नीलाभ अश्क को जसम की श्रद्धांजलि
16 अगस्त 1945 को मुंबई, महाराष्ट्र में जन्मे और इलाहाबाद में पले-बढ़े नीलाभ जी का जाना एक बड़ा खालीपन छोड़ गया है. कवि, पत्रकार, नाटककार, आलोचक, प्रकाशक, संगठक और लड़ाकू सांस्कृतिक कार्यकर्ता के रूप में क्रांतिकारी वामपंथी सांस्कृतिक धारा को उनका योगदान हरदम याद किया जाएगा. जसम के उत्तर प्रदेश के अध्यछ कौशल किशोर और मंच के राष्ट्रीय सह्सचिव सुधीर सुमन ने अपने शोक संदेश मे कहा कि नीलाभ जन संस्कृति मंच के संस्थापको मे थे तथा मंच के पहले अधय्छ मनडल के सद्स्य थे. मंच की केंद्रीय पत्रिका “जन संस्कृति’ के सलहकार सम्पादको मे थे. 1985 में जन संस्कृति मंच की स्थापना के बाद से लेकर लगभग एक दशक तक वे संगठन में सक्रिय नेतृत्वकारी भूमिकाओं में रहे. कवि गोरख पांडेय की मृत्यु के बाद जसम द्वारा उनकी कविताओं और लेखों के पहले संग्रह 'लोहा गरम हो गया है' तथा “जन संस्कृति” के गोरख पांडे विशेषांक के प्रकाशन, संकलन, संपादन में प्रमुख भूमिका नीलाभ जी की ही थी. 1986 मे जसम के इलहाबाद मे हुए पहले उत्तर प्रदेश सम्मेलन के वे मुख्य कर्ता-धर्ता थे. उस अवसर पर प्रकाशित स्मरिका का भी उन्होने सम्पादन किया. 1991 में उन्होंने क्रांतिकारी वामधारा के दो महत्वपूर्ण कवियों वीरेन डंगवाल और बल्ली सिंह चीमा के प्रथम कविता संग्रह बड़ी मेहनत से प्रकाशित किए. इलाहाबाद में उनके रहते हुए नीलाभ प्रकाशन और उनका आवास देश भर के साहित्यकारों का उसी तरह अड्डा बना रहा जैसा कि उनके पिता उपेन्द्रनाथ अश्क के समय वह था. इलाहाबाद हिन्दी-उर्दू का भी संगम है और नीलाभ शहर की इस शख्सियत का भी प्रतिनिधित्व करते थे.
1988-1889 में इलाहाबाद स्थित उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र को लेकर संस्कृति की दुनिया में सरकारी-नौकरशाहाना तानाशाही और भ्रष्टाचार के खिलाफ संस्था की स्वायत्तता के लिए उनके नेतृत्व में चले यादगार आंदोलन को देशव्यापी समर्थन मिला. इस दौर में उन्होंने सड़क पर उतरकर कई बड़े सांस्कृतिक आन्दोलनों का नेतृत्व किया. प्रगतिशील छात्र संगठन और मजदूर और मानवाधिकार आंदोलनों से उनका गहरा रिश्ता रहा. हाल हाल तक भी उन्होंने दिल्ली की सडकों पर छात्रों और दूसरे आंदोलनकारियों के साथ मार्च किया. 1986 में इलाहाबाद में दंगों के खिलाफ उनके लिखे नुक्कड़ नाटक 'शहर खामोश नहीं' का 'दस्ता' नाट्य मंच ने पचास से ज़्यादा इलाकों में मंचन किया . साम्प्रदायिकता विरोधी मुहिम में वे सदैव अगुवा रहे. ब्रेख्त के नाटक 'एक्सेप्शन एंड रूल' का अनुवाद उन्होंने 'नियम का रंदा, अपवाद का फंदा' शीर्षक से किया और खुद ही उसे 'दस्ता' की टीम के लिए निर्देशित किया. पाब्लो नेरुदा की कविताओं का 'माचू-पिच्चू के शिखर' नाम से किया गया उनका अनुवाद तथा लेरमेंतेव के उपन्यास 'हीरो ऑफ़ आवर टाइम्स' का 'हमारे युग का नायक' शीर्षक से उनका अनुवाद आज भी अनुवाद साहित्य की श्रेष्ठतम उपलब्धियां हैं. 'किंग लियर' का अनुवाद उन्होंने 'पगला राजा' शीर्षक से किया जिसका निर्देशन इब्राहिम अल्काजी ने किया। ब्रेख्त के 'मदर करेज' का अनुवाद उन्होंने 'हिम्मत माई' नाम से किया जिसे उषा गांगुली ने निर्देशित किया. जब सात आठ साल पहले अनुवाद के लिए साहित्य अकादमी सम्मान के लिए उन्हें नामित किया गया तो सरकार की दमनकारी नीतियों के विरोध में उन्होंने उसे लेने से मना कर दिया. नीलाभ जी ने अनुवादों के ज़रिए पाब्लो नेरुदा, नाजिम हिकमत, ताद्युश रोज़ेश्विच, अर्नेस्तो कार्देनाल, निकानोर पार्रा और एज़रा पाउंड जैसे विश्वप्रसिद्ध कवियों से हिन्दी पाठकों का परिचय कराया. उन्होंने बांग्ला कवि जीवनानन्द दास और सुकान्त भट्टाचार्य की कविताओं का भी हिंदी में अनुवाद किया.
