जिम कार्बेट का नैनीताल
देवेन मेवाड़ीके फेसबुक वाल से साभार
आज प्रसिद्ध शिकारी और पर्यावरणविद् जिम कार्बेट का जन्मदिन है। उनका जन्म 25 जुलाई 1875 को नैनीताल में हुआ था।
उन्होंने नैनीताल के नैसर्गिक सौंदर्य का अद्भुत वर्णन किया है। उनका प्रकृति वर्णन पाठक को सम्मोहित कर लेता है। मैंने हिंदी के पाठकों के लिए कार्बेट की उन पंक्तियों का यहां अनुवाद कर दिया है। सन् 1932 में ‘माई इंडिया’ की भूमिका में पाठकों को नैनीताल की ‘चीना पीक’ पहाड़ी पर चलने के लिए आमंत्रित करते हुए उन्होंने लिखा, ‘‘एक जोड़ी बढ़िया फील्ड ग्लासेज लीजिए और मेरे साथ चीना पीक की चोटी पर चलिए। यहां से आप नैनीताल के चारों ओर का विहंगम दृश्य देख सकते हैं। सड़क खड़ी चढ़ाई में जा रही है लेकिन अगर पक्षियों, पेड़ों और फूलों में आपकी रुचि है तो आपको यह तीन मील की चढ़ाई खलेगी नहीं। और, अगर चोटी पर पहुंच कर आपको प्यास लग आई तो मैं आपको साफ ठंडे पानी का सोता दिखाऊंगा जहां उन तीन महर्षियों की तरह आप भी अपनी प्यास बुझा सकते हैं। आराम कर लिया, भोजन भी कर लिया, अब चलिए उत्तर की ओर देखिए। आपके ठीक नीचे जंगलों से भरी गहरी घाटी है जो कोसी नदी तक पहुंच रही है। नदी के उस पार अनेक समानांतर पर्वतमालाएं हैं जिन पर यहां-वहां गांव बसे हुए हैं। उन्हीं में से एक पर्वतमाला पर अल्मोड़ा शहर है और दूसरी पर्वतमाला पर है रानीखेत छावनी। उनके पीछे और भी पर्वतमालाएं हैं जिनमें सबसे ऊंची डूंगर बुकाल की ऊंचाई 14,200 फुट है लेकिन विशाल हिमाच्छादित हिमालय के सामने यह बौनी दिखाई देती है। आपसे कव्वे की उड़ान 60 मील दूर उत्तर में है त्रिशूल और उस 23,406 फुट ऊंची भव्य चोटी के पूर्व व पश्चिम में सैकड़ों मील तक हिमाच्छादित पर्वतों की कतार फैली हुई है। त्रिशूल के पश्चिम में जहां बर्फ दृष्टि से ओझल हो जाती है, वहां पवित्र केदारनाथ व बद्रीनाथ धाम के ऊपर पहले गंगोत्री समूह है, फिर ग्लेशियर और पर्वतमालाएं। और, उसके बाद है कामेट जिसे स्माइथी ने प्रसिद्ध बना दिया है। त्रिशूल के पूर्व में, पीछे की ओर आप नंदादेवी की चोटी (25,689 फुट) देख सकते हैं, जो भारत का सबसे ऊंचा पर्वत है। आपके दाहिनी ओर ठीक सामने देवी पार्वती का धवल तकिया नंदाकोट है। और, थोड़ा आगे पूर्व में पंचचुली की सुंदर चोटियां हैं, यानी पांच चूल्हे जिनका उपयोग पांडवों ने तिब्बत में कैलाश तक जाते समय किया था। सूर्योदय से पहले जब चीना और उसके आसपास की पहाड़ियां अभी रात्रि के आगोश में ही होती हैं, हिमाच्छादित पर्वतमालाओं का रंग जामुनी से गुलाबी हो जाता है और जैसे ही सूर्य स्वर्ग की निकटस्थ चोटियों को स्पर्श करता है, उनका गुलाबी रंग चकाचौंध कर देने वाले श्वेत रंग में बदल जाता है। दिन भर वे पहाड़ ठंडे और श्वेत दिखाई देते हैं, उनका हर शिखर जैसे भुरभुरी बर्फ का पंख ओढ़ लेता है, लेकिन सूर्यास्त के समय स्वर्ग के चितेरे की मर्जी कि वह उस दृश्यावली में गुलाबी रंग भरता है या सुनहरा अथवा लाल।’’....
