Sunday, July 24, 2016

डेल्टा की रहस्यमय परिस्तिथियों में हुई मौत जो कि वस्तुतः आत्महत्या नहीं है ,बल्कि बलात्कार के बाद की गई हत्या जैसा जघन्य अपराध है .उसे आत्महत्या में तब्दील करने की हरसंभव कोशिस 28 मार्च की रात ही शुरू कर दी गई थी

एक थी डेल्टा – 6
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- भंवर मेघवंशी
डेल्टा की रहस्यमय परिस्तिथियों में हुई मौत जो कि वस्तुतः आत्महत्या नहीं है ,बल्कि बलात्कार के बाद की गई हत्या जैसा जघन्य अपराध है .उसे आत्महत्या में तब्दील करने की हरसंभव कोशिस 28 मार्च की रात ही शुरू कर दी गई थी .
पुलिस और कॉलेज प्रशासन का यह कहना कि 28 मार्च की रात में अपने कमरे से डेल्टा गायब थी और वह स्वत: ही पी टी आई विजेन्द्रसिंह के कमरे में पंहुची .यहीं से कहानी संदेहास्पद बनने लगती है .डेल्टा के परिजनों का कहना है कि –“ डेल्टा को रात के अँधेरे से बहुत डर लगता था ,वह अकेले कहीं बाहर नहीं निकलती थी “ ऐसे में यह सवाल लाज़िमी है कि वह हॉस्टल से निकल कर पीटीआई के कमरे तक अँधेरे में गई या उसे कोई ले कर गया ?
वार्डन प्रिया शुक्ला के मुताबिक जब हॉस्टल में डेल्टा नहीं मिली तो उसे बहुत ढूंढा गया और अंततः वह पीटीआई के कमरे में सामान्य स्थिति में पाई गई .बाद में दोनों से माफीनामा लिख कर छोड़ दिया गया .गर्ल्स हॉस्टल की एक प्रतिभावान नाबालिग दलित लड़की का गायब होना और बाद में एक पुरुष पिटीआई के यहाँ मिलना क्या वार्डन और कॉलेज प्रशासन के लिए इतनी सामान्य बात थी कि मामले को वहीँ रफा दफा कर दिया गया ? डेल्टा के स्थानीय अभिभावक ,पुलिस तथा उसके परिजनों को इसकी सुचना देना आवश्यक क्यों नहीं समझा गया ?
जो माफीनामे डेल्टा और विजेन्द्रसिंह से लिखवाये जाने की बात वार्डन प्रिया शुक्ला और उसके पति प्रज्ञा प्रतीक शुक्ला बताते है ,उन दोनों माफीनामों की भाषा और लिखावट एक जैसी क्यों है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि ये माफीनामे डेल्टा की हत्या को आत्महत्या में बदलने के लिए निर्मित किये गये सबूत हो ? पुलिस का आरोप पत्र भी इस बारे में मौन है .चार्जशीट के मुताबित माफीनामों की एफ एस एल रिपोर्ट अभी प्राप्त होना शेष है .
वार्डन का यह कहना कि डेल्टा पीटीआई के क्वाटर में सामान्य स्थिति में थी ,जबकि पुलिस का आरोप पत्र यह कहता है कि मृतका डेल्टा और आरोपी विजेन्द्रसिंह के जब्तशुदा अंडरगारमेंट व बेडशीट पर मानव वीर्य मौजूद पाया गया .जाँच में बलात्कार किये जाने की पुष्टि हो चुकी है .इसका मतलब साफ है कि वार्डन और कॉलेज प्रशासन पीटीआई विजेंद्र को बचाने की भरपूर कोशिस में लगा हुआ था .कहीं ऐसा तो नहीं कि इसमें विजेन्द्रसिंह के अलावा भी कोई दोषी व्यक्ति हो ,जिसको भी बचाया जा रहा हो ? कहीं श्री जैन आदर्श कन्या शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय के प्रबंधन और प्रशासन से जुड़े लोग लड़कियों के यौन शोषण में संलिप्तता रखते हो ,जिनकी हवस की शिकार होने के बाद डेल्टा को सदा सदा के लिए मौत की नींद में सुला दिया गया हो ?