वे चार साल तक बीबीसी हिंदी सेवा में प्रोड्यूसर रहे। मशहूर लेखिका अरुंधति राय के उपन्यास ‘गॉड आफ स्माल थिंग्स’ का अनुवाद भी उन्होंने किया। उन्होंने ‘हिंदी साहित्य का मौखिक इतिहास’ नामक अपने ढंग की एक अनूठी किताब लिखी। ‘संस्मरणारंभ’, ‘अपने आप से लम्बी बातचीत’, ‘जंगल खामोश है’, ‘उत्तराधिकार’, ‘चीजें उपस्थित हैं’, ‘शब्दों से नाता अटूट है’, ‘शोक का सुख’, ‘खतरा अगले मोड़ की उस तरफ है’ और ‘ईश्वर को मोक्ष’ उनके प्रमुख कविता संग्रह हैं. ‘प्रतिमानों की पुरोहिती’ और ‘पूरा घर है कविता’ शीर्षक से उनके गद्य संकलन भी प्रकाशित हैं। नीलाभ ने टेलिविजन, फिल्म, रेडियो और रंगमंच के लिए भी लेखन-कार्य किया। इन दिनों में वे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की पत्रिका रंग-प्रसंग के संपादन का कार्य कर रहे थे। नीलाभ जी दमदार और बहु-आयामी व्यक्तित्व रखते थे. कोई उन्हें प्यार कर सकता था या उनसे नाराज़ हो सकता था, लेकिन उनकी अवहेलना नहीं कर सकता था.
जन संस्कृति मंच नीलाभ के अवदान को याद करता है. और अपने प्रिय साथी, कवि व संस्कृतिकर्मी की स्मृति को सलाम करता है .
(जन संस्कृति मंच की ओर से सुधीर सुमन द्वारा जारी)
16 अगस्त 1945 को मुंबई, महाराष्ट्र में जन्मे और इलाहाबाद में पले-बढ़े नीलाभ जी का जाना एक बड़ा खालीपन छोड़ गया है. कवि, पत्रकार, नाटककार, आलोचक, प्रकाशक, संगठक और लड़ाकू सांस्कृतिक कार्यकर्ता के रूप में क्रांतिकारी वामपंथी सांस्कृतिक धारा को उनका योगदान हरदम याद किया जाएगा. जसम के उत्तर प्रदेश के अध्यछ कौशल किशोर और मंच के राष्ट्रीय सह्सचिव सुधीर सुमन ने अपने शोक संदेश मे कहा कि नीलाभ जन संस्कृति मंच के संस्थापको मे थे तथा मंच के पहले अधय्छ मनडल के सद्स्य थे. मंच की केंद्रीय पत्रिका “जन संस्कृति’ के सलहकार सम्पादको मे थे. 1985 में जन संस्कृति मंच की स्थापना के बाद से लेकर लगभग एक दशक तक वे संगठन में सक्रिय नेतृत्वकारी भूमिकाओं में रहे. कवि गोरख पांडेय की मृत्यु के बाद जसम द्वारा उनकी कविताओं और लेखों के पहले संग्रह 'लोहा गरम हो गया है' तथा “जन संस्कृति” के गोरख पांडे विशेषांक के प्रकाशन, संकलन, संपादन में प्रमुख भूमिका नीलाभ जी की ही थी. 1986 मे जसम के इलहाबाद मे हुए पहले उत्तर प्रदेश सम्मेलन के वे मुख्य कर्ता-धर्ता थे. उस अवसर पर प्रकाशित स्मरिका का भी उन्होने सम्पादन किया. 1991 में उन्होंने क्रांतिकारी वामधारा के दो महत्वपूर्ण कवियों वीरेन डंगवाल और बल्ली सिंह चीमा के प्रथम कविता संग्रह बड़ी मेहनत से प्रकाशित किए. इलाहाबाद में उनके रहते हुए नीलाभ प्रकाशन और उनका आवास देश भर के साहित्यकारों का उसी तरह अड्डा बना रहा जैसा कि उनके पिता उपेन्द्रनाथ अश्क के समय वह था. इलाहाबाद हिन्दी-उर्दू का भी संगम है और नीलाभ शहर की इस शख्सियत का भी प्रतिनिधित्व करते थे.
