Tuesday, July 26, 2016

एक थी डेल्टा - (8) नोखा का जैन आदर्श कॉलेज इसलिये दोषी है ! - भंवर मेघवंशी

एक थी डेल्टा - (8)
नोखा का जैन आदर्श कॉलेज इसलिये दोषी है !
- भंवर मेघवंशी 
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कुमारी डेल्टा मेघवाल नोखा के आदर्श संस्थान के श्री जैन आदर्श कन्या शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय की द्वितीय वर्ष छात्रा थी, इसी कॉलेज द्वारा संचालित हॉस्टल में वह रहती थी. उसकी शिक्षा,स्वास्थ्य तथा सुरक्षा की सम्पूर्ण जिम्मेदारी इसी आदर्श कहे जाने वाले जैन कॉलेज की ही थी. सवाल उठता है कि क्या इस जिम्मेदारी को कॉलेज ने निभाया ?
उपरोक्त सवाल का कोई संतुष्टिजनक जवाब नहीं मिलता है ,बल्कि कई सारे और सवाल जरुर खड़े हो जाते है .आखिर गर्ल्स हॉस्टल के परिसर में एक पुरूष शिक्षक को आवास क्यों दिया गया, जिसका कि बीएसटीसी कॉलेज से कोई सम्बन्ध नहीं था. क्या उसे वहां पढ़ने वाली छात्राओ के यौन शोषण के लिये वहां पर रखा गया था ? या वार्डन व उसके पति से निजी दोस्ती निभाने के लिये उसे उपकृत किया गया था ? कॉलेज की सबसे बडी गलती यह थी कि एक पुरुष टीचर को छात्राओ के हॉस्टल परीसर में आवास दिया.
सवाल यह भी है कि गर्ल्स हॉस्टल में कोई फुलटाइम वार्डन क्यों नही लगाई गई जो छात्राओ के ही साथ रहती ? कार्यवाहक वार्डन प्रिया शुक्ला को छात्राओ से कोई ज्यादा मतलब नही था. वह छात्राओं के साथ रहने के बजाय अपने पति एवं ससुर के साथ हॉस्टल से दूर अपने आवास में रहती थी . गर्ल्स हॉस्टल परिसर में वार्डन का पति, ससुर ,पीटीआई ,चौकीदार तथा खाना बनाने वाली का लड़का जैसे कितने ही मर्द या तो उसी परिसर में रहते थे या उनकी वहां बेरोकटोक आवाजाही थी . ऐसे में छात्राएं कैसे सुरक्षित कही जा सकती है ?
कॉलेज परिसर में मौजूद पानी के सारे कुण्डों के ढक्कनों पर ताला था, सिर्फ डेल्टा को जिसमे मार कर डाला गया उसी कुण्ड का ढक्कन बिना ताले के कैसे रखा गया था ? इतना ही नहीं हॉस्टल के मुख्य दरवाजे पर भी अन्दर की ओर ताला लगाया जाता था, उस रात जब डेल्टा हॉस्टल से बाहर ले जाई गई, तब मेन गेट पर ताला क्यों नही लगाया गया था या किसी ने ताला खोलकर उसे बाहर निकाला था ?
जैसा कि पुलिस को दिये बयान में वार्डन प्रिया शुक्ला ने बताया है कि 28 मार्च की रात 1 बजे कुमारी डेल्टा पीटीआई विजेन्द्रसिंह के आवास में बिस्तर पर लेटी हुई पाई गई थी. तब इसे एक “ सामान्य “ ग़लती कैसे मान लिया गया और अपने स्तर पर ही वार्डन एवं उसके पति ने कैसे माफ़ीनामा लिखवा कर सारा मामला रफा दफा कर दिया ?
