पुष्प की अभिलाषा
(माखनलाल चतुर्वेदी की कविता को याद करते हुये)
(माखनलाल चतुर्वेदी की कविता को याद करते हुये)
चाह नहीं मैं मठाधीश के चरणों की पुजा पाऊँ
चाह नहीं टीकाधारी के भुजदंडों पर इठलाऊँ
चाह नहीं भाजप्पा के बप्पा की छाती पर महकूँ
चाह नहीं सुरपति नेता के शयन बिछौना पर गमकूँ
चाह नहीं है किसी अडानी अंबानी की सेज बनूँ
चाह नहीं पूँजीपतियों की जोरू के नख-शिख चूमूँ
चाह नहीं है अब मंदिर में शिव लिंगों पर हार बनूँ
चाह नहीं मस्जिद में जाऊँ या मज़ार पर शान बनूँ
चाह नहीं है मैं जुलूस में हत्यारों के पाँव पड़ूँ
चाह नहीं मैं धर्मधुरंधर व्यभिचारी की आन चढ़ूँ
मुझे फेक देना रे माली जब निर्बल भुजबल से जीते
मुझे सौंप देना बनमालिन जब गरीब अपने मन चेते ॥
चाह नहीं टीकाधारी के भुजदंडों पर इठलाऊँ
चाह नहीं भाजप्पा के बप्पा की छाती पर महकूँ
चाह नहीं सुरपति नेता के शयन बिछौना पर गमकूँ
चाह नहीं है किसी अडानी अंबानी की सेज बनूँ
चाह नहीं पूँजीपतियों की जोरू के नख-शिख चूमूँ
चाह नहीं है अब मंदिर में शिव लिंगों पर हार बनूँ
चाह नहीं मस्जिद में जाऊँ या मज़ार पर शान बनूँ
चाह नहीं है मैं जुलूस में हत्यारों के पाँव पड़ूँ
चाह नहीं मैं धर्मधुरंधर व्यभिचारी की आन चढ़ूँ
मुझे फेक देना रे माली जब निर्बल भुजबल से जीते
मुझे सौंप देना बनमालिन जब गरीब अपने मन चेते ॥
-शैलेन्द्र कुमार शुक्ल
26/07/2016
26/07/2016
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