1988-1889 में इलाहाबाद स्थित उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र को लेकर संस्कृति की दुनिया में सरकारी-नौकरशाहाना तानाशाही और भ्रष्टाचार के खिलाफ संस्था की स्वायत्तता के लिए उनके नेतृत्व में चले यादगार आंदोलन को देशव्यापी समर्थन मिला. इस दौर में उन्होंने सड़क पर उतरकर कई बड़े सांस्कृतिक आन्दोलनों का नेतृत्व किया. प्रगतिशील छात्र संगठन और मजदूर और मानवाधिकार आंदोलनों से उनका गहरा रिश्ता रहा. हाल हाल तक भी उन्होंने दिल्ली की सडकों पर छात्रों और दूसरे आंदोलनकारियों के साथ मार्च किया. 1986 में इलाहाबाद में दंगों के खिलाफ उनके लिखे नुक्कड़ नाटक 'शहर खामोश नहीं' का 'दस्ता' नाट्य मंच ने पचास से ज़्यादा इलाकों में मंचन किया . साम्प्रदायिकता विरोधी मुहिम में वे सदैव अगुवा रहे. ब्रेख्त के नाटक 'एक्सेप्शन एंड रूल' का अनुवाद उन्होंने 'नियम का रंदा, अपवाद का फंदा' शीर्षक से किया और खुद ही उसे 'दस्ता' की टीम के लिए निर्देशित किया. पाब्लो नेरुदा की कविताओं का 'माचू-पिच्चू के शिखर' नाम से किया गया उनका अनुवाद तथा लेरमेंतेव के उपन्यास 'हीरो ऑफ़ आवर टाइम्स' का 'हमारे युग का नायक' शीर्षक से उनका अनुवाद आज भी अनुवाद साहित्य की श्रेष्ठतम उपलब्धियां हैं. 'किंग लियर' का अनुवाद उन्होंने 'पगला राजा' शीर्षक से किया जिसका निर्देशन इब्राहिम अल्काजी ने किया। ब्रेख्त के 'मदर करेज' का अनुवाद उन्होंने 'हिम्मत माई' नाम से किया जिसे उषा गांगुली ने निर्देशित किया. जब सात आठ साल पहले अनुवाद के लिए साहित्य अकादमी सम्मान के लिए उन्हें नामित किया गया तो सरकार की दमनकारी नीतियों के विरोध में उन्होंने उसे लेने से मना कर दिया. नीलाभ जी ने अनुवादों के ज़रिए पाब्लो नेरुदा, नाजिम हिकमत, ताद्युश रोज़ेश्विच, अर्नेस्तो कार्देनाल, निकानोर पार्रा और एज़रा पाउंड जैसे विश्वप्रसिद्ध कवियों से हिन्दी पाठकों का परिचय कराया. उन्होंने बांग्ला कवि जीवनानन्द दास और सुकान्त भट्टाचार्य की कविताओं का भी हिंदी में अनुवाद किया.
वे चार साल तक बीबीसी हिंदी सेवा में प्रोड्यूसर रहे। मशहूर लेखिका अरुंधति राय के उपन्यास ‘गॉड आफ स्माल थिंग्स’ का अनुवाद भी उन्होंने किया। उन्होंने ‘हिंदी साहित्य का मौखिक इतिहास’ नामक अपने ढंग की एक अनूठी किताब लिखी। ‘संस्मरणारंभ’, ‘अपने आप से लम्बी बातचीत’, ‘जंगल खामोश है’, ‘उत्तराधिकार’, ‘चीजें उपस्थित हैं’, ‘शब्दों से नाता अटूट है’, ‘शोक का सुख’, ‘खतरा अगले मोड़ की उस तरफ है’ और ‘ईश्वर को मोक्ष’ उनके प्रमुख कविता संग्रह हैं. ‘प्रतिमानों की पुरोहिती’ और ‘पूरा घर है कविता’ शीर्षक से उनके गद्य संकलन भी प्रकाशित हैं। नीलाभ ने टेलिविजन, फिल्म, रेडियो और रंगमंच के लिए भी लेखन-कार्य किया। इन दिनों में वे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की पत्रिका रंग-प्रसंग के संपादन का कार्य कर रहे थे। नीलाभ जी दमदार और बहु-आयामी व्यक्तित्व रखते थे. कोई उन्हें प्यार कर सकता था या उनसे नाराज़ हो सकता था, लेकिन उनकी अवहेलना नहीं कर सकता था.
जन संस्कृति मंच नीलाभ के अवदान को याद करता है. और अपने प्रिय साथी, कवि व संस्कृतिकर्मी की स्मृति को सलाम करता है .
(जन संस्कृति मंच की ओर से सुधीर सुमन द्वारा जारी)
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