डेल्टा का शव जिस कुण्ड में बरामद हुआ ,उस समेत कोलेज में सात पानी के कुण्ड है ,जिनमे से छह पर ताले लगे हुये थे ,सिर्फ एक वो ही कुण्ड बिना ताले के क्यों रखा गया ,जिसमे गिरने की कहानी निर्मित की गई है ? मानव अधिकार संगठनों की तथ्यान्वेषी रिपोर्ट डेल्टा के पानी में डूबने की पूरी थ्यौरी पर ही कई गंभीर सवाल उठाती है ,रिपोर्ट कहती है कि – “हमारा मानना है कि 5 फुट 6 इंच से भी ज्यादा लम्बी डेल्टा मेघवाल अगर डूबी होती तो 7 बजे सुबह जब लीना व अन्य छात्राओं तथा श्याम शुक्ला ने जब कुण्ड का ढक्कन उठा कर अंदर झांक कर देखा तो जरुर उसमे कुछ ना कुछ दिखता .हमारे दल का मानना है कि कुण्ड का मुंह उपर की तरफ 2 x 2 फिट खुलता है ,लेकिन अन्दर चौडाई संकरी हो जाती है ,लगभग 4 इंच का पत्थर दो तरफ से निकल रहा है जिससे कुण्ड के मुंह से अंदर जाते जाते और छोटा हो जाता है .बिना किसी सहारे कुण्ड में किसी का कूदना आसान नहीं है ,क्यूंकि चौडाई संकरी है और ढक्कन लौहे की मोटी चद्दर का बना होने के कारण बिल्कुल भी नहीं रुकता है .साथ ही डेल्टा हॉस्टल के बाहर करीब 7 बजे निकली है तो हॉस्टल वार्डन प्रिया शुक्ला के ससुर बाहर टहल रहे थे और लीना गुप्ता भी तभी बाहर निकली थी .अन्य लड़कियां भी पीछे ही थी तो वह ढक्कन जो कि बिना जोर से आवाज किये बंद नहीं होता ,जिसकी आवाज हॉस्टल के अंदर तक सुनाई देती है ,उसकी आवाज किसी ने क्यों नहीं सुनी जबकि आधे से जयादा लोग तो उस वक्त बाहर ही घूम रहे थे .अगर डेल्टा ने कुण्ड का ढक्कन उठा कर कूदने की कोशिस की तो ढक्कन उसके सिर पर गिरा होता {क्यूंकि वह ढक्कन एक पल भी बिना पकडे खड़ा नहीं हो सकता है } अगर वह गिरा होता तो सिर पर जरुर चोट आई होती और खोपड़ी की हड्डी भी टूटी होती मगर मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार सिर पर कोई चोट नहीं है ."
पोस्टमार्टम की प्रारम्भिक रिपोर्ट में सिर पर कोई चोट नहीं है तथा डॉक्टर्स की ओपिनियन स्पष्ट थी कि मौत डूबने से नहीं हुई ,क्यूंकि मृतका के फेफड़ों में पानी नहीं पाया गया .लेकिन बाद में डॉक्टर्स की रीओपिनियन ली गई जिसमें –‘ पानी में डूबने से मृत्यु होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है ‘ अंकित किया गया .सवाल यह है कि मेडिकल बोर्ड ने किसके दबाव में यह दोबारा राय दी और अपनी ही पहली ओपिनियन और तथ्यों को बदलने की शर्मनाक कोशिस क्यों की ?यह भी अत्यंत गंभीर तथ्य है कि मेडिकल बोर्ड ने डेल्टा के शव का अंतिम संस्कार हो जाने के बाद अपनी दूसरी राय व्यक्त की ताकि फिर से पोस्टमार्टम करने की सम्भावना ही क्षीण हो जाये .
कुल मिलाकर पुलिस ने कॉलेज प्रशासन द्वारा गढ़ी गई झूठी कहानी पर ही मोहर लगाई .डेल्टा के तथाकथित माफीनामे से लेकर पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ओपिनियन बदलने तक की सारी कार्यवाही आदर्श सेवा संस्थान के अध्यक्ष ईश्वर चंद ,वार्डन प्रिया शुक्ला ,उसके पति प्रतीक शुक्ला तथा विजेंद्र सिंह सहित हत्या और बलात्कार के आरोपियो को बचाने की कवायद भर दिखाई पड़ती है .वैसे भी जहाँ का पूरा सिस्टम सड़ चुका हो और अपराधियों को संरक्षित करता प्रतीत हो वहां की पुलिस के आरोप पत्र पर कौन यकीन कर सकता है ....( जारी )
- भंवर मेघवंशी
{ लेखक स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता है ,जिनसे bhanwarmeghwanshi@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है }

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