहीं है क्योंकि आगे बहुत लंबी लड़ाई है और राजनितिक सत्ता संघर्ष अपडेट करते रहना हमारी प्राथमिकता नहीं है।
हम उन्हें नजरअंदाज भी नहीं करते क्योंकि अंततः राजनीति और सत्ता की वजह से ही हमारी जिंदगी पल दर पल नर्क है और इस नर्क को बदलने की जरुरत भी है।
बाकी बुनियादी मुद्दे जस के तस हैं।
बेदखल अर्थव्यवस्था की रिहाई जरुरी है तो उत्पादन प्रणाली से जुड़े और प्रकृति से जुड़े बहुसंख्य समुदायों के दमन उत्पीड़न,नागरिक और मानवाधिकार हनन के किस्से भी साजा करते रहना है।
हर रात हमें बेहयाई से बेरहमी के साथ उनको अपडेट करने के लिए बार बार आगाह करना होता था।क्योंकि हस्तक्षेप का लेआउट और टेंपलेट में बिना छेड़छाड़ किये हम भी कोई अपडेट पोस्ट नहीं कर सकते।इसके लिए दिल्ली में ही अमलेंदु के साथ सहयोगियों को बैठाना जरुरी है और फिलहाल ऐसा इंतजाम हम नहीं कर सकते।
हमने बांग्ला का पेज शुरु किया तो उसमें भी जटिल समस्याएं हैं जो कोलकाता में अलग सर्वर लगाये बिना सुलझ नहीं सकतीं।
फिलहाल जो हालात हैं,हिमांशु कुमार जी के स्टेटस के अलावा छत्तीसगढ़ में आदिवासियों क भोगे हुए यथार्थ के बारे में फिलहाल कुछ ज्यादा जानकारी मिल नहीं रही है तो मणिपुर में इरोम शर्मिला की गतिविधियों के अलावा खास कुछ मालूम पड़ नहीं रहा है।
जम्मू और कश्मीर के बारे में अब शायद किसी विमर्श की कोई गुंजाइस ही नहीं है।क्योंकि जेएनयू के छात्रों के खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मामला अदालत में साबित नहीं हो सका तो क्या सत्ता का वर्चस्व इतना निरंकुश है कि छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार और उनके साथियों के खिलाप विश्वविद्यालय प्रशासन ने सजा का ऐलान कर दिया है।जाहिर है कि इसके खिलाफ आंदोलन भी शुरु हो चुका है।
#Shudown JNU सत्ता के लिए अनिवार्य है क्योंकि राजनीति आम जनता के खिलाफ है और मीडिया भी जनता के खिलाफ है।
शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में संपूर्ण मनुस्मृति अनुशान के तहत जो केसरियाकरण का मुक्तबाजार है,उसके बारे में सूचनाएं नहीं के बराबर है।
संपूर्ण विनेवेश,संपूर्ण एफडीआई,संपूर्ण निजीकरण का देशभक्ति कार्यक्रम भारतमाता की जयजयकार है तो मन की बातें भी वे हीं।
बाबासाहेब की मूर्तिपूजा के बावजूद कमजोर तबकों के लिए आरक्षण खत्म है और उनकी बुनियादी जरुरतों के बारे में जेएनयू के अलावा संवाद साहित्य और संस्कृति के माध्यमों,सूचना तंत्र से लेकर संसद और विधानसभाओं में भी अनुपस्थित है।
#Shudown JNU सत्ता के लिए अनिवार्य हैआईआईटी खड़गपुर में फीस में बढ़ोतरी के खिलाफ आंदोलन है तो दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र तक आंदोलित हैं।
#Shudown JNU के प्रतिरोध में कोलकाता.यादवपुर और शांतिनिकेतन से लेकर हैदराबाद तक विश्वविद्यालयों में मनुस्मृति के खिलाफ खुला विद्रोह है।
इस विद्रोह के महाविद्रोह में बदलने के आसार हैं।
इसीलिए #Shudown JNU अनिवार्य है।