बताया गया कि लड़की के भविष्य की सोच कर ही मामले को तूल नहीं दिया गया और ना ही कॉलेज के अध्यक्ष ,पुलिस और डेल्टा के पिता को इसकी जानकारी दी गई जबकि पुलिस के आरोप पत्र में साफ उल्लेख है कि वार्डन प्रिया शुक्ला ने उसी रात 2 बजे पीटीआई विजेंद्र सिंह की पत्नी उषा को फ़ोन किया और कहा कि- “ तेरे पति के कमरे में बीएसटीसी कर रही लड़की डेल्टा मिली है , तुम्हारे पति के डेल्टा के साथ में अवैध सम्बध है |” वार्डन ने पीटीआई की पत्नी को इतनी रात फोन करना उचित समझा . तब लड़की के भविष्य की उसे चिंता नहीं हुई ? फ़ोन पर जो पीटीआई की पत्नी को बताया गया वही पुलिस को क्यों नही बताया गया ? डेल्टा के परिवार को फ़ोन क्यों नही किया ? आखिर प्रिया शुक्ला और विजेंद्रसिंह के मध्य ऐसी क्या ‘ अंतरगता ‘ थी कि वह डेल्टा से इतनी भड़की हुई थी . जानकार लोग बताते है कि वार्डन प्रिया शुक्ला और पीटीआई विजेंद्रसिंह दोनों ही नोखा आने से पहले सरदारशहर की कैम्ब्रिज कॉन्वेंट स्कूल में एक साथ कार्यरत थे . उनकी वहीँ की जानपहचान की वजह से विजेन्द्रसिंह को भी वार्डन प्रिया शुक्ला कॉलेज अध्यक्ष ईश्वरचंद से कह कर नोखा ले आई और अपने पास का आवास दिलवा दिया ,ताकि वह अपनी नजरों के सामने रहे .
डेल्टा की कथित संदिग्ध मौत की जाँच की मांग सबसे पहले आदर्श कॉलेज की तरफ से होनी चाहिये थी, मगर कॉलेज की तरफ से लीपापोती की गई .डेल्टा की मौत के लिये सबसे ज्यादा जिम्मेदार वार्डन प्रिया शुक्ला ,पीटीआई विजेन्द्रसिंह, वार्डन के पति प्रज्ञा प्रतीक शुक्ला के विरुद्र ईशवरचंद ने क्या कार्यवाही की ? कुछ भी नही किया बल्कि बचाने का भरसक प्रयास किया . इसका मतलब यह है कि ईश्वरचंद भी पूरे षड्यंत्र में शामिल रहा है .
अपनी कॉलेज की एक होनहार छात्रा के सुबह 7 बजे गायब हो जाने तथा 11 बजे पानी के कुण्ड में मिलने तक की कहानी पर यकीन भी कर लिया जाये तो सवाल यह उठता है कि उन 4 घंटो में कॉलेज प्रशासन ने क्या किया ? पुलिस को इन्फॉर्म क्यों नही किया ? डेल्टा के पिता तथा स्थानीय अभिभावक को क्यों नहीं बुलाया गया ? आखिर 4 घंटे की रहस्यमयी चुप्पी क्या कहती है ?
जब डेल्टा के शव को निकाला गया तथा यह पता चल गया कि वह मर चुकी है . तब अपने कॉलेज की एक प्रतिभाशाली छात्रा के प्रति कॉलेज को शोक में मनाने की भी नहीं सूझी ? सही बात तो यह है कि बलात्कार से लेकर हत्या तक की पूरी पटकथा रात में ही तैयार कर दी गई थी .इसीलिये सुबह से वार्डेन, उसका पति तथा पीटीआई सब कुछ जानते हुये भी अपनी अपनी ड्यूटी पर गये, यह दिखाने के लिये कि उनका इस मर्डर से कोई सम्बन्ध नही है .
रात के सभी अपराधी स्कूल में सुबह 7 बजे पहुच गये.डेल्टा के गायब होने की कहानी 6 बजकर 45 मिनिट की रची गई , ताकि पुलिस और लोग यह सोचे कि जब डेल्टा गायब हुई ,तब तो ये सभी स्कूल के लिए निकल चुके थे ,फिर भला वो कैसे डेल्टा को मार सकते है ? इधर डेल्टा पानी में थी, उधर कॉलेज में अभिभावकों की मीटिग चल रही थी , चाय नास्ते किये जा रहे थे . हँसी के ठहाके लग रहे थे .रात के इतने बड़े घटनाक्रम और सुबह कॉलेज की एक छात्रा के हॉस्टल में नहीं होने के बावजूद पीटीआई , वार्डन तथा उसका पति सब लोग सामान्य अवस्था में कायर्रत थे, जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं हो .
क्या डेल्टा के शव को ढकने के लिये कॉलेज के पास एक कपड़ा तक उपलब्ध नही था ? हॉस्टल में मौजूद डेल्टा के कपड़ो से ही उसका बदन ढंका जा सकता था, मगर उसके बदन की पूरी बईज्ज्ती की गई, जिस नफरत के साथ उससे रात में माफीनामा लिखवाया गया ,उससे ज्यादा नफरत उसे अस्पताल की मोर्चरी तक ले जाने में दिखाई गई .डेल्टा की लाश को नगरपालिका नोखा के मृत पशु और मिट्टी धोने वाली ट्रोली में डाल कर ले जाया गया था .