जिम कार्बेट ने उस भूमिका में यह भी लिखा था कि शहर नैनीताल के चारों ओर फैले जंगलों में उसने बाघ, तेंदुए, भालू, सांभर और 128 प्रकार के रंग-बिरंगे पंछी देखे थे! अभी कुछ दिन पहले ही अचानक एक हिमालयी भालू नैनीताल की झील तक आ गया था जो फिर ऊपर जंगलों में वापस लौट गया। नैनीताल के लोगों ने वर्षों बाद झील में भालू देखा। जिम कार्बेट यह भी लिखते हैं कि 8569 फुट ऊंचे चीना पहाड़ की तीन मील की खड़ी चढ़ाई में घने पेड़ थे, तमाम तरह के रंग-बिरंगे जंगली फूल खिलते थे और पक्षियों का मधुर कलरव गूंजता रहता था। पास ही बसे खुर्पाताल के खेतों में भारत का सर्वोत्तम आलू पैदा होता था। उसके नीचे की गहरी घाटी शाल और अन्य पेड़-पौधों, बेलों व फूलों से भरी रहती थी।
आज प्रसिद्ध शिकारी और पर्यावरणविद् जिम कार्बेट का जन्मदिन है। उनका जन्म 25 जुलाई 1875 को नैनीताल में हुआ था।
उन्होंने नैनीताल के नैसर्गिक सौंदर्य का अद्भुत वर्णन किया है। उनका प्रकृति वर्णन पाठक को सम्मोहित कर लेता है। मैंने हिंदी के पाठकों के लिए कार्बेट की उन पंक्तियों का यहां अनुवाद कर दिया है। सन् 1932 में ‘माई इंडिया’ की भूमिका में पाठकों को नैनीताल की ‘चीना पीक’ पहाड़ी पर चलने के लिए आमंत्रित करते हुए उन्होंने लिखा, ‘‘एक जोड़ी बढ़िया फील्ड ग्लासेज लीजिए और मेरे साथ चीना पीक की चोटी पर चलिए। यहां से आप नैनीताल के चारों ओर का विहंगम दृश्य देख सकते हैं। सड़क खड़ी चढ़ाई में जा रही है लेकिन अगर पक्षियों, पेड़ों और फूलों में आपकी रुचि है तो आपको यह तीन मील की चढ़ाई खलेगी नहीं। और, अगर चोटी पर पहुंच कर आपको प्यास लग आई तो मैं आपको साफ ठंडे पानी का सोता दिखाऊंगा जहां उन तीन महर्षियों की तरह आप भी अपनी प्यास बुझा सकते हैं। आराम कर लिया, भोजन भी कर लिया, अब चलिए उत्तर की ओर देखिए। आपके ठीक नीचे जंगलों से भरी गहरी घाटी है जो कोसी नदी तक पहुंच रही है। नदी के उस पार अनेक समानांतर पर्वतमालाएं हैं जिन पर यहां-वहां गांव बसे हुए हैं। उन्हीं में से एक पर्वतमाला पर अल्मोड़ा शहर है और दूसरी पर्वतमाला पर है रानीखेत छावनी। उनके पीछे और भी पर्वतमालाएं हैं जिनमें सबसे ऊंची डूंगर बुकाल की ऊंचाई 14,200 फुट है लेकिन विशाल हिमाच्छादित हिमालय के सामने यह बौनी दिखाई देती है। आपसे कव्वे की उड़ान 60 मील दूर उत्तर में है त्रिशूल और उस 23,406 फुट ऊंची भव्य चोटी के पूर्व व पश्चिम में सैकड़ों मील तक हिमाच्छादित पर्वतों की कतार फैली हुई है। त्रिशूल के पश्चिम में जहां बर्फ दृष्टि से ओझल हो जाती है, वहां पवित्र केदारनाथ व बद्रीनाथ धाम के ऊपर पहले गंगोत्री समूह है, फिर ग्लेशियर और पर्वतमालाएं। और, उसके बाद है कामेट जिसे स्माइथी ने प्रसिद्ध बना दिया है। त्रिशूल के पूर्व में, पीछे की ओर आप नंदादेवी की चोटी (25,689 फुट) देख सकते हैं, जो भारत का सबसे ऊंचा पर्वत है। आपके दाहिनी ओर ठीक सामने देवी पार्वती का धवल तकिया नंदाकोट है। और, थोड़ा आगे पूर्व में पंचचुली की सुंदर चोटियां हैं, यानी पांच चूल्हे जिनका उपयोग पांडवों ने तिब्बत में कैलाश तक जाते समय किया था। सूर्योदय से पहले जब चीना और उसके आसपास की पहाड़ियां अभी रात्रि के आगोश में ही होती हैं, हिमाच्छादित पर्वतमालाओं का रंग जामुनी से गुलाबी हो जाता है और जैसे ही सूर्य स्वर्ग की निकटस्थ चोटियों को स्पर्श करता है, उनका गुलाबी रंग चकाचौंध कर देने वाले श्वेत रंग में बदल जाता है। दिन भर वे पहाड़ ठंडे और श्वेत दिखाई देते हैं, उनका हर शिखर जैसे भुरभुरी बर्फ का पंख ओढ़ लेता है, लेकिन सूर्यास्त के समय स्वर्ग के चितेरे की मर्जी कि वह उस दृश्यावली में गुलाबी रंग भरता है या सुनहरा अथवा लाल।’’....
जिम कार्बेट ने उस भूमिका में यह भी लिखा था कि शहर नैनीताल के चारों ओर फैले जंगलों में उसने बाघ, तेंदुए, भालू, सांभर और 128 प्रकार के रंग-बिरंगे पंछी देखे थे! अभी कुछ दिन पहले ही अचानक एक हिमालयी भालू नैनीताल की झील तक आ गया था जो फिर ऊपर जंगलों में वापस लौट गया। नैनीताल के लोगों ने वर्षों बाद झील में भालू देखा। जिम कार्बेट यह भी लिखते हैं कि 8569 फुट ऊंचे चीना पहाड़ की तीन मील की खड़ी चढ़ाई में घने पेड़ थे, तमाम तरह के रंग-बिरंगे जंगली फूल खिलते थे और पक्षियों का मधुर कलरव गूंजता रहता था। पास ही बसे खुर्पाताल के खेतों में भारत का सर्वोत्तम आलू पैदा होता था। उसके नीचे की गहरी घाटी शाल और अन्य पेड़-पौधों, बेलों व फूलों से भरी रहती थी।
(‘मेरी विज्ञान डायरी भाग-1, आधार प्रकाशन, पंचकूला से’)
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