फिलहाल बंगाल में बाजार की जिन ताकतों ने वाम शासन के अवसान के लिए ममता बनर्जी की ताजपोशी की थी,वे अब खुलकर उनके खिलाफ हैं तो माओवादी भी उनके साथ नहीं हैं और शारदा से नारदा के सफर मेंनये सिरे से जनादेश की अग्निपरीक्षा में वे साख और छवि के संकट से जूझ रही है तो सत्ता की लड़ाई मासूम बच्चों,स्त्रियों और वृद्धों से भी हिंसक राजनीति कोई रियायत नहीं बरत रही है।
फासिज्म के राजकाज में आर्थिक सुधार के नाम देश नीलाम पर है तो लूटतंत्र बेलगाम है और हमारा सबकुछ डिजिटल इंडिया के बहाने बाजार के हवाले है।
भविष्यनिधि हड़पने की कोशिश के खिलाफ बंगलूर में महिला कपड़ा श्रमिकों की अगुवाई में जो अभूतपूर्व विरोध हुआ ,उसकी गूंज अगर बाकी देश मे हो पाती तो शायद भविष्यनिधि का ब्याज लगातार घटाते रहने का हादसा जारी नहीं रहता।
अमलेंदु का बयान
प्रिय मित्रों,
आपकी दुआओं से मैं पहले से काफी बेहतर हूँ। बीती 21 अप्रैल को मेरा एक्सीडेंट हो गया था। दाहिने हाथ में, कंधे में और दाहिने ओर पसलियों में चोट है,लेकिन अब तेजी से सुधार है।
एक्सीडेंट के तत्काल बाद प्राथमिक चिकित्सा कराई उसमें कुछ दवाएँ रिएक्शन कर गई थीं और शुगर भी बढ़ गई थी, जिसके कारण घाव भरने में समय लग रहा है। फिलहाल कंप्यूटर पर काम करने की स्थिति में नहीं हूँ, इसलिए “हस्तक्षेप” ठप्प पड़ा है, संभवतः यह सप्ताह तो लग ही जाएगा हस्तक्षेप को पुनः काम पर लौटने पर।
जिन मित्रों को सूचना मिली, कई के फोन आए, कई ने फेसबुक पर हालचाल पूछा। सभी का बहुत-बहुत आभार।
हमारे वरिष्ठ स्तंभकार पलाश विश्वास जी भविष्य में “हस्तक्षेप” के संचालन को लेकर काफी चिंतित हो जाते हैं।
एक बात स्पष्ट कर दूँ। आप सभी मित्रों की सहायता की दरकार “हस्तक्षेप” को है, व्यक्तिगत तौर पर मुझे कतई नहीं। मैंने न अपनी आवश्यकताएँ बढ़ाई हैं न कभी जीवनयापन के लिए सुख-सुविधाओं का मोहताज रहा। “हस्तक्षेप” मेरा मिशन है व्यवसाय नहीं, इसलिए जो भी मित्र इसके लिए सहायता करते हैं, उनका आभार व स्वागत और जो तथाकथित मित्र गालियाँ देते हैं, उनका भी दिल से उनका आभार व स्वागत।
अपने जीवनयापन के लिए और संकट-विपत्ति के लिए मैं आत्मनिर्भर हूँ, मेरा संस्थान “देशबन्धु” जिसके लिए मैं थोड़ा सहयोग करता हूँ, उससे मेरे जीवन की सभी आवश्यकताएँ पूर्ण हो जाती हैं।
“देशबन्धु” के साथ मैं जुड़ा ही इसलिए हूँ ताकि एक पत्रकार के तौर पर मेरा स्वाभिमान बरकरार रहे व कॉरपोरेट दलाली के दबावों से मुक्त रहकर अपने मिशन “हस्तक्षेप” पर काम करता रहूँ।
“हस्तक्षेप” हमारे कुछ मित्रों व मेरे अपने आर्थिक सहयोग से पिछले साढ़े पाँच साल से निकलता रहा है। अभी तक “हस्तक्षेप” को मैं अधिकाँश समय देता रहा हूँ, लेकिन अब पूर्णकालिक सहयोगी भी चाहिएँ, सर्वर पर लोड भी बढ़ रहा है, उसकी क्षमता भी बढ़ानी है। और सबसे बड़ा योगदान तो “हस्तक्षेप” के लेखकों का है जो बिना पारिश्रमिक लिए अपना लेखकीय योगदान तो देते ही हैं बल्कि “हस्तक्षेप” के लिए आर्थिक योगदान भी देते हैं।
मैं जैसे ही काम पर लौटता हूँ, व्यक्तिगत तौर पर आप सभी को, जिन्होंने मेरी खैर-ख़बर ली, उन सबका शुक्रिया अदा करूँगा तब तक आप पढ़ते रहें “हस्तक्षेप” और पुराने लेखों को शेयर करके करते रहें हस्तक्षेप।
आपका
अमलेन्दु उपाध्याय
26-04-2016
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