घटना की एफ आई आर कॉलेज प्रशासन को लिखवानी चाहिये थी .कॉलेज ने क्यों नही लिखवाई ? जबकि डेल्टा तो कॉलेज के संरक्षण में थी . डेल्टा की लाश दो दिन तक नोखा के सरकारी अस्पताल में पड़ी रही और जैन आदर्श संस्थान के स्कूल तथा कॉलेज आराम से चलते रहे | कॉलेज ने अपनी एक होनहार छात्रा के लिये शोक सभा तक नही आयोजित नही की और ना ही श्रधान्जली दी .आखिर कॉलेज की संवेदनाये मर क्यों गई ?
कॉलेज का कोई भी ट्रस्टी ,कोई भी शिक्षक तथा हॉस्टल स्टाफ का कोई भी व्यक्ति डेल्टा के शव के अंतिम संस्कार के समय त्रिमोही साथ नहीं गया. डेल्टा के परिजनों को सांत्वना देने तक की ईशवरचंद्र ने आज तक नही सोची, आखिर क्यों ?
जब डेल्टा के पिता को खबर मिली कि डेल्टा पानी के कुण्ड में मृत मिली है .तब उन्होंने कॉलेज के अध्यक्ष ईश्वरचंद वैद को फ़ोन करके बात करनी चाही. पहले तो उन्होंने ऐसी किसी घटना से ही अनभिज्ञता जाहिर कर दी . फिर कहा कि मैं बाहर हूँ . वहां पर जाकर देखकर बताता हूँ . जबकि वो वही मौके पर ही मौजूद थे और अंत में उन्होंने मोबाईल ही स्विच ऑफ कर दिया . आज तक उन्होंने डेल्टा के माता पिता से बात करके सात्वंना तक देना जरुरी नही समझा | अगर जैन आदर्श कॉलेज के अध्यक्ष ईश्वरचंद वैद और उनके सहयोगी निर्दोष थे ,तो उन्हें छाती ठौक कर सबके सामने आना चाहिये था और जाँच में पूरा सहयोग देना चाहिये था , मगर वे शुरू से ही लीपापोती करने में लगे हुए थे .इसीलिये उनकी पूरी कार्यशैली ही सवालो के घरे में है.
श्री जैन आदर्श संस्थान के किसी भी स्कूल, कॉलेज या हॉस्टल में कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन रोकने के लिये बनने वाली कमेटी नही बनाई गई थी , जबकि विशाखा मामले में सुप्रीम कोर्ट के यह स्पष्ट दिशानिर्देश है .
ना वर्कप्लेस सेक्सुअल हरेस्मेंट कमेटी ,ना हॉस्टल में कोई स्थायी वार्डन ,गर्ल्स हॉस्टल परिसर में पुरुष पीटीआई को आवास देना तथा एक नाबालिग दलित लड़की के साथ बलात्कार होने की घटना पर पर्दा डालना ,पुलिस तथा लड़की के परिजनों को भनक तक नहीं लगने देना तथा अंतत कॉलेज से लड़की की लाश का बरामद होना ,क्या इसके बाद भी और सबूत चाहिए इस कॉलेज की मान्यता रद्द करने के लिये ? सब कुछ जानकर भी अनजान बनने वाले तथा एक दलित नाबालिग छात्रा के मर्डर पर लीपापोती करने वाले कॉलेज अध्यक्ष ईश्वरचंद को पोक्सो एक्ट से क्यों बचाया जा गया है . क्या उनकी कोई जवाबदेही नहीं थी ? लेकिन उच्च स्तरीय हस्तक्षेप और बचाव के प्रयासों के चलते और सीबीआई जाँच नहीं होने के कारण बीकानेर पुलिस ने अपनी लचर चार्जशीट में ईश्वरचंद वैद को दोषमुक्त करार देने का पाप किया है .जो कि अत्यंत निंदनीय है .चूँकि बीकानेर पुलिस पूरी तरह से मैनेज थी, इसलिये उससे तो किसी प्रकार की अपेक्षा ही नही की जा सकती है इसलिए सभी लोग बार बार और आज तक भी सीबीआई जाँच की मांग कर रहे है ...(जारी)
- भंवर मेघवंशी
( लेखक स्वतंत्र पत्रकार है )

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